विश्व पर्यावरण दिवस
विश्व पर्यावरण दिवस
हमारे चारों ओर प्रकृति में जो मिट्टी, हवा, जल, पेड़ पौधे, पशु पक्षी, कीट पतंगे, नदी नाले हैं और प्रत्येक जीव के जीवन को आगे बढ़ाने में सहायक हैं वे पर्यावरण कहलाते हैं। शाब्दिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो पर्यावरण शब्द परि और आवरण शब्दों से मिलकर बना है। जिसका अर्थ है चारों तरफ घेरा। अर्थात हमारे चारों तरफ जो कुछ भी है वह पर्यावरण कहलाता है।
प्रकृति ने अपनी क्रमागत उन्नति तथा विकास के लिए एक अनवरत चलने वाली जीवों की कड़ी का निर्माण किया गया है। सृष्टि का हर जीव इस कड़ी का मुख्य भाग है। इसलिए यह आवश्यक है कि हर कड़ी का बराबर विकास हो जिससे हर कड़ी मजबूत बनी रहे। प्रकृति पर उत्पन्न हर जीवधारी का अपना अलग महत्व है। प्रकृति के परिचालन तथा संवर्धन के लिए यह आवश्यक है कि पृथ्वी पर उत्पन्न हर जीव जीवित रहे तथा उनकी श्रृंखला चलती रहे।
प्रकृति में पाये जाने वाले सभी जीवों की भूमि, हवा तथा जल पर निर्भरता हैं। हरे पौधे सूरज से ऊर्जा प्राप्त कर पानी तथा कार्बन डाइ आक्साइड की सहायता से प्रकाश संश्लेषण द्वारा कार्बोहाइड्रेड बनाते हैं। शाकाहारी जीव इन हरे पत्तों को खाकर अपना जीवन निर्वाह तथा विकास करते हैं। मांस खाने वाले जीव इन शाकाहारी जीवों को खाकर अपना जीवन चलाते हैं। इस प्रकार यह श्रृंखला अनवरत चलती चलती पुनः विनाश की ओर जाती है। हर जीव का शरीर विनष्ट होकर मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाता है। जिससे पुनः हरे पौधों को जीवन मिलता है। इस क्रम को भोजन श्रृंखला कहा जाता है।
वर्तमान समाज में मनुष्य के बढ़ते लालच तथा कम समय और कम परिश्रम में ज्यादा पैसा इकट्ठा करने की चाहत ने भोजन श्रृंखला को तोड़ने का काम किया है। हर वर्ष पेड़ों की अंधाधुंध कटाई की जा रही है। एक अनुमान के अनुसार हमारे देश में एक व्यक्ति द्वारा एक वर्ष में औसतन 7 पेड़ काटे जाते हैं। पूरी जनसंख्या के ऊपर यह सिद्धांत लागू करने से पता चलता है कि एक वर्ष में कुल 600 करोड़ पेड़ काटे जाते हैं।
मनुष्य अपने लिए सुविधा के साधन जुटाने के लिए जंगलों को काटकर अपने लिए आवास, बहुमंजिले माल, फैक्ट्रियॉं, हवाई पट्टी तथा सैर सपाटे के लिए पार्क बनाता जा रहा है। वह यह नहीं सोच रहा है कि आखिर इन जंगलों के ऊपर आश्रित जीव जन्तु कहां रहेंगे? पेड़ों को काटने से इन पर निर्भर जीव जन्तुओं के भोजन की क्या व्यवस्था होगी ? धरती पर रहने वाले जीवों के लिए सांस लेने के लिए वायु कहॉं से आयेगी ? पेड़ों को काट देने से इन पर निर्भर जीवों की आहार श्रृंखला का क्या होगा ? पेड़ नहीं रहेंगे तो वर्षा का क्या होगा ? वर्षा नहीं होगी तो पीने तथा दैनिक उपयोग के लिए पानी कहॉं से आयेगा ? पानी न होने से धरती के जीवों का अस्तित्व कैसे बचेगा ? हम वैसे भी धरती को कंक्रीट में बदलते जा रहे हैं। इमारतों से पटती धरती के कारण वर्षा का जल समुचित मात्रा में पृथ्वी के अंदर नहीं जा पा रहा है। जिसके कारण धरती का जल स्तर तेजी से नीचे जा रहा है।
पेड़ों की बेहिसाब कटाई, वाहनों के अतिशय उपयोग, फैक्ट्रियों से निकलने वाली गर्मी आदि के कारण धरती पर ग्लोबल वार्मिंग का खतरा बढ़ता जा रहा है। सन 1880 के बाद से औसत वैश्विक तापमान में लगभग एक डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है। वैज्ञानिकों को आशंका है कि 2035 तक औसत वैश्विक तापमान अतिरिक्त 0.3 से 0.7 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ सकता है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण सदियों से जमी वर्फ पिघलती जा रही है जिससे समुद्र में पानी का जल स्तर बढ़ रहा है। सन् 1880 के बाद से वैश्विक औसत समुद्री स्तर में आठ से नौ इंच की वृद्धि हुई है। बढ़ते जलस्तर के कारण समुद्र के किनारे स्थित बनों तथा जमीन का डूबना शुरू हो चुका है। इससे स्थिति और भयावह होगी।
मनुष्यों की तेजी से बढ़ती जनसंख्या के कारण तालाब, बावड़ियां झीलें तथा स्थानीय छोटी नदियों की पटाई जारी है मनुष्य स्वयं द्वारा उत्पादित अपसार नदियों में डालता जा रहा है जिनके कारण पानी में पैदा होने वाली घासें तथा इन घासों पर आश्रित मछलियॉ, सीप, घोघे, केकड़े, कछुए की कई प्रजातियॉं समाप्ति की ओर हैं। यह जलीय जीव नदियों मे होने वाली गन्दगी को साफ करने में भी मददगार होते थे लेकिन आज यह स्वयं अपने अस्तित्व को बचाने में असमर्थ होते दिख रहे हैं। हर मनुष्य को चाहिए कि कोई भी कार्य करने से पहले पारिस्थितिक के बारे में सोचे। ऐसा कोई कार्य न करे जिसके कारण जीव जन्तुओं पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा हो।
मनुष्य विकास की दौड़ में अंधा हो चुका है। यदि मनुष्य ने अपनी आबादी तथा आवश्यकता पर रोक नहीं लगायी तो भविष्य में मनुष्य हवा और पानी के लिए भी मारा मारा फिरेगा। हम पानी का प्रयोग ऐसे करते हैं जैसे वह हमारी व्यक्तिगत संपत्ति हो। कार और मोटरसाइकिल धोते हुए ऐसे कई लोग दिखाई पड़ते हैं मानो वह रास्ते पर नदी बहा देंगे।
हमारे देश में दिखावे और कीर्तिमान स्थापित करने के लिए हर साल वृक्षारोपण किया जाता है। कभी लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड को बुलाया जाता है तो कभी अन्य बड़ी कीर्तिमान का रिकार्ड रखने वाली संस्थाओं को। हम अपने पर्यावरण को बचाने के लिए कितने जागरूक हैं उन पेड़ों की स्थिति को देखकर लगाया जा सकता है जिन्हें पिछले आयोजन में लगाया गया था। हम बड़े बड़े सेमीनार आयोजित करते हैं, प्रजेंटेशन देते हैं, दीवारों पर जागरूकता के लिए बड़े बड़े नारे लिखते हैं लेकिन हकीकत में हमें जीवनदान देने वाले पेड़ों को जीवनदान देने में हम फिसड्डी हैं।
हमारा पर्यावरण तभी सुरक्षित रहेगा जब हम अपने घर से लेकर सड़क, नदी नालों, सार्वजनिक पार्क, रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड को अपना समझेंगे। झूठी शान और दिखावे को छोड़कर पैदल और सार्वजनिक वाहन का उपयोग करेंगे। कोई भी काम करने से पहले पृथ्वी के अन्य जीवों पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में सोचेंगे। चिपको आंदोलन के प्रणेता स्व० सुन्दर लाल बहुगुणा के पर्यावरण प्रेम को आज रेखांकित करना आवश्यक है। उन्होंने पर्यावरण संरक्षण के लिए अपनी पूरी जिंदगी लगा दी। उनके प्रयासों से लाखों पेड़ कटने से बच गए। उन्होंने आखिरी सांस तक प्रकृति को बचाने में अपना योगदान दिया। ऐसे और भी लोग हैं जो अनवरत रूप से पीपल और बरगद के पेड़ लगाकर पृथ्वी की हरीतिमा को बनाए रखने में योगदान दे रहे हैं।
विश्व का पहला पर्यावरण सम्मेलन सन् 1972 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने स्टॉकहोम (स्वीडन) में आयोजित किया था। इसमें कुल 119 देशों ने भाग लिया था।पहली बार एक पृथ्वी के सिद्धांत को मान्यता दी गयी। इसी सम्मेलन में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम का जन्म हुआ तथा प्रति वर्ष 05 जून को पर्यावरण दिवस आयोजित करके नागरिकों को प्रदूषण की समस्या से अवगत कराने का निश्चय किया गया। इसका मुख्य उद्देश्य पर्यावरण के प्रति जागरूकता लाते हुए लोगों के अन्दर चेतना जागृत करना और आम जनता को प्रेरित करना था।
इस सम्मेलन में तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व० श्रीमती इंदिरा गांधी ने 'पर्यावरण की बिगड़ती स्थिति एवं उसका विश्व के भविष्य पर प्रभाव' विषय पर भाषण दिया था। पर्यावरण सुरक्षा की दिशा में यह भारत का पहला कदम था। तभी से हम प्रतिवर्ष 05 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाते आ रहे हैं।