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Monika Jayesh Shah

Horror Tragedy Thriller

4  

Monika Jayesh Shah

Horror Tragedy Thriller

वो भूली बिसरी दासता

वो भूली बिसरी दासता

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बहुत दिनों पहले की बात हैं। मेरा नाम अंजली हैं।, मुझे सब अंजू कहकर पुकारते है। हम चार सहेलियां में –मंजू, विशाखा और सुलोचना। पिकनिक पर गए। ड्राइवर गाड़ी साथ में थे ।इसलिए हमारे घर के लोगों को चिंता नहीं थीं। पहले कभी गए नही थे हम सब। जनरली हाऊस वाईफ हमेशा घर में ही बिजी रहती है। अपने घर से घर काम में।। ग्रुप में भीसी रहती है। तो यहां वहा जाने का होता है। सो फाइनली सबका जाने का हुआ।

घने जंगल में मंगल के इरादे से गए थे हम सब । क्या पता था की हमारे मंगल का अमंगल हो जायेगा।

हुआ यू की अच्छी होटल के चक्कर में हम आगे निकल आए बुकिंग किया नहीं था। सोचा ऑन द वे कही करेंगे हम। सब। पहुंचते पहुंचते अंधेरा होने लगा। कहा रुके कहा रुके करते बहुत आगे निकल आए हम। ड्राइवर भी नया था तो उसे भी ज्यादा पता नही था। अंधेरे में एक घर से रोशनी सी दिखने लगी। आजू बाजू दूर तक कही कुछ नही था। एक पुराना सा बंगला था जहा jayadhya कोई रहता नही था। पर हमे और कोई जगह दिखी नही इसलिए रुकना वही था। डरते डरते आगे बड़े हम कोई है।कोई हैं गार्डन सा था। सो पहले पैरो को कुछ लगा।मेरी सुलोचना चिल्लाई यहां कुछ पैरो पर से गया शायद बडा चूहा था। करते करते।heart तो हमारा पहले ही बे heart हो गया था। जोर–जोर से धक धक करने लगा। सबकी पहले से ही फटी थीं। हमने हिम्मत की और डोर बेल बजाए।डोर बेल की आवाज भी पुराने म्यूजियम सी आवाज ऊऊऊऊऊ कानों में एक अलग सी गूंज आने लगीं। धीरे धीरे कदमों से चलती एक बूढ़ी लेडी ने दरवाजा खोला। कोन है। कोन है। काठी लेकर जिसे चलते भी नही आ रहा था। इतनी रात गए आया परेशान करने। सोने भी नही देते। देखा तो बिखरे बिखरे बाल। साड़ी भी कुछ अजीब सी थीं। जैसे बहुत दिनो से चेहरा धोया ही नहीं था। गालों पर झुरिया सी थी। नजरे भी कमजोर थीं। हमे लगा था ये क्या मदद करेगी। उसे देखकर ही हम डर गए थे। पर रात रुकने के लिए हमे जरुरत थी। सो धीरे से पूछा हमने माजी क्या हम आज रात रुक सकते हैं। म

ाजी ने भी कहा ये कोई होटल नहीं है। जाओ यहां से। हम और डर गए इतनी रात को कहा जायेगे हम। सोचा भी ना था ऐसा होगा हमारे संग। माजी से रिक्वेस्ट की की हमे आज की रात रुकने दो हम चार अकेले ही है। माजी को क्या लगा पता नही कहा आ जाओ अंदर। हमारी जान में जान आई। अंदर गए वहा भी सब बिखरा सा पड़ा था।

मन में सोचा हम कैसे रहेंगे यहां। पर और कोई ऑप्शन नहीं था हमारे पास। रात भर की बात थी। माजी ने कहा यहां एक रूम में रहो। हमने ओके कहा और वो चली गई। खाना खाने का पूछना तो दूर वो वापिस नजर ना आई।हम रूम में गए थोडी सफाई की अपनी चद्दर साथ में ली वो बिछाई और जो घर से साथ में बना कर लाए थे वो एक दूसरे के साथ शेयर कर लिया और सो गए। ड्राइवर भी गाडी में कबसे सो गया था। सो हमने उसे डिस्टर्ब नहीं किया। जैसे तैसे सोने की कोशिश की पर रात के सन्नाटे में अलग– अलग सी आवाजे आ रही थीं। कब नींद लगी पता नही चला। रूम में से हल्की रोशनी सी आ रही थीं ।शायद कांच की खिड़की टूटी हुई थीं उसी में से रोशनी आ रही थीं। नींद खुली और हम सब उठे। फ्रेश होकर बाहर आएं। और माजी माजी आवाज देने लगें पर माजी की कोई आवाज नहीं आई।हम इधर उधर dhundne लगे पर माजी कही नहि रूम देखा बाहर देखा सब कुछ पर माजी का कोई पता नहि।

ड्राईवर भी dodhte हुए आया और कहा मैडम जल्दी चलो यहां से।। हमने कहा पहले माजी से मिल ले यहां रुके थे तो। ड्राईवर ने कहा कोन माजी। मैने यहां सबसे पूछा ये बंगला कई सालो से खाली हैं यहां कोई रहता ही नही हैं। फिर कोन से माजी।। अब तो हमारे भी पैर थर थर करने लगे कल रात को कोन था फिर वो। ड्राइवर ने कहा यहां बूढ़ी औरत की आत्मा हैं। जो घूमती रहती हैं। बंगलो मे अभी बाहर के लोगो से पूछा इसलिए दौड़ा दौड़ा आपके पास आया हमारी तो जैसे सुध बुध खो गई। सोच के। बोरिया बिस्तर अवरा और गाड़ी की और चले गए। बाद में यहां न लौटकर आने को। आज भी वही रात दिमाग में घूमती है। आंग पर काटे आने लगे। सोचकर वो भी बिसरी दासता।


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