वो मनहूस इमली तालाब
वो मनहूस इमली तालाब


वो मनहूस रात भुलाये नहीं भूलती, कुछ गलतिया हमारी भी थी, अभी अभी तो हमारा बचपना गया था और जवानी ने हमारा स्वागत कर रही थी।
कहते है ये उम्र सबसे ज्यादा एनर्जिटिक और खतरनाक होता है, इस उम्र में हम सबका मज़ाक उड़ाते है, खुद को सबसे ज्यादा समझदार और ताकतवर समझते है।
पर यही तो ग़लती करते है, मेरा नाम ऋषि है, और मैं बुलंद शहर के एक गाँव में रहता हूँ, मेरी उम्र १७ साल है। हम 4 दोस्त रोज़ अपने गाँव से बहार दूसरे गाँव क्रिकेट खेलने जाते थे, कुछ लड़के दूसरे गाँव से भी आते थे, हम सब साइकिल से आना जाना करते थे। मुझे आज भी याद है, हमारे गाँव और दूसरे गाँव के बीच ही उस पतली सड़क के बराबर से ही लगा हुआ वो इमली तालाब था। उस तालाब के किनारे बहुत से इमली के पेड़ थे शायद इसलिए उसका नाम इमली का पेड़ था। गाँव के लोगो का कहना था कि यहाँ कई लोगो ने या तो डूब कर या इन पेड़ो पर फाँसी लगा के आत्महत्या की है। ये तालाब मनहूस है शाम को अँधेरा होने के बाद यहाँ कोई जाना पसंद नहीं करता था, कोई जाये भी कैसे एक दम जंगल सुनसान जगह में पसरा हुआ था ये तालाब।
उस दिन हम क्रिकेट खेलकर ६ बजे तक फ्री हो गए थे हम, और उस दिन क्रिकेट में हमें 50 रुपये भी जीते थे। मेरे दोस्त संदीप और विजय तो अपनी साइकिल से घर चले गए, पर मेरे और मेरे दोस्त सोनू के दिमाग में कुछ अलग खिचड़ी पक रही थी।
सोनू ने कहा - भाई आज 50 रुपये मैच में जीते है तो आज कुछ तूफ़ानी करते है,
मैंने कहा - अबे बकलोल का तूफानी करेगा रे।
सोनू - अरे आज सिगरेट पीते है साला मजा आ जायेगा।
मैंने कहा - अगर पकड़े गए न बेटा तो मज़ा न सजा बन जाएगी, एक बार फिर से सोच लो।
सोनू - अरे यार इतना डरेंगे तो जियेंगे कैसे हम बच्चे थोड़े ही है, फिर भी अगर तुम को डर लगता है न कि कोई देख न ले तो ....तो हम इधर तालाब के किनारे सिगरेट पी लेंगे।
इधर तो कोई नहीं आएगा न जी... अब खुश।
मैंने कहा - पागल तो नहीं हो गए हो सिगरेट पीने के चक्कर में वो तालाब मनहूस है सुने नहीं हो क्या ...
सोनू ( हँसते हुए ) क्या बच्चों वाली बात कर रहे हो ऋषि ये सब कहानियाँ बच्चों के लिए बनाई जाती है भूत भूत कुछ नहीं होता।
नाम ऋषि है और डरते भूतों से है ( हँसते हुए मज़ाक उड़ने लगा )
मैं भी उसके साथ जाने को तैयार हो गया, क्या करता हमारा पहली बार था इसलिए 2 सिगरेट ख़रीदे, और पहुँच गए तालाब।
सात बजने वाले थे, अंधेरा होने लगा था झींगुरों की आवाज़ शुरु हो गई थी, वहां पहुँचने के बाद चाँद नहीं दिखा तो एहसास हुआ, अरे यार आज तो अमावस्या है। मेरी तो बैंड बजी पड़ी थी पर जवानी का जोश था, हिम्मत दिखानी थी सोनू को। तो मैं भी उसके साथ अपना डर छिपाये चला गया।
दोनों ने सिगरेट जलाई और पीने लगे, वही तालाब के किनारे बैठ गए थे हम। तभी तालाब में हमने कुछ तैरता देखा, शायद कागज़ के दोने में कोई दिया जला कर पानी में छोड़ गया था। थोड़ी देर उसे देखते रहने के बाद मुझे अचानक से आभास हुआ कि इस तालाब पर तो कोई नहीं आता है, वो भी रात को तो फिर ये किसकी हरकत है।
मैंने डरते हुए सोनू से कहा - सोनू देख मेरे भाई घर चलते है, जितनी सिगरेट पी ली वही बहुत है।
सोनू - अरे ऋषि तू डर क्यूँ रहा है।
ऋषि - अरे तालाब में देख वो दीया ,
सोनू ने दीया को देखा फिर हँसते हुए बोला अब तू देख उस दीये को ...
देख क्या होता है, ये कहकर सोनु ने एक पत्थर उठाया और उसने उस दीया को निशाना लगाकर मारा।
मैं चिल्ला चिल्ला कर उसे मना कर रहा था पर वो नहीं माना।
पत्थर जैसे ही उस दिया पर लगा, चमगाड़ो की आवाज़ गूंजने लगी चमगादड़ पूरे तालाब के ऊपर उड़ने लगे। वो दीया या तो बुझ गया था या ग़ायब हो गया था पता नहीं। तभी कुत्तों की रोने की आवाज़ आने लगी हवाएँ तेज हो गई ये सब क्या हो रहा था, अब तो सोनू भी डर गया था, हम दोनों डर के मारे खड़े हुए और वहां से भागने लगे। तभी सोनू की तेज़ चीखने की आवाज़ आई। मैं अब तक भाग ही रहा था पर सोनू की चीखने की आवाज़ से मैं पीछे मुड़ा तो देखा।
कोई अदृश्य शक्ति सोनू के पैरो को पकड़ कर घसीटती हुई तालाब में ले जा रही है मैं चिल्लाता रहा छोड़ दो उसे। हमें माफ़ कर दो अब हम कोई ग़लती नहीं करेंगे। पर वो अदृश्य शक्ति सोनू को तालाब के अंदर ले गई। मैं रोता बिलखता रहा पर कोई फ़ायदा नहीं हुआ। 15 मिनट बाद मैंने सोचा मैं घर जाकर सबकुछ सबको सच सच बता दूँगा। मैं घर की तरफ कदम बढ़ाये ही थे कि सोनू ने पीछे से रोते हुए मुझे आवाज़ दिया।
ऋषि भाई मुझे भी ले चल मेरे साथ बहुत बुरा हुआ है, मैं उसे अपने साथ घर ले आया मैं अंधेरे में उसकी हालत देख नहीं सका पर वो कीचड़ में सना हुआ था नाक और कान में कीचड़ भर चुका था। मैं भी उस वक़्त क्या करता फटाफट उसे घर ले गया उसको उसके घर के बहार छोड़ के मैंने उससे कहा कि अच्छे से नहा ले नाक कान का कीचड़ सब जल्दी साफ़ कर ले और ये बोल कर मैं घर चला गया। पूरी रात मुझे नींद नहीं आई, सुबह सुबह उठते ही मैंने सारी बातें अपने घर पर बता दी। ये बातें सुनकर मेरे पापा माँ भैया सब बहुत गुस्सा हुए और मुझे लेकर पहले सोनू के घर गए कि पता चले सोनू की क्या हालत है।
जब सोनू के घर गए तो सब परेशान थे सोनू कल से घर ही नहीं आया था, सब पुलिस ऍफ़ आई आर करवाने की सोच रहे थे। तभी वहां हम पहुँच गए। पापा ने सारी बात सोनू के घरवालों को बताया। उसकी माँ तो सुनते ही छाती पीट पीट कर रोने लगी। गाँव के कुछ लोग इकट्ठा हुए जिसमे मैं मेरे और सोनू के पापा भी थे। हम सब उसी मनहूस इमली तालाब पर गए, जहाँ ये सब घटना हुआ था। सोनू की लाश वही कीचड़ में सनी हुई मिली, नाक मुँह और कान में बहुत बुरी तरह से कीचड़ ठूसा गया था। पुलिस भी आई पर कुछ समझ नहीं आया। पुलिस वालो का कहना था कि ये मौत पानी में डूबने से हुई है। पर मुझे पता था कि मौत हुई नहीं मारा गया था। तब से मैं कभी उस तालाब की ओर कभी नहीं गया ...
क्या आपके इधर भी है कोई तालाब ध्यान रखना ....