वो लड़की

वो लड़की

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एक कत्थई आँखों वाली सुंदर मासूम सी लड़की दो चार दिन से गुज़रती है मेरे करीब से, ठीक उसी समय जिस समय मेरी आँफिस की गाड़ी मुझे लेने आती है, नम नैंना अस्त व्यस्त बाल मौन लबों पर असंख्य सवाल कहना है शायद उसे किसी को कुछ। मैं रोज़मर्रा देखता हूँ वो रुंआसी सी तकती रहती है मुझे कहूँ ना कहूँ की कशमकश से घिरी, ऐसा लगता है पूछने है कई सवाल उसे मुझसे मानों दिल के भीतर एक ज्वालामुखी धधकते पड़ा है उसके। जैसे सारा का सारा दर्द बह जाए तो कुछ हल्का हो दिल पर पड़े नश्तर का भार। 


एक दिन मुझे आँफिस से आते-आते रात के बारह बज गए, मेरी कल्पना से परे वो कत्थई आँखों वाली लड़की मेरे घर की कम्पाउंड वाल से अपनी पीठ टिकाए खड़ी थी, मुझे देखते ही सतर्क हो गई मुझे आश्चर्य हुआ इतनी रात गए भी ये यहाँ क्या कर रही है? मैं उसके नज़दीक गया और हौले से ठोडी उठाकर पूछा "क्या बात है इस वक्त तुम यहाँ कोई काम है क्या ?"

हौले से हाँ में सिर हिला कर नतमस्तक सी खड़ी रही, मैंने कहा कहो क्या काम है ? सवालों की नींव को ढूंढती पेड़ की खाल कुतरती रो पड़ी "न कुछ भी तो नहीं कहना बस यूँही...!" गाल पोंछती, सिसकियां दबाती चल दी कुछ दूर जा कर पीछे मुड़कर इतना ही बोली "आप जल्लाद हो, आपको बेटे की खुशी बर्दाश्त नहीं, और आपका बेटा धोखेबाज़ और कायर है, कह देना उसे नहीं चाहिए मुझे अब चुटकी भर खुशी अब मैं ज़िंदा नहीं हूँ..!" और मानो एक साया गुब्बार बनकर हवाओं में गुम हो गया। 


मेरे पैरों तले से मानो ज़मीन खिसक गई कल ही मेरे बेटे अंकुर ने तानी नाम की लड़की के बारे में बताया था, बहुत नॉटी है मेरा बेटा हर बात में मज़ाक की आदत है उसे, तानी से भी मज़ाक किया था, तानी कुँवारी माँ बनने वाली थी मेरे बेटे के बच्चे की, अंकुर शादी करना चाहता था तानी से मुझे बता रहा था की "पापा तानी बहुत भोली, सुंदर और अच्छी लड़की है हम दोनों से एक ग़लती हो गई है उस ग़लती का बीज तानी की कोख में पल रहा है। पापा मैं जानता हूं आप मना नहीं करोगे शादी से पर मैंने तानी से झूठ बोल कर मज़ाक किया है की मेरे घर वालों ने हमारी शादी से इनकार कर दिया है..! पापा आपको कोई प्रोब्लम तो नहीं ना इस शादी से ?"

मैंने अंकुर को डांटते हुए कहा था "प्रोब्लम कुछ नहीं तुम्हारी खुशी में ही हमारी खुशी है पर एसी हालत में ऐसा मज़ाक अच्छा नहीं, पागल हो तुम एक लड़की की ज़िंदगी का सवाल है, जल्दी से उस लड़की को हम से मिलवाने ले आओ ओर ये मज़ाक को खत्म करो..! "

अंकुर ने बोला "बस पापा दो चार दिन में ही बता दूँगा, फिर मेरी तानी आपकी बहू बनकर आ जाएगी हमारे घर में, और आप दादा भी बन जाओगे..! "


अंकुर के मन में कोई पाप नहीं था पर मेरे बेटे के एक छोटे से मज़ाक ने दो मासूम का खून कर दिया था और वो बेखबर शादी के सपने देख रहा था, 

मेरा दिमाग सुन्न हो गया है किस बात का शोक मनाऊँ, उस भोली मासूम की मौत का जिसकी कोख में हमारे खानदान का चिराग पल रहा था, या मेरे बेटे की एक मज़ाक से उसकी खुद की दुनिया उज़ड गई थी उसका, तानी ने ये क्या कर दिया थोड़ी तो धीरज रखनी थी। पर जो लड़की कुँवारी माँ बन गई हो और लड़के ने शादी से इन्कार कर दिया हो वो हड़बड़ाहट में और क्या करती।  मैं अंकुर को कैसे बताऊँ, क्या करूँ उसे सज़ा दिलवाऊँ दो मौत का इल्ज़ाम अंकुर के सर जो था, अंकुर जो ना गुनहगार है फिर भी इल्ज़ाम तो है। एक अट्टहास्य सुनाई देता है मैं भी तो गुनहगार हूँ तानी की नज़रों में किसे समझाऊँ की तू ज़िंदा होती तो रानी की तरह रखता। एक समस्या से घिरा हूँ क्या किसके पास कोई रास्ता है? सच के रास्ते चलते बेटे की बली चढ़ा दूँ जो गुनाह उसने किया ही नहीं उसकी सज़ा दिलवा कर, या दो मासूमों की चीखों के शोर को न्याय दिलवाऊँ ?



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