जीवनसाथी
जीवनसाथी
"गुड मॉर्निंग राज, विद स्वीट स्माइल .. राधिका ने राजीव को प्यार से मुस्कुराते हुए जगाया अनमना सा राजीव जैसा उठना ही नहीं चाहता था, "अरे उठो भी राज.. कब तक सोते रहोगे राधिका ने राजीव के पास बैठकर उसके बालों को सहलाते हुऐ कहा। राजीव ने आँखें खोली तो सामने राधिका को देख कर शरारती आँखो से मुस्कुरा दिया मानो उसके मन में कोई शरारत जन्म ले रही हो, राजीव ने कुछ कहने को मुँह ही खोला था कि राधिका की नर्म अंगुली उसके होठों पर टकराई।
"चुप रहिये मिस्टर हसबैंड, जल्दी से तैयार हो जाइये...माँ पिता जी मोर्निंग वॉक से वापस आते ही होंगे।
"अरे इतनी जल्दी नहीं आयेंगे,राजीव ने शरारत से मुस्कुराते हुए राधिका का हाथ पकड़ लिया,
"आज संडे है डिअर वाइफ, माँ पिता जी अपनी शायरी की महफ़िल जमा कर बैठे होंगे।
"राधिका बेटा..
एक कप चाय तो पिला दे... पिता जी की आवाज़ सुनते ही राजीव ने हड़बड़ा कर राधिका का हाथ छोड़ दिया
" जी आई पिता जी...
राधिका ने अपनी हँसी रोकते हुऐ जवाब दिया,
"आज पिता जी इतनी जल्दी कैसे आ गये"
राजीव ने उठते हुए पूछा
"आज कुछ लोग पिंकी के रिश्ते के लिए आने वाले है..
राधिका ने अलमारी से कपड़े निकालते हुये कहा
"मुझे पहले क्यो नहीं बताया..
"कैसे बताते...??
रात को तुम देर से आये थे, और आते ही सो गये थे, पिता जी ने तुम्हें जगाना ठीक नहीं समझा।
"यार तुम तो बता सकती थी...
"जी, इतनी देर से वही कोशिश कर रही थी...पर आपका इरादा ही कुछ और था.. राधिका ने शरारती आँखो से राजीव की आंखों में झाँकते हुऐ कहा।
"बेटा राधिका...
जी .. पिता जी...आई.. कहते हुए राधिका साड़ी का पल्लू ठीक करते हुऐ रसोई की तरफ भागी पिता जी के लिए चाय जो बनानी थी, राजीव उसे ऐसे जाते देख कर, शादी से पहले की राधिका और अब की राधिका के साथ खुद को तोलने लगा।
सात साल पहले तक राधिका मुझसे कितना लड़ती थी, मेरे नाम से ही चिढ़ जाती मुझे बंदर बोल कर मेरे गुस्से को बढ़ा देती।
वैसे उसे चिढ़ाने में, मैं भी कोई कसर नहीं छोड़ता था... राधिका के पापा पिता जी के ख़ास दोस्तों में से थे, राधिका के घर आना जाना होता रहता था। वो भी आती थी... उसके आते ही हमारी लड़ाई शुरू हो जाती थी, बचपन में तो ठीक था पर बड़े होने पर भी हमें बच्चों की तरह लड़ाई करते देख राधिका के पापा ने मज़ाक में राधिका से बोला,
"उसे बन्दर न बोल, कल को तेरी शादी राजीव से कर दी, तो तू ही बंदरिया बन जायेगी...
सुन कर सभी लोग ठहाका लगा कर हँस पड़े पर ये मज़ाक पिता जी को इतना भाया की उन्होंने तुरंत ही जेब से पाँच सौ इक्यावन रुपये निकाल कर राधिका के हाथ पर रखते हुये कहा,
"चलो आज से ये बंदरिया हमारी हो गई..
फिर से वातावरण में ठहाको की शहनाई सी गूंज गई...
"अरे राज..आप अभी तक ऐसे ही बैठे है, राधिका की आवाज़ से जैसे राजीव की तंद्रा टूटी।
राजीव ने मुस्कुराते हुए कहा
"बन्दर बोलो न बहुत दिन हो गए सुने हुये....
"मुझे बंदरिया नहीं बनना, आप मेरे राज़ हो मैं आपकी जीवनसाथिन आपकी अर्धांगनी, सुख दुःख की साथिन आपकी सोलमेट... हमारा रिश्ता अब जन्मों जन्म का है
"तुम बिन अधूरा है, तुम्हारा बन्दर
राजीव ने मुस्कुरा कर अपने आलिंगन में राधिका को कसते हुये कहा....
