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Shailaja Bhattad

Abstract

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Shailaja Bhattad

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वन की होली

वन की होली

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हिप-हिप हुर्रे !

 रंगों से रंगे सभी जानवर एक ही स्वर में खुशी से चिल्लाए। 

आज सबने पूरी योजना बनाकर पहली बार होली जो खेली थी। पूरा जंगल रंगों से सरोबार था। और खुशबू तो ऐसी की इत्र भी शर्मा जाए। हो भी क्यों ना फूलों और पत्तों से जो रंग बने थे। एक सप्ताह पहले ही सभी शाकाहारी जानवरों ने किसी भी अनहोनी से बचने के लिए होली की योजना बहुत ही होशियारी से तैयार की थी।

 योजना अनुसार होली संकेंद्रित व्रत्तों में खेली गई।

इसमें सबसे अंदर के व्रत्त में सबसे छोटे जानवर और क्रमशः बाहर की ओर बढ़ते हुए कद के अनुसार जानवर खड़े हुए और सबसे बाहरी घेरे में हाथियों ने स्थान पाया। ताकि बाकी सभी जानवरों की रक्षा कर सके। अब आती है बारी रंगों की और पानी की, तो संकेंद्रित वृत्त के बाहर हाथियों ने सूंड से पानी लाकर पहले से बनाए हुए छोटे-छोटे गड्ढों में भर दिया और सभी जानवरों द्वारा मिलकर इकट्ठा किए गए रंग बिरंगी फूलों और पत्तों को हाथियों ने अपने पैरों से मसलकर पानी में मिलाकर उसे रंगीन बना दिया। योजना अनुसार सावधानी रखी गई कि रंग भी उसी समय बनाया जाए ताकि कोई शिकारी जानवर स्वयं को रंगकर धोखे से किसी का शिकार ना कर ले। इतनी सुनियोजित योजना का ही परिणाम था कि सभी जानवर निर्भीक होकर बेझिझक घंटों खेलते रहे और हाथियों ने भी अपनी सूंड से रंगों की भरपूर बौछार की।


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