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Hari Ram Yadav

Tragedy Inspirational

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Hari Ram Yadav

Tragedy Inspirational

शराब और हमारा समाज

शराब और हमारा समाज

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गर्मियों के दिन थे। सुबह का वक्त था। धूप अपने शबाब पर थी। मैं साइकिल से अपने दफ्तर जाने के लिए निकला था। थोड़ी दूर चलने के बाद एक चौराहा मिलता था। चारों तरफ से आये हुए मुसाफिर उसी चौराहे पर उतरते थे क्योंकि चौराहे पर बस स्टैंड तथा टैक्सी स्टैंड था। एक मुसाफिर सड़क की दाहिनी पटरी पर दोनों कंधों में दो बैग लटकाए लड़खड़ाते कदमों से धीरे धीरे चला जा रहा था। हमने सोचा कि शायद यह अभी टैक्सी से उतरा होगा। लेकिन उस व्यक्ति को सड़क के दाहिनी तरफ वाली पटरी पर चलता देखकर मेरे मन में शंका होने लगी कि टैक्सियां तथा बस तो सड़क के बायीं ओर रूकती हैं तो यह व्यक्ति दाहिनी ओर क्यों गया। मैनें सोचा कि यह कोई जागरूक व्यक्ति होगा। इसे नये यातायात नियम “सड़क के दाहिनी ओर से पैदल चलना चाहिए” की जानकारी होगी। मेरे मन से मुझे जबाब मिला कि शायद यह आदमी उल्टी दिशा से आया हो। लेकिन वह आदमी जिधर जा रहा था उधर दूर दूर तक कोई मकान या बस्ती नहीं थीं। मैं इसी उधेड़बुन में साइकिल चलाता अपने गन्तव्य की ओर चला गया। 


मेरा मन बार बार आशंकाओं के बीच डूब उतरा रहा था। मेरा मन कह रहा था कि मैंने गलती किया। मुझे उस आदमी से मिलकर उसकी स्थिति जाननी चाहिए थी। हो सकता हो कि वह व्यक्ति रेलगाड़ी से कहीं से आया हो और रास्ते में जहरखुरानी गिरोह का शिकार हो गया हो। मुझे अपराध बोध सताने लगा कि यदि उस व्यक्ति को कुछ हो गया तो मैं भी उस पाप में बराबर का भागीदार होऊँगा। उसके पास दो बैग की बात याद आने पर मुझे थोडा सांत्वना मिली कि यह व्यक्ति जहरखुरानी का शिकार नहीं हो सकता।


दोपहर को मैं उसी रास्ते से अपने घर वापस जा रहा था। चौराहे से थोड़ा पहले आने पर मैंने देखा कि वही आदमी एक गढ्ढे में गिरा हुआ है। गढ्ढा कम गहरा होने के कारण उसका सिर तथा पैर में पहने हुए जूते सड़क से साफ दिखायी पड़ रहे थे। मैंने उसके नजदीक जाकर देखा तो पता चला कि यह वही सुबह वाला ही आदमी है। मुझे लगा कि इसके प्राण पखेरू उड़ चुके हैं। उसके मुँह के चारों ओर मक्खियॉं भिनभिना रही थीं। मुझे वहाँ खड़ा देखकर नजदीकी पावर हाउस में काम करने वाले चार लोग और आ गये। उन्होंने बताया कि यह आदमी शराबी है। सुबह से झोले से शराब निकाल निकाल निकालकर बिना पानी मिलाए पिए जा रहा है। रोकने पर कहता है कि तुम्हें क्या मतलब है। उन लोगों की मदत से हमने उस व्यक्ति को उठाया और पास की दुकान से कोल्ड ड्रिंक तथा दही मंगाकर पिलाया और उसके सिर पर पानी डाला। देसी उपचार से थोड़ी देर में कुछ नशा दूर हुआ। हमने उसकी जेब में हाथ डालकर देखा तो हमें उसकी जेब में एक पहचान पत्र मिल गया। उसमें लिखे पते के आधार पर पता चला कि नशे के कारण यह उल्टी दिशा में आ गया है। इसे रेलवे स्टेशन से पश्चिम दिशा में जाना था किन्तु यह पूर्व दिशा में आ गया। 


यह तो एक बानगी भर है। आपको शराब के ठेकों के इर्द गिर्द इससे बडे़ उदाहरण मिल जायेंगे। कई ऐसे शराबी मिल जायेंगे जो कि घर से बीमार बच्चे की दवा या घर के लिए कुछ जरूरी सामान लाने के लिए निकले और पहुँच गये मयखाने। मानव समाज में हमेशा से शराब को अभिशाप तथा शराब पीने वालों को हिकारत तथा घृणा की दृष्टि से देखा जाता रहा है। सभी अपराधों की जड़ में शराब के बीज देखे जा सकते हैं। हर गलत काम की जननी शराब है। हर वह काम जो मानवता तथा नैतिक मूल्यों के खिलाफ है, शराब से शुरू होता है। आज समाज में अपराध का जो ग्राफ बढ़ रहा है उसके पीछे शराब एक प्रमुख कारक है। यह देखा गया है कि ज्यादातर सड़क दुर्घटनाएं भी शराब पीकर वाहन चलाने से हो रही हैं। हत्या, चोरी, डकैती, बलात्कार जैसी अमानवीय घटनाओं के मूल में शराब ही है। यह घटनाएं या तो शराब पीकर हो रही हैं या तो शराब को खरीदने के लिए पैसों के जुगाड़ के लिए हो रही हैं।


शराब शब्द की दुश्चरित्रता उसके शब्द विन्यास से साफ झलकती है। शराब शब्द सड़ाव का सुधरा हुआ रूप है। जिसका अर्थ है सड़ा हुआ पानी। आज भी देश के कुछ इलाकों में महुआ तथा कुछ अन्य चीजों को पानी में सड़ाकर शराब निकाली जाती है। कहीं कहीं पर खराब फलों या उनके छिलकों को भी सड़ाकर शराब बनायी जाती है। जिस तरह से नाम बदल देने से कोई पदार्थ अपना गुण, धर्म नहीं बदल देता वैसे ही सड़ाव का नाम बदलकर शराब हो जाने से भी वह अपने अतीत को नही बदल पा रहा है। शराब शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है शर तथा आब। जिसका अर्थ होता है तीर की तरह पानी। यानी कि ऐसा पानी जिसको पीने से वह तीर की गति से अपना काम करता हो। शराब को पीने वाले चाहे सुरा कह लें, मदिरा कह लें या वाइन कह लें, या पीने के लाख बहाने कर लें, शराब के काले अतीत को नहीं बदला जा सकता।


दुनिया के हर देश में, हर धर्म में शराब पीना वर्जित है। हिन्दू धर्म में भी मदिरा, मांस को तामसी और त्याज्य कहा गया है। कारण एक ही है कि शराब पीने के बाद शराबी अपने ऊपर से नियन्त्रण खो देता है, उसके पास सही गलत का निर्णय करने की क्षमता समाप्त हो जाती है। 30 से 40 मिलीग्राम शराब पीने के बाद मस्तिष्क के वे केन्द्र अपना काम करना बंद कर देते हैं जो कि शरीर के विभिन्न कार्यों पर नियन्त्रण रखते हैं। यह अवरोधक केन्द्र मनुष्य को गलत काम करने से पहले रोकते हैं। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से हम देखें तो हमारे शरीर में 4 मिलीग्राम अल्कोहल की मात्रा हमेशा रहती है। यदि हम किसी भी रूप में और अल्कोहल अपने शरीर के अन्दर लेते हैं तो हमारा शरीर उसे उल्टी, पेशाब या पाखाने के रास्ते से बाहर निकालने का प्रयास करता है क्योंकि अल्कोहल मानव शरीर के लिए विजातीय पदार्थ है। शराब पीने के बाद अल्कोहल का कुछ भाग आहार नली द्वारा सोख लिया जाता है और कुछ देर बाद यह रक्त में मिल जाता है। दो बार से ज्यादा शराब पीने वाले लोगों के हृदय का बेन्ट्रीकुलर मास बढ़ जाता है। इससे शराबी व्यक्ति के हृदय की गति बढ़ जाती है। चार कदम पैदल चलने से सांस धौंकनी की तरह चलने लगती है।


शराब पीने से व्यक्ति के अन्दर स्वेत रक्त कणिकाओं की संख्या कम होने लगती है जिससे तरह तरह की बीमारियाँ घेरने लगती है। शराब पीने के बाद शराबी मदमस्त हो जाता है। वह हाथी की तरह झूमता हुआ चलता है। लोगों को गालियॉं देता है। अपने को सबसे बड़ा समझने लगता है। यहां तक देखा गया है कि शराबी अपने मॉं बाप को भी गालियॉं बकने लगते हैं। सरे राह लोगों के सामने पेशाब करने लगते हैं। कभी कभी शराबी नशे की हालत में कुछ ऐसा कर बैठते हैं जिससे नशा उतरने के बाद जीवन भर उन्हें पछताना पड़ता है, क्योंकि समाज में एक बार छवि खराब होने के बाद उस छवि को कभी वापस नहीं लाया जा सकता।


लोग शराब शौकिया तौर पर पीना शुरू करते हैं। कुछ लोग तो आधुनिक बनने की चाह में अपनी प्रतिष्ठा को बढ़ाने के लिए शराब पीना शुरू करते हैं। पहले वे आधा पैग पीते है। फिर नशा न होने पर कुछ दिन बाद एक पैग पीने लगते हैं। यह एक पैग बढ़ते बढ़ते कब एक बोतल में बदल जाता है , पता ही नहीं चलता। यह एक तामसी पदार्थ है। यह हमारी इन्द्रियों को मांस को खाने के लिए प्रेरित करता है। यह कटु सत्य है कि जिस तरह का हमारा आहार होगा उसी तरह के विचार हमारे अन्दर पैदा होंगे। जिस तरह के विचार होंगे उसी तरह व्यवहार होगा। शराब पीने के साथ साथ लोग बीड़ी या सिगरेट भी पीना शुरू कर देते हैं। धीरे धीरे खर्च बढ़ना शुरू हो जाता है, आय कम होने लगती है क्योंकि शराब पीने वाला व्यक्ति नियमित तौर पर काम पर नहीं जा पाता। वह जहॉं पर काम करता है उसका मालिक गैरहाजिर होने के कारण वेतन में कटौती करने लगता है। यहीं से पारिवारिक कलह का जन्म होता है।


पूरा परिवार अप्रत्यक्ष रूप से इसका शिकार बनने लगता है। इस बुरी आदत के कारण मित्र भी साथ छोड़ देते हैं। मौका पड़ने पर कोई भी उधार देने के लिए तैयार नहीं होता है। अन्त में शराबी व्यक्ति अकेला पड़ जाता है। इस अकेलेपन को दूर करने के लिए वह और ज्यादा मात्रा में शराब पीने लगता है। ज्यादा शराब पीने की लत के कारण और पास में पैसा न होने के कारण धीरे धीरे घर का सामान बिकने लगता है। कुछ समय बाद खेत खलिहान और घर की औरतों के जेवरात शराब की भेंट चढ़ जाते हैं। शराबी व्यक्ति के पास असामाजिक काम करने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचता। असामाजिक कार्य करने का परिणाम जेल ही होती है।


हम सबने अपने आसपास शराब के चक्कर में उजड़ते हुए घर देखे होंगे। एक हंसते खेलते परिवार को आत्महत्या करते देखा होगा। एक बेबस मॉ को अपने बच्चों के साथ कुएं में कूदकर या जहर खाकर मौत को गले लगाते देखा या सुना होगा, आखिर क्यों ? शराब पीने वालों के कारण सबसे बड़ी त्रासदी औरत को उठानी पड़ती है। शराबी शराब पीकर जब देर रात तक घर नहीं आता तो उसका इन्तजार करने वाली उसकी पत्नी ही होती है जो भूखे रहकर उसकी प्रतीक्षा करती रहती है। दरवाजा खोलने में यदि तनिक देर हो गयी तो शराबी पति की पिटाई खाने वाली पत्नी ही होती है। शादी लायक यदि शराबी की बहन या बेटी हुई तो उनकी शादी करने की चिन्ता में तिल तिल कर जलती एक औरत ही होती है। शराबी के बेबस छोटे बच्चों की भूख तथा बीमार बच्चों की दवा की चिन्ता तथा भोजन के लिए लोगों के सामने हाथ फैलाने वाली एक औरत ही होती है। अपने बच्चों के पालन पोषण के लिए लोगों के घरों में चौका बरतन करने वाली एक बेबस तथा लाचार औरत ही होती है। शराबी जब शराब पीकर उल्टी या पाखाना कर देता है तो उस गन्दगी को साफ करने वाली या तो शराबी की पत्नी या मॉं एक औरत ही होती है। न जाने ऐसे कितने शराबियों की बहन बेटियॉं शादी के बिना अपनी जिन्दगी गुजारने के लिए मजबूर हो जाती है। उनके सामने अपनी मॉं तथा भाई बहनों की बेबस जिन्दगी होती है। वे अपने बारे में सोच ही नही पातीं। पूरी जिन्दगी अपनों की परवरिश में गुजार देती हैं।


हम आये दिन समाचार पत्रों या टेलीविजन चैनलों पर यह समाचार पढ़ते या देखते हैं कि जहरीली शराब पीने से 10 लोगों की मौत, चार की हालत गम्भीर। आखिर ऐसा क्यों ? इसका मूल कारण गरीबी तथा अशिक्षा तथा कुछ लोगों द्वारा कम खर्च में ज्यादा पैसे कमाने की कुचेष्टा है। शराबी तो जहरीली शराब पीकर तड़पकर दम तोड़ देता है और पीछे छोड़ देता है एक रोता बिलखता बेबस असहाय परिवार। जिनके पास जीवन यापन के लिए दूसरे के घर में चौका बरतन तथा मजदूरी जैसे काम के अलावा कोई जरिया नहीं बचता। एक गलत आदत वाला आदमी पूरे परिवार की भाग्य रेखा को बदल देता है। ऐसे परिवार को शून्य से सुधरने में एक दो पीढ़ी भी कम पड़ जाती है।


हमारे समाज तथा सरकारों को शराब पीने वालों का आखिरी हश्र पता है , फिर भी ज्यादा राजस्व कमाने के चक्कर में गली, चौराहों, सड़कों तथा राष्ट्रीय राजमार्गों पर शराब के ठेके खुलते जा रहे हैं। सरकार में बैठे लोगों को यह पता है कि आसानी से उपलब्धता होने पर ज्यादा से ज्यादा लोग शराब पियेंगे। आखिर जब लोग ही नहीं होंगे तो शराब की बिक्री से मिलने वाले राजस्व से बनाये गये स्कूलों, अस्पतालों, सड़कों तथा पुलों का क्या औचित्य है ? पूरे विश्व में वाहनों की कुल संख्या के केवल 1 प्रतिशत वाहन ही हमारे देश में हैं जबकि वाहन दुर्घटनाओं की संख्या 11 प्रतिशत है। इनमें से ज्यादातर दुर्घटनाएं शराब पीकर वाहन चलाने से हो रही हैं। इन समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए सरकारों का यह नैतिक दायित्व है की शराब के इन ठेको कों बन्द करवाया जाय तथा शराब पीने वाले लोगों को इसके दुष्परिणाम बताकर हतोत्साहित किया जाय।


समय समय पर सामाजिक कार्यकर्ताओं तथा सामाजिक संगठनों द्वारा शराब बनाने, बेचने और पीने का पुरजोर विरोध किया गया, शराब की भट्ठियों को तोड़ा गया, लेकिन शराब माफिया तथा प्रशासन के गठजोड के आगे यह विरोध नक्कारखाने में तूती की आवाज बनकर रह गये। जब तक समाज के हर व्यक्ति के अन्दर इच्छाशक्ति नहीं होगी प्रत्येक व्यक्ति शिक्षित नहीं होगा, मनोरंजन के समुचित साधन नहीं होंगे, तब तक इस बुराई से पार नहीं पाया जा सकता है । यदि हम खुद शराब पीते हैं तो इसे छोड़ने के लिए प्रण करें। पीने के लिए नये बहाने न ढूंढें।


जीवन में हर रोज सुख या दुख आते रहते हैं। काम करने के बाद हर आदमी को थकान लगती है। लेकिन थकान उतारने या सुख दुख मिटाने का बहाना शराब नहीं है। यह हमारे मन की कमजोरी है। शराब पीने वालों, आप एक बोतल शराब पीने की बजाय एक गिलास दूध पीकर तो देखिए क्या मजा आता है। आप शराब तथा इसकी सहयोगी चीजों को खाने पीने में जो पैसा बरबाद कर रहे हैं, जरा एक दिन अपने बच्चे के लिए इसी पैसे से एक चाकलेट खरीद कर लाकर देखिए। जो बच्चा आपकी आने की आहट से दरवाजा बन्द कर लेता था आपका वही बच्चा दूसरे दिन से आपकी राह देखेगा। शराब की बुरी लत के कारण राज रियासतों को समाप्त होते देखा गया है। यदि आपके पास कुबेर के पैसों के भन्डार क्यों न हों शराब पीना शुरू कर दीजिए अपने आप खाली हो जायेंगे। नशा ऐसी चीज है जिससे मनुष्य का तन मन धन तीनों बरबाद हो जाता है। आइये हम सब मिलकर प्रण करें कि हम खुद आज के बाद शराब नहीं पीयेंगे तथा अपने किसी परिचित या सम्बन्धी को शराब नहीं पीने के लिए प्रोत्साहित करेंगे। यह सम्भव है। जरूरत है सच्चे दिल से जुड़ने की। अगर हम खुद सुधरेंगे तभी लोग सुधरेंगे। जब लोग सुधरेंगे तब गांव और शहर सुधरेगा। जब गाँव और शहर सुधरेंगे तो समाज सुधरेगा। जब समाज सुधरेगा तो राज्य तथा राष्ट्र अपने आप सुधर जायेंगे।



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