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V. Aaradhyaa

Abstract Children Stories Action

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V. Aaradhyaa

Abstract Children Stories Action

वर्क फ्रॉम होम... आसान नहीं

वर्क फ्रॉम होम... आसान नहीं

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सौम्या आज अपने आप क़ो बहुत लकी महसूस कर रही थी क्योंकि आज से उसने अपना ऑनलाइन कोचिंग क्लास शुरू किया था।

शादी के पहले भी वो एक स्कूल में पढ़ाती थी। फिर शादी के तुरंत बाद सासुमा की तबियत इतनी ख़राब हो गई कि नई नवली दुल्हन के हाथों की मेहँदी उतरने से पहले ही उसे रसोई संभालनी पड़ गई थी। सौम्या क़ो आज भी याद है वो दिन... ज़ब शादी के बाद सासुमा ने उसे बुलाकर कहा था,"सौम्या ! अब तुम इस घर की बहू ही नहीं बेटी भी हो। ये तुम्हारे लिए बहुत कठिन समय है कि मधुमास के दिनों में पूरे घर की ज़िम्मेदारी तुम्हें उठानी पड़ रही है। मैं सब समझा दूँगी। तुम उसी अनुसार कार्य करना !"सौम्या क्या कहती। चुपचाप सर झुकाकर सुनती रही। सिर्फ इतना ही निकला उसके मुँह से,"जी, मम्मी ! मैं कोशिश करुँगी कि आपलोगों क़ो मेरे काम से कोई शिकायत ना हो !"बदले में सासुमां ने उसे पास बुलाकर सर पर हाथ फेरकर आशीर्वाद के साथ घर की चाबी पकड़ा दी थी। तबसे वह घर बहुत अच्छे से संभालना सीख गई थी।

बाद में ससुरजी, पतिदेव और छोटे देवर समर ने भी बहुत साथ दिया था। इस तरह सौम्या शुरुआत में ही पक्की गृहस्थन बन गई थी। फिर मम्मीजी ठीक हुईं तो कुछ महिनों बाद ही वह प्रेग्नेंट हो गई थी। फिर तो अंशु के बाद कुक्कू दो बच्चों की खिलखिलाहट से घर भर गया था। इस व्यस्तता में नौकरी का ख्याल तो बहुत बार आया पर तभी बच्चे बहुत छोटे थे। इसलिए उनकी परवरिश में सौम्या ने खुद क़ो पूरी तरह खपा दिया था। अब छः महीने पहले रवि की कंपनी ने एक नया ब्रांच विजयवाड़ा के सुदूर रिमोट जगह में खोला तो रवि की नौकरी इसी शर्त पर रहने दी कि उसे विजयवाड़ा ज्वाइन करना पड़ेगा। बस सवाल रोजी रोटी का था इसलिए रवि सौम्या, अंशु एवं कुक्कू क़ो अपने साथ ले आया था। जगह पसंद आई थी सौम्या क़ो और लोग भी। सीधे, सच्चे, और मदद क़ो तत्पर। वहाँ की आबोहवा भी अच्छी थी। अब सौम्या का बहुत मन करता जॉब करने का। कोरोना महामारी के प्रकोप से वैसे ही अधिकांश शैक्षिक संस्थान बंद थे। सो किसी स्कूल में जाकर पढ़ाना अभी तो सम्भव नहीं था। सो बहुत सोचसमझकर सौम्या ने ऑनलाइन कोचिंग क्लास शुरू करने का निश्चय किया। पहले अच्छे से विषय वस्तु की तैयारी की। अच्छे से नोट्स बनाए और संभावित प्रश्न- उत्तर क़ो अलग से साफ साफ लिखा। एक दिन लिंक्ड इन के ज़रिये एक कोचिंग इंस्टिट्यूट ने सौम्या से सम्पर्क किया और क्लास के समय और सैलरी दोनों की बात पक्की हो गई। ज़ब सौम्या सब कुछ फाइनल कर रही थी तो उसकी कुछ सहेलियों ने उसे समझाया कि इतने छोटे बच्चों क़ो लेकर क्लास ले पाना उसके लिए शायद संभव ना हो। पर सौम्या ने ठान लिया था कि करना है तो करना है बस। कोचिंग क्लास शुरू किया तो दोनों बच्चों ने पहले ही दिन बहुत परेशान किया। जैसे ही तैयारी करके बैठी कि पीछे से अंशु आकर गले से लिपट गया,"क्या कर रही हो मम्मा ?"उसे पुचकार कर बैठाया ही था कि कुक्कू ने सोच लिया कि आज तो मम्मी की तरह सजना संवरना है, सो सौम्या का कॉमपेक्ट और लिपस्टिक दोनों के रंग कुक्कू के गाल और होंठ के साथ आपस में भी मिल गए। मेकअप करते हुए थोड़ा पाउडर कुक्कू की आँखों में चला गया तो वह जोर से चिल्लाई,"मम्मा !

जल्दी आओ"अभी स्क्रीन पर इंट्रो शुरू ही हुआ था कि सौम्या क़ो कुक्कू के पास दौड़कर जाना पड़ा। वहाँ बेडरूम का नज़ारा देखकर उस स्थिति में भी सौम्या क़ो हँसी आ गई। कुक्कू तो मम्मा क़ो देखते ही आकर लिपट गई और उसके कपड़े बदलते, मुँह हाथ धुलाते दस मिनट और खर्च हो गए। खैर, दोनों क़ो कमरे में बैठाकर पिक्चरबुक थमाकर ज़ब तक आई तो हड़बड़ी में सीधे टॉपिक पढ़ाना शुरू कर दिया। खैर, जैसे तैसे करके अगले सात आठ मिनट में क्लास खत्म ही होनेवाला था कि कुक्कू और अंशु में किसी बात पर झगड़ा हो गया। दोनों के रोने झगड़ने की आवाज़ आने लगी तो मज़बूरन सौम्या क़ो काम स्थगित करना पड़ा। उस रात बच्चों के सोने के बाद सौम्या सोच रही थी बच्चों की शरारतों के साथ तो क्लास लेना संभव नहीं हो पायेगा। फिर क्या करे ? अगर उनकी देखभाल के लिए किसीको रखती है तो जितना पैसा कमाएगी नहीं उससे ज़्यादा तो बच्चों की आया क़ो ही देनी पड़ जाएगी। मतलब ये आइडिया भी ठीक नहीं। बाद में सबने कहा कि,वर्क फ्रॉम होम में बच्चों क़ो लेकर परेशानी के ऊपर एक ब्लॉग लिखो तो सही रहेगा। कोई कहे, उन्हें सुबह जल्दी जगा दो तो दोपहर में दोनों थककर सो जायेंगे फिर शांति से ले लेना क्लास। किसी शुभचिंतक ने तो यहाँ तक कह दिया कि...."छोड़ो यह सब, तुम्हारे बस का नहीं "मतलब जितने लोग उतनी सलाह।

पर सौम्या ने अपनी स्थिति क़ो देखते हुए अपने कैरियर का फैसला किया। उस दिन बच्चे पेंटिंग करते हुए एक दूसरे के साथ बड़ी मस्ती कर रहे रहे तो सौम्या ने उनका वीडियो बना लिया। फिर रात में अपने सोशल मिडिया अकाउंट पर अपलोड कर दिया। सुबह तक उस वीडियो पर इतने व्यूज थे कि सौम्या चौंक गई। रवि क़ो दिखाया तो उसने कहा,"वाह... बहुत अच्छा लग रहा है। तुम इसे यू ट्यूब पर क्यों नहीं डाल देती? क्यूँकि इसमें तुमने जिस तरह बाद में बच्चों क़ो पेंट, ब्रश रखना सिखाया है, वह बहुत महत्वपूर्ण जानकारी लिए हुए है। ऐसे वीडियोज पर अगर व्यूज ज़्यादा आते हैं तो ऐड एजेंसी वाले खुद कांटेक्ट करते हैँ !"इधर रवि बोल रहा था, उधर सौम्या के दिमाग में आइडिया के बहुत सारे बल्ब एक साथ जल उठे थे। यूँ एकदम से टिचिंग छोड़कर यूट्यूबर बन जाना मतलब जॉब स्विच कर जाना सौम्या के लिए आसान नहीं था। पर बाद में ज़ब लोगों ने उसके वीडियो क़ो बहुत पसंद किया तो उसके वीडियो पर ऐड भी खूब आने लगे। अब सौम्या काम करते हुए भी कंटेंट सोचती रहती और माँओं के रोज़मर्रा की परेशानियों पर अपने अनुभव लिखती फिर उनका वीडियो बनाकर यू ट्यूब पर डालती। इसमें बच्चे भी उपेक्षित नहीं होते, सौम्या के समय का भी सदुपयोग होता और पैसे आते सो अलग। बच्चे ज़ब उसे उसे बहुत परेशान कर रहे होते तो सौम्या परेशान हुए बिना उसका भी वीडियो बना लेती फिर शैतान, नटखट बच्चों से कैसे निपटेँ इसी बात पर अपना संदेश तैयार करती तो लोगों क़ो बहुत पसंद आता। आज वह बहुत खुश थी क्योंकि बच्चों की शैतानियाँ अब वो वीडियो में कवर करने लगी थी और इस तरह सौम्या का डबल्यू.एफ.एच. मतलब वर्क फ्रॉम होम सफल रहा था। साथ ही सौम्या इस बात का बहुत ध्यान रखती कि वीडियो बनाते हुए या कुछ पोस्ट करते हुए कोई परसनल बात या बच्चों क़ो अनावश्यक एक्सपोज़ ना किया जाए। अपने नाम की तरह सौम्य सौम्या अपने काम में एक उत्कृष्टता बनाए रखती थी।

जल्दी ही गृहणी और माँओं के बीच सौम्या की एक अलग पहचान बन गई। अब तो उसके पास कई माताओं के बच्चों की परवरिश संबन्धी जिज्ञासा भरे सवाल भी आते। कुछ दिनों में ज़ब एक मैगज़ीन वाले ने उसका इंटरव्यू लिया और उसके पब्लिश. होने के बाद सौम्या अपनी हमउम्र महिलाओं में एक उदाहरण समझी जाने लगी थी। अब सौम्या खुश थी... बहुत खुश... क्यूँकि वह काम के साथ अपने बच्चों की परवरिश भी कर पा रही थी। सौम्या क़ो इतना खुश देख उस दिन रवि ने उसे प्यार से छेड़ दिया, यह कहते हुए कि,"बच्चों के बाद तुम एक और वीडियो बनाओ कि,व्यस्त रहने पर भी पति का ख्याल कैसे रखें,देखना सब इसे बहुत पसंद करेंगे !"इस बात पर सौम्या बोली,"सबके पति तुम्हारी तरह इतने सपोर्टिव थोड़े ना होते हैं,और फिर तुम्हें तो बहुत प्यार करके खुश रखना पड़ता है। ना... बाबा... ना...मैं अपने भोले भाले पति की तारीफ करके उसे औरों की नज़र में नहीं लाना चाहती। जो कोई सौतन बन जाए तो !"सौम्या ने यह बात इतने नाटकीय ढंग से कही थी कि रवि क़ो बहुत हँसी आ गई। उन दोनों क़ो यूँ हँसता हुआ देखकर दोनों बच्चे अंशु और कुक्कू भी खिलखिलाने लगे। जिस तरह सौम्या ने खुद क़ो व्यस्त और खुश रखने के साधन जुटाए तभी उसके माथे पर काम का बोझ नहीं है बल्कि वह खुशी ख़ुशी काम करती है। वैसे ही मैं कहना चाहती हूँ कि..."अगर बच्चे छोटे हैँ और पूरे समय का काम नहीं कर सकते तो महिलाओं क़ो हर संभव प्रयास करना चाहिए कि बच्चों की परवरिश के साथ अपनी पहचान भी क़ायम रखें !"याद रखिए....जिस तरह हम माँओं क़ो अपने बच्चे की एक पहचान से ख़ुशी मिलती है और हमारा मन आनंद से झूम उठता है यह सुनकर ज़ब कोई हमारे बच्चों की उपलब्धियां गिनवाकर हमारा परिचय करवाता है कि....वो देखो टॉपर की मम्मी जा रही है....वैसे ही हमारे बच्चों क़ो भी बहुत ख़ुशी होती है ज़ब वो अपने पिता और माता के किसी विशेष उपलब्धि की वजह से एक अलग पहचान पाते हैँ....जैसे कोई बच्चे से कहता है कि....अच्छा... वो तुम्हारी मम्मी हैँ वाओ...तो यक़ीन मानिये हमारा कठिन परिश्रम बच्चों का सर गर्व से ऊँचा कर देता है। इसके अलावा.... हम माँओं क़ो खुद बहुत ख़ुशी मिलती है। गृहस्थी में आर्थिक भागेदारी के साथ आत्मविश्वास भी बढ़ता है।


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