वर्क फ्रॉम होम के साइड इफेक्ट
वर्क फ्रॉम होम के साइड इफेक्ट
इस लेख में मैंने वर्क फ्रॉम होम कल्चर से, घर के बदले हालातों को लेकर, कुछ घरेलू महिलाओं की व्यथा दर्शाई है। प्रस्तुत है मेरा यह लेख- घरेलू महिलाओं पर वर्क फ्रॉम होम के साइड इफेक्ट्स...
कल ही मेरी एक मित्र का फोन आया बहुत परेशान और उदास थी। पहले औपचारिक बातचीत हुई, हालचाल पूछा, बच्चे कैसे हैं? बाकी सब लोग घर पर कैसे हैं? पर मेरी मित्र कुछ ज्यादा ही परेशान थी फिर मैंने पूछा क्या हुआ ? तो कहने लगी,"हां वैसे तो सब ठीक है पर घर का सारा काम खुद करके, हालत खराब हो रही है और पति का ऑफिस भी घर से ही चल रहा है। बच्चे भी घर पर ही हैं। अब दिक्कत यह है कि ड्राइंगरूम पर तो पति ने पूरा कब्ज़ा कर रखा है। अपना सारा ऑफिस, वहां जमा लिया है। हालत यह है कि हॉल में खड़े होकर अब आप किसी का फोन भी नहीं ले सकते क्योंकि उनका ऑफिस चल रहा होता है। मेरे फोन की घंटी भी बजती है तो मुझे घूर कर देखते हैं कि यह बजी क्यों? मेरी तो मीटिंग चल रही है। मुझे याद नहीं पड़ता अपने यहां ऐसा भी कोई प्रावधान है कि फोन की घंटी भी मुझसे पूछ कर बजे। फोन साइलेंट मोड पर रखती हूं, तो मेरे किसी फोन का पता ही नहीं चलता। यार यह तो कोई कहने वाली बात नहीं है ना कि रसोई में काम होगा तो आवाज तो होगी ही। चाहे सब्जी धोना हो या सब्जी काटना हो, आर ओ(R.O.) से पानी निकालना हो, या अलमारी में से बर्तन निकालना। सब में आवाज आती है। छौंका लगे तो आवाज, कुकर की सीटी की अपनी धुन, मिक्सी चलाओ तो पड़ोसियों तक को पता चल जाता है कि कुछ पीसा जा रहा है, बर्तन मांजने की अपनी धमक, एग्जॉस्ट का अपना शोर, कुछ कूटने लगो तो उसकी अपनी लय। अब तू ही बता इन आवाजों को मैं कैसे शांत करूं? गिनने लगो तो रसोई से भांति-भांति की 36 किस्म की आवाज़ें आती हैं। अब रसोई में काम होगा तो आवाज़ तो आएगी ही। इन आवाज़ों को बंद करने का तो एक ही उपाय है कि रसोई में काम ही मत करो। अब जब बाहर का खाना तो खा नहीं सकते और ना ही हमें मंगवाना है तो घर में ही तो बनेगा। लेकिन समस्या यह है कि बिना आवाज़ के बनाऊं कैसे? आवाज़ करती हूं तो पति की मीटिंग में रुकावट पड़ती है, ईयर फोन वह लगाते नहीं क्योंकि उससे उनके कान में दर्द हो जाता है। अब तुम ही बताओ इस समस्या का कोई हल। मैं तो उल्टी-सीधी सब हो चुकी, मुझे तो कुछ समझ नहीं आ रहा... तुझे कुछ समझ आए तो बताना। चल अभी खाना बनाने का टाइम हो रहा है। अभी रखती हूं फिर आराम से बात करूंगी," यह कहकर उसने फोन रख दिया।
आज ही जब मैं आज बाज़ार जा रही थी तो एक पड़ोसन रास्ते में मिल गई। थोड़ी उदास लगी तो मैंने पूछ लिया, "सब ठीक है ना" तो कहने लगी यार क्या बताऊं ? कोरोना आने के बाद से पति और बच्चे घर पर हैं। पहले तो सुबह-सुबह सब निकल जाते थे, तो घर का सारा काम निपटा कर कुछ वक्त तो चैन से बैठने को मिलता था। अब तो सारा दिन काम पर लगे रहो। ऊपर से ना कोई प्रशंसा ना कोई सांत्वना। सुबह के बिजी शेड्यूल (व्यस्त अनुसूची) के बाद कुछ पल फुर्सत के अपने लिए मिलते थे। उसमें चाहे आराम करो, चाहे गाने सुनो, चाहे किसी से फोन पर बात करो। दिल को एक सुकून मिलता था और बाकी दिन काम करने की एनर्जी (ऊर्जा) भी मिल जाती थी अब तो बस पूछो मत कोल्हू के बैल की तरह सारा दिन लगे रहो और कोई पूछने-सुनने वाला है ही नहीं। सच में बेहद थक जाती हूं। अब जब कभी पति से कहती हूं कि कामवाली को बुला लेते हैं, तो कह देते हैं, अगर वह कोई इंफेक्शन ले आई तो क्या करेंगे? जैसे चल रहा है चलने दो। अरे! जैसे चल रहा है चलने दो, कहने-सुनने में तो बहुत आसान है, पर जिसके ऊपर पड़ती है उससे पूछो। काम कर-करके बेहाल हुई जा रही हूं। पहले तो किसी-किसी दिन बाहर खाना खाने चले जाते थे या घर पर मंगवा लेते थे। पर अभी तो पूरी तरह से घर पर ही बनाना पड़ रहा है... यह कह कर मेरी पड़ोसन बाजार के अपने काम करने चली गई। तो बहनों, अगर आपको भी वर्क फ्रॉम होम कल्चर के साइड इफेक्ट्स के कारण ऐसी ही कोई परेशानी हो रही है तो हमसे जरूर शेयर करें।