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Poonam Bagadia

Romance

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Poonam Bagadia

Romance

"समय की रेत पर पलता प्रेम"

"समय की रेत पर पलता प्रेम"

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430

"आज सुबह से ही एक अनजान नम्बर से बार बार फोन आ रहा था, जैसे ही काम छोड़ कर फोन उठाने को भागती, तभी फोन कट जाता...

ये सिलसिला चलते शाम हो गई थी।

उस अनजाने नम्बर को देख कर उसे कॉल बैक करना जरूरी नहीं समझा\और अपने काम को प्राथमिकता देते हुए, पुनः काम में व्यस्त हो जाती।

रात को जब सोने के लिए बिस्तर पर आई तो आदतन हाथ मोबाइल पर गया, तब मुझे उस कॉल की याद आई, देखूँ तो सही किस का नंबर है।

नम्बर तो समझ नहीं आया, परन्तु उस नम्बर से फिर एक संदेश का आवागमन हो गया। रात के 10 बजे, ये शख्स है कौन..??

इसी कशमकश में मैने जवाब दिया, जवाब में पुनः सन्देश आया... 

Hi, i am raj...

नाम पढ़ते ही हृदय गति ने तीव्रता पकड़ ली, और होठों पर अनायास ही मुस्कुराहट के कमल खिल उठे। राज... राज मेरे बचपन का दोस्त, जिसके साथ बचपन की खट्टी मीठी शरारतें, और एक अनजाने आकर्षण का एक प्यारा सा धागा बँधा था। मैंने शीघ्रता से फोन पर इंटरनेट को ऑन कर व्हाट्सएप के लिए नम्बर सलंग्न कर दिया। मैं वीडियो कॉल कर उसे देखना चाहती थी, बचपन में मासूम सा दिखने वाला शरारती छोकरा, अब कैसा दिखता है..परन्तु मेरे ये सोचने से पहले ही उसकी कॉल आ गई, मानो जैसे कि वो भी किसी इंतज़ार में था।

"हैल्लो, कैसी हो... वो बोला,

मैंने मुस्कुरा कर, गर्दन हाँ मैं हिला दी, वो बोले ही जा रहा था, पर... मैं अपने ही विचारों में कहीं उलझी सी सकुचाई, उसे अपलक निहार रही थी।

बचपन के राज और अब के राज में कितना अंतर आ गया था।

बचपन का मासूम सा चेहरा, मनमोहक मीठी सी मुस्कान, आज के फैशन के मुताबिक दाड़ी के पीछे कहीं छिपी थी, आँखो पर चश्मा चढ़ गया, मुझे चश्मिश कह कर चिढ़ाने वाला आज खुद चश्मिश था।

पढ़ाई के कारण जब राज को विदेश जाना पड़ा, उसी क्षण से मैंने, बचपन के समस्त क्षणों को, जो रेत की तरह, हाथ से फ़िसल रहे थे, सब को एकत्रित कर अपने हृदय में कहीं किसी चट्टान की भांति चिन्हात कर दिया था... ये सोच कर, की अब राज कभी नहीं लौटेगा.... परन्तु आज मेरे बीते बचपन की उस चट्टान को, राज ने वर्तमान की गाड़ी पर सवार हो कर, ऐसी टक्कर मारी की, उस चट्टान के हाथों, जो मेरे बीते पल की रुकी हुई घड़ी थी, फिर से सज़ग हो चल पड़ी थी....

उस सजग घड़ी की टिकटिक... मेरे हृदय की गति बढ़ा रही थी ।

"अरे.... कुछ तो बोलो चुप क्यों हो तुम..??

उसकी आवाज़ से जैसे मेरी तंद्रा भंग हुई,\शर्म से चेहरा गुलाबी हो रहा था.. मैं क्या बोलूँ ...??

वक़्त के हाथों से बनी उस समय चट्टान पर ... बचपन से बैठा उसके प्रेम का तोता, आज बार- बार जो र्टरर्टरा रहा था.....



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