suvidha gupta

Abstract Inspirational Children

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suvidha gupta

Abstract Inspirational Children

धप्पा

धप्पा

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  याद है... बचपन में किसी का पीछे से आना या फिर दरवाज़े या पर्दे के पीछे खड़े होकर, छिपना और फिर धीरे से निकलकर, ज़ोर से धप्पा कहना। एक बार तो हमने डरना, फिर सबने खिलखिला कर हंसना। सच.. कितनी ढेरों.. प्यारी-प्यारी, असंख्य यादें, इस धप्पा के साथ जुड़ी हुई हैं। कोई याद मां के साथ, तो कोई बहन के साथ, कोई भाई के साथ, तो कोई मित्र के साथ। अगर लिखने बैठूं, तो शायद हर धप्पा की एक अलग कहानी बयां हो। क्योंकि हमारी इस धप्पा में न कोई मेहनत, न कोई जतन, न कोई समय की किल्लत और न ही कोई भागदौड़ जुड़ी हुई थी। बस.. पल भर का आनंद था, जो हमें दिन भर तरो-ताजा रखता था और हमारी यादों के ख़ज़ाने में, जाने-अनजाने, ना जाने कितनी स्मृतियां जोड़ता था।

 अब समय बदल गया है और हमारी उम्र भी तो बचपन वाली कहां रही। आज की पीढ़ी में, इस धप्पा का अलग ही रूप है। आजकल के बच्चे भी बहुत हैरान करने लगे हैं। बीत्ते भर के होते नहीं, सरप्राइस पार्टी की समझ आने लगती है, जब घर आकर मम्मी-पापा से कहते हैं कि हमने अपने मित्र को सरप्राइस पार्टी देनी है। अरे भई, जिसको सरप्राइस पार्टी देनी है उसकी मां से भी तो पूछ लो, वह कितनी तैयार है इस सरप्राइस पार्टी के लिए। वैसे आपको बता दूं, सरप्राइस पार्टी को हिंदी में विस्मयकारी उत्सव कहते हैं। एक बार मेरी बिटिया की सहेलियों का फोन आया कि आंटी हमें अपनी दोस्त को सरप्राइस पार्टी देनी है। पहले तो मैं ही अचंभित हो गई कि अब इनका सरप्राइस मुझ पर बहुत भारी पड़ने वाला है। खैर, तब जैसे-तैसे बच्चों का सरप्राइज निभाया। 

 वर्तमान समय की पीढ़ी में सरप्राइस पार्टी का चलन, बहुत तेजी से घर कर रहा है। हमें तो आज तक कभी समझ ही नहीं आया। टिकेटिके प्लैंड पार्टी यानी सुनियोजित उत्सव करने में क्या दिक्कत है। हम ज़्यादा बेहतर ढंग से सब तैयारी कर सकते हैं। आपने एक मिनट के आश्चर्य वाले आनंद के चक्कर में, जो पहले तैयारी करने का असीम उत्साह रहता है, वह तो खो ही दिया। अब जब पार्टी की योजना पहले से नहीं थी, तो फिर बाद में भागमभाग मचेगी ही, क्योंकि मेज़बान को तो पता ही नहीं रहता कि कितने मेहमान आ रहे हैं। और अगर बच्चे, बड़ों को ऐसा कोई सरप्राइस देने लगें, तो कितनी बार यह देखने में आता है कि बड़े सारा दिन तो यह सोचते हैं कि उनका विशेष दिन किसी को याद ही नहीं। देर.. शाम, जब तक बच्चों की सरप्राइस पार्टी शुरू होती है, तब तक, उनके सोने का समय आ जाता है। तो उनके लिए, उस समय तक, उस सरप्राइस पार्टी का महत्त्व ही नहीं रह जाता।

  मुझे तो ऐसा लगता है कि सरप्राइस पार्टी किसी सिरदर्द से कम नहीं। वैसे ही लोग बाहर का इतना खाने लगे हैं कि सेहत का तो बस पूछिए मत। अब जब आनन-फानन में इतने सारे खाने की तैयारी तो संभव नहीं, फिर बच्चे-बड़े सब बाहर का खाना ही ज़्यादातर खाएंगे और अपनी सेहत बिगाड़ेंगे। और इस सरप्राइस पार्टी के नाम पर, हमने पर्यावरण को जो नुकसान पहुंचाया, वह तो हमने नजर-अंदाज ही कर दिया। कुछ लोगों को तो हैरानी भी हो रही होगी कि पर्यावरण को नुकसान! वो कैसे? डिस्पोजेबल क्रोकरी, फ्रोजन फूड, पैकेजिंग मैटेरियल, डेकोरेशन, टिश्यू पेपर्स आदि सब हमारे पर्यावरण के लिए अत्यंत हानिकारक तत्व हैं। यह सब नॉन बायोडिग्रेडेबल वेस्ट हैं। ज़रा सोचिए, पल भर के आनंद के लिए हमने मां प्रकृति का कितना नुकसान किया। 

 आजकल एक तरफ तो, अगर किसी से मिलने जाना हो, तो पहले बता कर, समय लेकर जाओ और दूसरी तरफ यह सरप्राइस पार्टी। मुझे तो दोनों ही बातें एक दूसरे के ठीक विपरीत प्रतीत होती हैं। हम पहले जमाने की तरह क्यों नहीं रह सकते, कि जब किसी से मिलने को मन करें, तो बिंदास चलें और अगर कोई उत्सव मनाना है तो सब मिलकर पूरी तैयारी के साथ मनाएं। अब देखिए ना... तेज़ रफ़्तार जिंदगी के साथ ज़्यादा रफ़्तार पकड़ी, तो जिंदगी में कितनी मुश्किलें पाल लीं, कोई सेहत से जुड़ी तो कोई मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी। इसलिए अनुभव कहता है, हर पल में ठहर कर, हर पल का आनंद लीजिए और ज़िंदगी को महसूस कीजिए। ज़्यादा सरप्राइस के चक्कर में, एक दिन ज़िंदगी ही हमें सरप्राईज देने खड़ी हो जाती है।

इसलिए अंत में, मैं तो यही कहना चाहूंगी,जैसे हम अपने बच्चे की शादी की योजना बनाते हैं, तो शादी सिर्फ दो-चार दिन की नहीं, क‌ईं महीनों की होती है। धीरे-धीरे हम सब तैयारियां करने का जो सुख उठाते हैं, वह भुलाए नहीं भूलता। तो दोस्तों, उसी तरह अगर हम यह सरप्राइस पार्टी की जगह सुनियोजित यानी प्लैंड पार्टी करेंगे तो उसका अधिक आनंद ले पाएंगे और पर्यावरण को संभालने में अपना बहुमूल्य योगदान दें पाएंगे।


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