suvidha gupta

Abstract

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suvidha gupta

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क्योंकि मेरा बर्थडे आया

क्योंकि मेरा बर्थडे आया

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 जन्मदिन यानी जिस दिन आप का जन्म हुआ। साल में तीन सौ पैंसठ दिन हैं, तो रोज़ लाखों करोड़ों, असंख्य लोगों का जन्मदिन तो होता ही है। अगर आपसे कोई पूछे कि आपके लिए इसका क्या महत्व है? आप कहेंगे, "जन्मदिन है इसीलिए ख़ास तो होगा ही।" पर आप मुझे एक बात बताइए, आपका इस दिन में क्या योगदान है? आपके माता पिता के लिए इस दिन की अहमियत समझ आती है कि उन्होंने आप को जन्म दिया। आपको वह इस दुनिया में लाए। पर आपने ऐसा क्या महान काम किया, जो आप इस दिन को इतना खास समझ रहे हैं। यह आपके माता-पिता की उपलब्धि है तो आपका इसमें क्या सहयोग? आप इस दिन को इतना विशेष समझ रहे हैं तो इसका मतलब साल के बाकी दिन क्या आपके लिए व्यर्थ हैं? उनकी आपके जीवन में कोई महत्ता नहीं?

     ऊपर से आजकल यह नई परंपरा चली है। रात को बारह बजे जन्मदिन मनाने की। मुझे एक बात और समझाइए, क्या अगला दिन नहीं चढ़ेगा? आपके तो अगले दिन की ही प्रासंगिकता ज्यादा है ना, तो फिर आधी रात को जन्मदिन मनाने का क्या औचित्य? सूर्य देवता के निकलने का इंतजार तो कीजिए। आपके लिए तो यह साल का सबसे बड़ा त्यौहार है। और हमारे भारतीय समाज में आधी रात को त्यौहार मनाने की परंपरा तो नहीं है। यह बेढंगापन हमारी समझ से तो बिल्कुल बाहर है। पहले तो आधी-आधी रात को जागकर जन्मदिन मनाएंगे, फिर अगले दिन देर से उठेंगे। मां बाप के पूछने पर, रौब और जमाएंगे कि रात को तो देर तक जन्मदिन मनाया है तो फिर सुबह जल्दी कैसे उठें? क्यों, किसी पंडित ने कहा था, आधी रात को जन्मदिन मनाने को या हमने कहा था? मतलब जब शरीर को विश्राम करना चाहिए, तो आपने उसके साथ ज्यादती की और उसे सोने नहीं दिया। फिर जब ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सूर्य देवता के दर्शन करने चाहिएं, तब आप पड़े अपनी खटिया में सो रहे हैं। सबसे पहले तो आप अपने शरीर के साथ अत्याचार कर रहे हैं, दूसरा आप प्रकृति के नियमों का सर्वथा उल्लंघन कर रहे हैं। तीसरा, क्या कभी आपने सोचा है कि आप अपनी आने वाली पीढ़ी को क्या आदर्श सिखाएंगे?


बत्तियां बुझा कर, केक काटकर, जन्मदिन मनाने की, पश्चिमी देशों की परंपरा आपको बहुत लुभा रही है और अपने देश की संस्कृति आप भूलते जा रहे हैं। ऊपर से तुर्रा यह कि आपको कोई कुछ कहे भी नहीं। वैसे आपको याद दिला दूं हमारे यहां दिए और मोमबत्तियां जलाकर उत्सव मनाने का रीति रिवाज है ना कि बुझा कर। वह तो अपशगुन माना जाता है और केक पर फूंक मारकर तो आपने उसे पहले ही जूठा कर दिया। जबकि भारतीय रीति के अनुसार सबसे पहले सुच्चा भोजन ईश्वर को भोग लगाकर ही वितरित किया जाता है। 


और सोने पर सुहागा, अब आप अपना यह केक सबके चेहरों पर लगाकर, अन्न और धन की जो बर्बादी कर रहे हैं, वह तो आपसे कोई पूछने वाला है ही नहीं। मुझे तो ऐसा प्रतीत होता है जैसे आपने अपने आने वाले नए साल का स्वागत, मुंह पर कालिख लगाकर किया हो। आप कहेंगे हमारा पैसा, हम जैसे भी इस्तेमाल करें। जी हां बिल्कुल सही कहा, आपका पैसा आप जैसे भी इस्तेमाल करें, लेकिन नैसर्गिक संसाधन यानी जिसे इंग्लिश में नेचुरल रिसोर्सेज कहा जाता है, वह देश के हैं और उन को बर्बाद करने का हक किसी भी नागरिक का नहीं है फिर चाहे वह कितना ही पैसे वाला क्यों ना हो? 


 दूसरे देशों के मैसेज तो बहुत फॉरवर्ड करते हो कि फलां-फलां देश में होटल में जूठा खाना छोड़ने पर जुर्माना लगता है, लेकिन जब अपनी बात आती है तो सब दार्शनिकता धरी की धरी रह जाती है। तब कहते हो हमारा केक हम खाएं या मुंह पर लगाएं हमारी मर्जी। यहां मैं स्पष्ट कर देना चाहती हूं कि मैं केक खाने के विरुद्ध नहीं हूं।आपको केक पसंद है तो खूब शौक से खाइए, केक खाने को कोई मना नहीं कर रहा है। लेकिन यह कहां लिखा है कि जन्मदिन केक के बगैर नहीं मनाया जा सकता। हलवा, खीर, रबड़ी, जलेबी, गुलाब जामुन, बर्फी आदि ढ़ेर सारे मीठे व्यंजन हैं हमारे यहां, कुछ भी मज़े से बनाइए, जितना चाहे खाइए और दूसरों को खिलाइए।

सिर्फ यह कह कर कि आज कल तो जन्मदिन ऐसे ही मनाया जाता है आप बच नहीं सकते। गलती शायद हमारी पीढ़ी की भी है कि हमने समय रहते आपको यह सब करने से नहीं रोका। यह सोचा कि घर में शांति बनी रहे, जैसा बच्चों को अच्छा लगता है, उन्हें वैसा करने दो। वो कहते हैं ना कि किसी को उंगली पकड़ाओ तो वह 'पहुंचा' ही पकड़ लेता है। बस वही हाल आजकल की ज़्यादातर पीढ़ी का है। अब तो हर चीज की अति हो रही है।


जन्मदिन आपके लिए महत्वपूर्ण है पर जन्मदाता नहीं। मां-बाप तो जन्म देकर किनारे हो गए। जिन्होंने आप को जीवन दिया, आप उनके लिए कुछ करें तो आपका जन्मदिन सार्थक है। नहीं तो यह बेकार का शोर-शराबा करके जो आप ढोल पीट रहे हैं, क्योंकि मेरा बर्थडे आया, क्योंकि मेरा बर्थडे आया, वह तो निरा व्यर्थ है। जन्मदिन मनाना है तो अपने भारतीय रीति-रिवाज़ से मनाओ, ना कि पश्चिमी देशों का अनुकरण करके। प्रातः काल सूर्य देव के दर्शन करके, अपने इष्ट को याद कीजिए। जितना हो सके दान कीजिए और स्वयं को केंद्रबिंदु न मानकर अपने परिवार और समाज के कल्याण के लिए कोई भी शुभ कार्य कीजिए। फिर देखिए आपका जन्मदिन आपके लिए वास्तव में मंगलकारी होगा और ईश्वर आपको दिल से आशीर्वाद देंगे। अपनी संस्कृति से जुड़े रहिए आपको भी अच्छा लगेगा।



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