हमारी जान, जान और इनकी जान, पान
हमारी जान, जान और इनकी जान, पान
भारतवर्ष बहुत से त्योहारों का देश है। अलग-अलग जाति-संप्रदाय के लोग अपने-अपने त्योहार, बहुत श्रद्धा और उत्साह से मनाते हैं। इन त्योहारों पर, जो भोजन ईश्वर की पूजा-अर्चना के लिए बनाया जाता है, वह भी बहुत शुद्ध सात्विक तरीके से बनाया जाता है। ज़्यादातर समुदायों में, त्योहारों पर शाकाहारी भोजन ही बनता है। पर मुझे यह कभी समझ नहीं आया कि लोग सिर्फ त्योहारों पर शाकाहारी और फिर सारा साल मांसाहारी प्रवृत्ति के क्यों होते हैं या फिर पशु-पक्षी में कोई बर्ड फ्लू, इनफ्लुएंजा या अन्य कोई बीमारी आए, तो लोग नॉनवेज खाना छोड़ देते हैं। क्योंकि तब अपनी जान को खतरा होता है। तात्पर्य यह है, जब अपनी जान को खतरा हो, तो खाना छोड़ दो। नहीं तो कोई फर्क नहीं पड़ता। इसका मतलब हमारी जान, जान और इनकी जान, पान। के आपने पान समझ कर, खाने में खा ली। ख़ुद को एक सुई भी चुभे, तो देखिए कितना दर्द होता है और सोचिए आप उस निरीह प्राणी को मारकर, ऐसे मज़े में खाते हैं, ऊपर से जश्न और मनाते हैं।
हैरानी होती है ऐसी सोच पर, जो इस धरती पर रहते हुए, दूसरे प्राणियों का जीवन हर लेते हैं। ऊपर से तर्क यह कि हमने तो नहीं मारा, मारा तो किसी और ने। हमने तो सिर्फ खाया है। हम नहीं खाएंगे, तो कोई और खाएगा। जी नहीं, जब तक आप खाते रहेंगे, तब तक इन निर्दोष प्राणियों की जान जाती रहेगी। बाज़ार का नियम है, जिस चीज़ की मांग होती है, वही चीज़ बिकती है। जब लोग, मांस खाना बंद कर देंगे, तो मांस बिकना ही बंद हो जाएगा। मांस बिकना बंद होगा, तो पशु-पक्षी की हत्या अपने आप रुक जाएगी। जब हम किसी को जीवन दे नहीं सकते, तो हमें किसी का जीवन लेने का भी कोई हक नहीं।
मांसाहारी लोग, शाकाहारी भोजन के बारे में, यह भी तर्क देते हैं कि हमसे तो यह घास-फूस नहीं खाया जाता। लेकिन फिर ऐसा क्यों है, जब बीमार पड़ते हैं या योग साधना करते हैं या शरीर को ज़्यादा चुस्त-दुरुस्त रखने की कोशिश करते हैं, तो शाकाहारी भोजन का रुख़ करते हैं। तब यह नॉनवेज क्यों नहीं काम आता, क्योंकि यह नॉनवेज हमारे शरीर को नुकसान करता है। कहा जाता है, मरने वाले पशु-पक्षी के अंदर जो भाव रहता है, वही भाव खाने वाले के अंदर भी आ जाता है। अब आप इस बात का अंदाज़ा स्वयं लगा लीजिए कि अगर गर्दन पर चाकू रखा हो और सामने मौत निश्चित हो, तो मरने वाले के मन में, क्या भाव आते होंगे? यह सच में बेहद दुखदाई है। किसी भी सजीव की हत्या करना, यह निजी अधिकार क्षेत्र की बात नहीं है। यह तो घोर अपराध है। वह भी इसलिए कि वह जानवर आपको कुछ नहीं कह सकता, अगर वह बोल सकता, तो शायद उसके समाज में भी नियम होते और उसके उल्लंघन पर हमको दंड भी मिलता। ईश्वर की बनाई इस धरती पर जितना हक हमारा है, उतना ही इन पशु-पक्षियों का भी है।
ज़रा सोचिए, जब बच्चे का जन्म होता है, क्या कभी सुना है उसे नॉनवेज दिया जाता हो? उसे कितने समय तक, मां का दूध और दाल-चावल का पानी, आहार के रूप में दिया जाता है। या फिर क्या कभी सुना है, कोई व्यक्ति भयंकर बीमार पड़ा हो, और डॉक्टर कहता हो, नॉनवेज खाइए, आप ठीक हो जाएंगे? जी नहीं, तब डॉक्टर कहता है सादा, हल्का-फुल्का, शुद्ध सात्विक भोजन, फल, नारियल पानी आदि लें, आप जल्दी अच्छे हो जाएंगे। यहां तक कि मृत्यु शैय्या पर पड़े व्यक्ति को भी शाकाहारी भोजन ही दिया जाता है, फिर चाहे वह जीवन पर्यंत मांसाहारी ही क्यों ना रहा हो। सात्विक भोजन में इतनी ताकत है कि यह बीमार व्यक्ति को भी ठीक करने की क्षमता रखता है। सोचिए, कितना महत्व है इस शाकाहारी भोजन का। तो दोस्तों, फिर क्यों हम प्रकृति की इस सौगात से दूर रहना चाहते हैं?
लोग वैसे तो बॉलीवुड और हॉलीवुड के सेलिब्रिटीज की बातों का बहुत अनुसरण करते हैं, पर जब वह नॉनवेजिटेरियन से वेजिटेरियन होते हैं, तो उनकी नकल करना मुश्किल लगता है। अरे साहेब, यह किसी और का नहीं, हमारी खुद की सेहत का मामला है और पशु-पक्षियों के जीवन जीने के हक का मामला है और देखा जाए तो दोनों ही बातें महत्वपूर्ण हैं, हमारी सेहत भी और पशु पक्षियों का जीवन भी, बस बात उनको बराबरी का अधिकार देने की है, इको सिस्टम में उनकी अहम भूमिका समझने की है।
तो मित्रों, यह तो तय है जितना कष्ट, हम दूसरे प्राणियों को देंगे, उतना ही कष्ट हमको भी भोगना पड़ेगा। सृष्टि का नियम है जैसा हम देंगे, वैसा ही हमको मिलेगा। अगर हम अच्छा करेंगे तो अच्छा ही भोगेंगे। और अगर हम इन प्यारे पशु-पक्षियों को प्यार नहीं दें सकते, उनको इस संसार में बराबरी का अधिकार नहीं दे सकते, तो कम से कम हम उनकी हत्या में भागीदार बनने का पाप क्यों अपने सर लें?
कैसी विडंबना है जब कोई पशु या पक्षी एंडेंजर्ड स्पीशीज यानी लुप्तप्राय प्रजातियों की सूची में आ जाता है। तभी सब देशों की सरकारों की नींद खुलती है और उसका सरंक्षण शुरू होता है। काश! समय रहते, हम यह बात समझ लें, तो पृथ्वी पर सभी पशु-पक्षियों का जीवन खूब फले फूलेगा। अंत में, मैं यही कहना चाहूंगी, धरती पर पाए जाने वाले सभी प्राणी जात का, यदि हम भक्षण की बजाए, संरक्षण करेंगे, तभी अपना जीवन धरती पर बचा पाएंगे।