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Hari Ram Yadav

Others

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Hari Ram Yadav

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विजय दिवस

विजय दिवस

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   "अगर राजनैतिक इच्छाशक्ति दृढ़ और स्पष्ट हो तो भारतीय सेना उस प्रत्येक कार्य को उसके अंजाम तक पहुंचा सकतीं हैं, जो आम लोगों की सोच में असम्भव होता है।" यह शब्द इक्यावन वर्ष पूर्व भी प्रासंगिक थे और आज भी प्रासंगिक हैं। सन् 1971 में दिसंबर का महीना था, सर्दी से देश कांप रहा था लेकिन विश्व की राजनीति में गर्मी छायी हुई थी और यह गर्मी भारत पाकिस्तान के सम्बन्धों में बढ़ी खटास को लेकर थी। यह खटास पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में पाकिस्तानी सेना की ओर से आम जनता पर की जा रही हिंसा और उत्पीड़न को लेकर बढ़ी थी। 


   भारत पर दिन प्रतिदिन पूर्वी पाकिस्तान से आने वाले शरणार्थियों का दबाव बढ़ता जा रहा था। पश्चिम बंगाल, असम, बिहार, मेघालय और त्रिपुरा से आये लगभग 10 लाख शरणार्थियों के कारण कानून व्यवस्था की स्थिति खराब होती जा रही थी। इससे दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंध खराब होने लगे थे। पाकिस्तान इसे अपने देश का आंतरिक मामला बताकर पल्ला झाड़ रहा था लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने पूर्वी पाकिस्तान में जो कुछ हो रहा था उसको पाकिस्तान का अंदरूनी मामला मानने से इंकार कर दिया था । क्योंकि देश इसका परिणाम भुगत रहा था। उस समय अमेरिका पाकिस्तान की तरफ आंखें बंद किए हुए मूक समर्थन दे रहा था। इसे देखते हुए श्रीमती इंदिरा गांधी जी ने 09 अगस्त 1971 को तत्कालीन सोवियत संघ के साथ एक समझौता किया, जिसमें दोनों देशों ने एक दूसरे की सुरक्षा का भरोसा दिया था।


   पाकिस्तान में सन् 1970 में आम चुनाव हुए थे। इस चुनाव में आवामी लीग को बहुमत मिला था। लीग ने सरकार बनाने का दावा किया परन्तु पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के नेता जुल्फिकार अली भुट्टो इससे सहमत नहीं थे। उन्होंने चुनाव का विरोध करना शुरू कर दिया। पाकिस्तान में हालात इतने खराब हो गए कि जन आक्रोश को दबाने के लिए सेना का प्रयोग करना पड़ा। अवामी लीग के नेता शेख मुजीबुर्रहमान को गिरफ्तार कर लिया गया। शेख मुजीबुर्रहमान की लोकप्रियता पूर्वी पाकिस्तान में बहुत ज्यादा थी। अपने नेता की गिरफ्तारी से जनता आंदोलित हो उठी। जगह- जगह जनता ने तत्कालीन पाकिस्तान सरकार के खिलाफ विद्रोह कर दिया। पूर्वी पाकिस्तान में हालात खराब होते जा रहे थे । ईस्ट बंगाल रेजिमेंट, ईस्ट पाकिस्तान राइफल्स, पुलिस तथा अर्द्धसैनिक बलों के बंगाली जवानों ने पाकिस्तानी सेना के खिलाफ बगावत करके खुद को आजाद घोषित कर दिया। पूर्वी पाकिस्तान के लोगों ने पाकिस्तान से पलायन करना शुरू कर दिया। इसी समय मुक्तिवाहिनी अस्तित्व में आयी।


  उस समय श्रीमती इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री थी। पाकिस्तान से आये शरणार्थियों को शरण देने से पाकिस्तान ने भारत पर हमले करने की धमकियां देना शुरू कर दिया था। इस समस्या के समाधान के लिए श्रीमती इंदिरा गांधी ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कोशिश करनी शुरू कर दिया ताकि युद्ध जैसे हालात को टाला जा सके। पाकिस्तान की मंशा को भांपते हुए प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने सेना को युद्ध के लिए तैयार रहने के लिए कहा। 


   03 दिसंबर को 1971 को शाम 05 बजकर 40 मिनट पर पाकिस्तानी वायु सेना ने भारतीय वायुसेना के 11 वायुसेना अड्डों पर हमला कर दिया। उस समय श्रीमती गांधी कलकत्ता में एक जनसभा को संबोधित कर रही थीं। वहां से तुरंत लौटकर उन्होंने एक आपातकालीन बैठक बुलाई और रात को ही ऑल इंडिया रेडियो से देश की जनता को संबोधित किया और हवाई हमलों की जानकारी देते हुए बताया कि "कुछ समय पहले पाकिस्तानी हवाई जहाजों ने हमारे वायुसेना के अड्डों श्रीनगर, अमृतसर, पठानकोट, हलवारा, अम्बाला, फरीदकोट आगरा, जोधपुर, जामनगर, सिरसा पर आक्रमण कर दिया है"। सरकार ने 04 दिसंबर, 1971 को युद्ध की घोषणा कर दी और सेना को ढाका की तरफ कूच करने का आदेश दे दिया ।


  भारतीय वायुसेना ने पश्चिम पाकिस्तान के आयुध भंडारों और वायु सेना के अड्डों पर बम बरसाने शुरू कर दिया। भारतीय नौसेना के जांबाज सैनिकों ने बंगाल की खाड़ी की तरफ से पाकिस्तानी नौसेना को टक्कर देना शुरू कर दिया। भारतीय नौसेना ने 05 दिसंबर 1971 को कराची बंदरगाह पर स्थित पाकिस्तानी नौसेना के हेडक्वार्टर को नेस्तनाबूद कर दिया। हमारे नौ सैनिकों ने पाकिस्तान की गाजी, खैबर, मुहाफिज जैसे युद्ध पोतों को बर्बाद कर दिया। इधर भारतीय वायु सेना के हंटर और मिग 21 युद्धक विमानों ने राजस्थान के लोंगेवाला में एक पूरी आर्म्ड रेजिमेंट को खत्म कर दिया। इसके साथ ही साथ भारतीय वायु सेना ने पश्चिमी पाकिस्तान में दुश्मन के रेल और संचार को भी पूरी तरह बर्बाद कर दिया। इसके बाद दुश्मन के हमले पर विराम लग गया।


  भारतीय सेना के जांबाज सिपाही पाकिस्तानी सेना को रौंदते हुए उसके 13,000 वर्ग मील पर कब्जा जमा लिया। इस युद्ध में सेना वायु रक्षा कोर (तब आर्टिलरी) ने भारतीय वायु सेना के साथ मिलकर बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस कोर के बहादुर तोपचियों ने दुश्मन के कई युद्धक हवाई जहाजों को मार गिराया तथा महत्त्वपूर्ण पुलों, आयुध डिपो, हवाई अड्डों आदि की हवाई हमलों से सुरक्षा कर सेना को आगे बढ़ने में अपनी अभूतपूर्व भूमिका निभाई। 


   पाक सेना का नेतृत्व कर रहे लेफ्टिनेंट जनरल ए के नियाजी ने अपने 93 हजार सैनिकों के साथ भारतीय सेना के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के सामने आत्मसमर्पण कर दिया और अपनी हार स्वीकार कर ली। 13 दिनों तक चले युद्ध के पश्चात् बांग्लादेश अस्तित्व में आया।


   हमारे देश में पाकिस्तान पर इस अभूतपूर्व विजय के उपलक्ष्य में 16 दिसंबर 'विजय दिवस' के रूप में मनाया जाता है। इस युद्ध में पाकिस्तान को काफी जन-धन की हानि हुई। इस युद्ध में पाकिस्तान के लगभग 8,000 सैनिक मारे गये एवं 25,000 घायल हुए थे। यह युद्ध कई मायनों में अभूतपूर्व था। विश्व के इतिहास में पहली बार इतनी बड़ी संख्या में सैनिकों ने आत्मसमर्पण किया था। यह युद्ध अब तक लड़े गये निर्णायक युद्धों में सबसे कम दिन में जीता गया युद्ध था। 


   इस युद्ध में श्रीमती इंदिरा गांधी के साहस, पहल, दूरदर्शिता, कूटनीति और निर्णय लेने की क्षमता ने विश्व के इतिहास और पाकिस्तान के भूगोल को बदल दिया। इस युद्ध को आखिरी अंजाम तक पहुंचाने में फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका रही। उनकी सूझबूझ, रणनीति कौशल के सामने पाकिस्तानी सेना को मुंह की खानी पड़ी। यह युद्ध भारतीय सेना के अदम्य साहस, सूझबूझ और रणनीतिक कौशल के लिए विश्व के इतिहास में दर्ज हो गया। वैसे तो अब तक पाकिस्तान हमारे देश से चार युद्ध लड़ चुका है, किन्तु 1971 के युद्ध में भारतीय सेना द्वारा प्रदर्शित शौर्य और पराक्रम उसे उसकी हार की याद को जीवंत बनाए रखेगा।


  


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