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suvidha gupta

Inspirational

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suvidha gupta

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डिंक

डिंक

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मेरा यह लेख आज कल के ऐसे युवा दंपतियों के बारे में है जो कि बच्चा करना ही नहीं चाहते।

किसी ने क्या खूब कहा है जिंदगी ज़रा आहिस्ता चल, कुछ कर्ज़ निभाने हैं बाकी, कुछ फर्ज़ निभाने हैं बाकी। इस मृग-तृष्णाओं के संसार में, हम ऐसी अंधी दौड़ में शामिल हैं कि घड़ी तो सबके हाथ में है, पर समय किसी के पास नहीं। सब कुछ पा लेने की ऐसी आपा-धापी मची है कि ज़िम्मेदारी के पैमाने हाथ से छूटते जा रहे हैं। आज हम बात करने जा रहे हैं ऐसे युवा जोड़ों की जो कमाते तो दोनों हैं पर बच्चा करना ही नहीं चाहते। आजकल समाज में इन्हें डिंक (DINK) कहा जाता है। इसकी फुल फॉर्म है डबल इनकम नो किडिंग (Double income no kidding) या डुअल इनकम नो किडिंग (dual income no kidding). डबल इनकम से मतलब है कमाते तो दोनों हैं पर नो किड मतलब बच्चा नहीं चाहिए। ऐसा क्या है जो इन जोड़ों को मजबूर करता है कि वह बिना बच्चे के ही ज़्यादा खुश हैं और ऐसे ही पूरी जिंदगी गुजार लेंगे।

यह जीवन तो एक रंगमंच है जिसमें हम अपना किरदार निभाने आए हैं। मां-बाप बहुत मेहनत-जतन और प्यार-मोहब्बत से,अपने बच्चों को पाल-पोस कर बड़ा करते हैं और उनके बचपन से ही उनकी शादी का सपना बुनते हैं। उनके विवाह के बाद ना सिर्फ मां-बाप, दादा-दादी या नाना-नानी बनना चाहते हैं अपितु अपने बच्चों को भी मां-बाप का सुख लेते हुए देखना चाहते हैं। ऐसे में जब आजकल की कुछ युवा पीढ़ी कहती है कि हमें तो बच्चा करना ही नहीं है, तो मां-बाप समझ ही नहीं पाते कि उन्हें कैसे समझाया जाए कि जीवन के किसी मोड़ पर, जब उन्हें भी बच्चे की कमी महसूस होगी, तब तक बहुत देर हो चुकी होगी क्योंकि आप की उम्र तो लगातार बढ़ ही रही है और ज़्यादातर, बड़ी उम्र में बच्चा पैदा करना शारीरिक और मानसिक रूप से कई परेशानियों का कारण बन जाता है।

ऐसे युवा ज़्यादातर कईं तरह के तर्क देते हुए मिलते हैं जैसे हमें तो बच्चा चाहिए ही नहीं, हम बिना बच्चे के ज़्यादा खुश हैं। और ना हमारे पास कोई समय है बच्चा पालने का या फिर हम कौन सा इतने बड़े खानदानी र‌ईस या राजा महाराजा हैं कि अपनी विरासत सौंपने के लिए कोई वारिस चाहिए। मैं तो यह कहूंगी कि आप निरे स्वार्थी हैं। अपने स्वार्थ के आगे आप कुछ देख ही नहीं पा रहे हैं। आपको न तो स्वयं की फिक्र है ना ही अपने माता-पिता की और न ही समाज की। और मानव सभ्यता तक तो आप क्या ही सोच पाएंगे? मान लिया आप इकोनॉमिकली यानी आर्थिक रूप से, इतने समर्थ हैं कि आप उम्र भर इंडिपेंडेंट यानी स्वतंत्र रहेंगे। पर इस इकोनॉमिक्स यानी अर्थशास्त्र के आगे भी और बहुत कुछ है जीवन में। इंसान आर्थिक रूप से कितना भी सशक्त क्यों ना हो जाए, पर भावनात्मक और सामाजिक रुप से, उसे दूसरे लोगों की जरूरत पड़ती ही है। जीवन में कभी तो ऐसे क्षण आएंगे, जब आपको बच्चे की कमी महसूस होगी, तब आप क्या करेंगे? क्योंकि जिंदगी में बहुत बार ऐसा समय आता है, जब बच्चे आपको भावनात्मक और नैतिक रूप से सहारा देते हैं। 

जीवन और हाथ की रेखाओं का क्या है, साहिब वह तो पल-पल बदलती हैं। ज़िंदगी का यह कटु सत्य सभी जानते हैं कि जो आया है उसने जाना है। तो जिस जीवन साथी के सहारे आप इस जीवन रुपी नदिया को पार करने की सोच रहे हैं, ईश्वर ना करें अगर बीच मझधार में उसका साथ छूट गया तब आप क्या करेंगे? जीवन की ऐसी अनचाही और अत्यंत कठिन परिस्थितियों में, हमारे बच्चे ही हमें संबल प्रदान करते हैं और ज़िंदगी जीने की प्रेरणा देते हैं। इस बात को हम यूं कह सकते हैं कि जीवन सुरक्षा के लिए, हम बहुत सी पॉलिसियां लेते हैं। ठीक उसी तरह हमारे बच्चे भी, हमारे जीवन रूपी वृक्ष की सुरक्षा पॉलिसी हैं। हम चाहे जितने भी आर्थिक रूप से समर्थ हों, लेकिन बढ़ती उम्र के साथ हमको और ज़्यादा इमोशनल और मोरल सपोर्ट यानी भावनात्मक और नैतिक सहारा चाहिए होता है। वह सुरक्षा, हमको हमारे बच्चे देते हैं। यह तो आप भी जानते हैं कि यह सब पैसे से नहीं खरीदा जा सकता। नौकरी, शादी-ब्याह या किसी अन्य परिस्थिति की वजह से, बच्चे चाहे कितनी ही दूर क्यों ना रहें, फिर भी दिल में एक विश्वास रहता है कि कहीं कोई है हमारा इतना अपना, जो हमारे मन के भाव पढ़ना जानता है। दिल को एक सुकून मिलता है।


बहुत से लोग यह तर्क भी देते हैं कि आजकल तो घोर कलयुग है, हवा ही ऐसी है, बच्चे मां-बाप को पूछते ही कहां है? तो फिर हम बच्चे क्यों पैदा करें? जी नहीं, दोष कलयुग या हवा का उतना नहीं है जितना हम दोषारोपण कर रहे हैं। सृष्टि का नियम है, जैसा प्यार, विश्वास और सम्मान हम अपने बच्चों को देते हैं, ज़्यादातर बच्चे वैसा ही हमें लौटाते हैं। तो हमें अपनी परवरिश और अपने पर विश्वास रखना चाहिए कि हम जैसे संस्कार बच्चों को देंगे, हमारे बच्चे भी वैसे ही संस्कारी बनेंगे और जीवन भर हमारा साथ निभाएंगे। मित्रों मैं तो आपसे यही कहना चाहूंगी कि समय रहते अगर आप अपने जीवन में बच्चों के महत्व को समझ जाएंगे तो आपको अपना जीवन और ज़्यादा खुशियों से भरा हुआ लगेगा। फिर जीवन में कैसी भी परिस्थिति क्यों ना आए, विपरीत हवाएं कितनी भी तेज़ क्यों ना हों, हम उनका सामना कर ही लेंगे। मां बाप और बच्चों के रिश्तों की मजबूती से ही, इंसान के हौंसले बुलंद रहते हैं।

        



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