अज़नबी
अज़नबी
"सुना था कुछ अज़नबी, अज़नबी हो कर भी अनजान नहीं होते।
इस बात का एहसास मुझे उस रोज हुआ जब उसे पार्क में शांत बैठे देखा था।
अक्सर ऑफिस से घर आते हुए मैं उस पार्क के बीच से होकर, अपने रास्ते को थोड़ा छोटा कर दिया करती थी यूँ तो उस पार्क में हमेशा ही रात 11 बजे तक रश होता था, परन्तु अब सर्द मौसम में 6 बजते ही खामोशी में लिपटी सर्द हवाएं और इक्के दुक्के लोग ही नज़र आते थे
उस अज़नबी को अक्सर पार्क में बच्चों के साथ हँसते खेलते ही देखा करती थी, काफी आकर्षण था, उसकी मुस्कान में, कोई
भी देख कर मुग्ध हो जाये परंतु आज उसकी आंखों में एक सुने पन की खामोशी शोर मचा रही थी।
एक मन हुआ जा कर उस युवक से पुछूँ-
"क्या हुआ है ?
परन्तु एक अज़नबी से ऐसे उसके व्यक्तिगत समस्याओं के विषय पर कुछ भी सवाल करना मुझे अच्छा नहीं लगा, न जाने कौन है ?
किस प्रवर्ति का है ??
आजकल किसी का क्या भरोसा।
इन्हीं विचारों में गुम मैने उसे अनदेखा कर पार्क को क्रॉस कर लिया। दूसरे दिन भी मैंने उस अज़नबी शख्श को उसी खामोशी में लिपटा देखा पर उसे अनदेखा करने के अलावा अन्य कोई चारा नहीं था सो इस बार भी इग्नोर कर मैं आगे बढ़ गई। चार दिन हो गए थे उसे ऐसे ही बैठे हुऐ
ऑफिस से निकलते हुऐ सोचा "आज हिम्मत कर पूछ ही लूँगी "
मैं ऑटो रिक्शा से उतर कर,
पार्क तक पहुँची तो नज़र खुद ही उस अज़नबी को तलाश करने लगी, आज वो कहीँ नज़र नहीं आया। मन में कई सवाल कौंध गये, "क्या हुआ होगा ? जो आज वो यहाँ नहीं है पर खुद ही सिर झटक कर उसे अपने विचारों से दूर किया !!
" मुझे क्या लेना किसी से इसी सोच को साथ ले कर मैं घर के लिये आगे बढ़ गई
अब कुछ दिन से जब वो कहीं नजर नहीं आया, तो मैं भी अपनी व्यस्त ज़िन्दगी में, पार्क के उस अज़नबी को भूल सी गई थी
करीब दो महीने बाद मैं और मेरे ऑफिस के एक मित्र प्रेम जीऔर एक महिला मित्र रीना ऑफिस के बाद बात करते हुए गेट तक पहुँचे, तो हमारे मित्र ने हम दोनों को ही अपनी कार से घर तक छोड़ देने का प्रस्ताव रखा
हम दोनों ने बिना एक क्षण गवाए हल्की सी मुस्कान के साथ स्वीकृति दे दी …
अभी हम कुछ ही दूर चले थे कि अचानक झटके के साथ प्रेम जी ने कार को ब्रेक लगा कर रोका
"क्या हुआ ?
हम दोनों ही एक साथ बोल उठी
प्रेम जी ने सड़क के किनारे लगी भीड़ की ओर इशारा किया
हम तीनों ही सहम से गये थे
"साइड से निकल लो"
रीना बोली
" एक्सीटेंट हुआ लगता है कहते हुए प्रेम जी कार से उतर कर भीड़ में शामिल हो गए, जानने के लिए
करीब 15 मिनट के बाद प्रेम जी ने आकर कहा
"अगर आप लोगो को कोई प्रॉब्लम न हो तो क्या हम पहले हॉस्पिटल चले ??
"एक छोटा सा एक्सीडेंट हो गया है उसे हॉस्पिटल पहुँचा देते है
"ठीक है"
हम दोनों ने ही अपनी स्वकृति दे दी
कुछ समय पश्चात प्रेम जी उस लड़के को सहारा देते हुए कार तक ले आए
जैसे ही वो पास आये मैं चौक गई
"ये तो वही पार्क वाला अज़नबी है"
मन मे फिर उथल पुथल होने लगी आख़िर ये है कौन??
आज भी उसकी आँखों मे गज़ब की खामोशी थी
मेरी आँखों मे रह रह कर उसका बच्चों के साथ खेलते वो हँसता हुआ चेहरा आ रहा था
बहुत से सवाल तूफान की गति से बिखरने लगे
कार में अजीब सी खामोशी छाई रही
इससे पहले की मै अपने सवालों की झड़ी लगाती हॉस्पिटल आ गया
प्रेम जी ने कार रोक कर पास खड़े आदमी को हाथ हिला कर इशारा किया
वो आदमी शायद पार्क वाले अज़नबी का जानकार था
वोऔर प्रेम जी उस अज़नबी को लेकर हॉस्पिटल के अन्दर चलेगये
करीब पन्द्रह मिनट पश्चात ही प्रेम जी आ गये
"क्या हुआ"
हम दोनों के ही मुँह से एक साथ निकला
"चलो बताता हूँ प्रेम जी ने कार में बैठते हुऐ कहा
"ये मेरे एक मित्र का भाई है,
"इसकी हालात ऐसे क्यों हो गई ?
"क्या तुम जानती हो इसको??
प्रेम जी ने मेरी तरफ देखते हुए कहा
"नहीं"
"ये जिस लड़की से प्यार करता था, उस लड़की ने किसी और से शादी कर ली
"इतना प्यार उस लड़की के लिए ? जो ये हालात बना ली"
मै अनायास ही बोल पड़ी ह्म्म्म ये दोनों शादी करने वाले थे
"शादी से कुछ दिन पहले ही इसको पता चला उसलड़की का किसी और से अफेयर था
ये बात इसके दिमाग को बुरी तरह से चोट कर गई, बस तब से इसकी हालत ऐसी है
"पागलो जैसी मैं अनायास ही बोल पड़ी तभी प्रेम जी ने ब्रेक लगाए मेरा घर आ गया था
मैं प्रेम जी को थेंक्स कर अपने घर की ओर बढ़ने लगी, मेरे दिमाग मे अब भी कई सवाल थे
"लोग प्यार के नाम पर किसी को कैसे धोखा दे कर, जीते जी मार देते है ?
जिन आँखो में उसके लिए सपने सजाये उन्ही सपनो का खून कैसे कर देते है ?
किसी के प्यार, विश्वास, सपनों और जज़्बातों के खून से हाथ रंग कर हथियारे क्यों बन जाते है ?