स्वर्णिम विजय वर्ष की लेखक
स्वर्णिम विजय वर्ष की लेखक
देश 2021 को “स्वर्णिम विजय वर्ष” के रूप मे मना रहा है। यह वर्ष देश के लिए गर्व का वर्ष है। ठीक 50 वर्ष पहले हमारे देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी और हमारी सेना ने एक साथ मिलकर जो इतिहास लिखा वह अपने आप में अभूतपूर्व है। यह युध्द विश्व में अब तक लडे गये युध्दों में सबसे कम समय में जीता गया निर्णायक युध्द है। इतनी बडी संख्या में कभी भी सैनिकों ने आत्मसमर्पण नहीं किया है। इस युद्ध में पाकिस्तान के लगभग 8,000 सैनिक मारे गये 25,000 घायल हुए थे और 93,000 सैनिकों ने आत्म समर्पण कर दिया था।
“स्वर्णिम विजय वर्ष” की पटकथा कैसे लिखी गयी इसके लिए हमें 50 वर्ष अतीत में लौटना होगा और उस समय के राजनीतिक और सामरिक परिदृश्य को समझना होगा।दिसंबर 1971 से पहले कुछ दिनों में भारत पाकिस्तान के सम्बन्धों में खटास काफी बढ़ चुकी थी। यह खटास पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में पाकिस्तानी सेना की ओर से आम जनता पर की जा रही हिंसा और उत्पीड़न को लेकर बढ़ी थी। भारत पर दिन प्रतिदिन पूर्वी पाकिस्तान से आने वाले शरणार्थियों का दबाव बढ़ता जा रहा था। पश्चिम बंगाल, असम, बिहार, मेघालय और त्रिपुरा में आये लगभग 10 लाख शरणार्थियों के कारण कानून व्यवस्था की स्थिति खराब होती जा रही थी। इससे दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंध खराब होने लगे।
पाकिस्तान इसे अपना अंदरुनी मामला बताकर पल्ला झाड़ रहा था। श्रीमती इंदिरा गांधी ने पूर्वी पकिस्तान में जो कुछ हो रहा था उसको पाकिस्तान का अंदरूनी मामला मानने से इंकार कर दिया क्योंकि देश इसका परिणाम भुगत रहा था। उस समय अमेरिका पाकिस्तान की तरफ आंखें बंद किए हुए था। वह पाकिस्तान को मूक समर्थन दे रहा था। इसे देखते हुए श्रीमती इंदिरा गांधी जी ने 9 अगस्त 1971 को तत्कालीन सोवियत संघ के साथ एक समझौता किया जिसमें दोनों देशों ने एक दूसरे की सुरक्षा का भरोसा दिया था।
पाकिस्तान में 1970 में आम चुनाव हुए थे। इस चुनाव में आवामी लीग को बहुमत मिला। लीग ने सरकार बनाने का दावा किया, परन्तु पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के नेता जुल्फिकार अली भुट्टो इससे सहमत नहीं थे। उन्होंने इस चुनाव का विरोध करना शुरू कर दिया। पाकिस्तान में हालात इतने खराब हो गए कि सेना का प्रयोग करना पड़ा। अवामी लीग के नेता शेख मुजीबुर्रहमान को गिरफ्तार कर लिया गया। शेख मुजीबुर्रहमान की लोकप्रियता पूर्वी पाकिस्तान में बहुत ज्यादा थी। अपने नेता की गिरफ्तारी से जनता आंदोलित हो उठी। जगह-जगह जनता ने तत्कालीन पाकिस्तान सरकार के खिलाफ बिद्रोह कर दिया। पूर्वी पाकिस्तान में हालात खराब होते जा रहे थे। ईस्ट बंगाल रेजिमेंट, ईस्ट पाकिस्तान राइफल्स, पुलिस तथा अर्द्धसैनिक बलों के बंगाली जवानों ने पाकिस्तानी सेना के खिलाफ बगावत करके खुद को आजाद घोषित कर दिया। पूर्वी पाकिस्तान के लोगों ने पाकिस्तान से पलायन करना शुरू कर दिया। इसी समय मुक्तिवाहिनी अस्तित्व में आयी।
उस समय श्रीमती इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री थी। पाकिस्तान से आये शरणार्थियों को शरण देने से पाकिस्तान ने भारत पर हमले करने की धमकियां देना शुरू कर दिया था। प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कोशिश करनी शुरू की जिससे युद्ध जैसे हालात को टाला जा सके। पाकिस्तान की मंशा को भांपते हुए प्रधानमंत्री श्रीमती गांधी ने सेना को युद्ध के लिए तैयार रहने के लिए कहा।
03 दिसंबर 1971 को शाम 05 बजकर 40 मिनट पर पाकिस्तानी वायु सेना ने भारतीय वायुसेना के 11 वायुसेना अड्डों पर हमला कर दिया। श्रीमती इंदिरा गांधी ने उसी समय रात को ही ऑल इंडिया रेडियो पर देश की जनता को संबोधित किया और हवाई हमलों की जानकारी देते हुए बताया कि "कुछ समय पहले पाकिस्तानी हवाई जहाजों ने हमारे वायुसेना के अड्डों श्रीनगर, अमृतसर, पठानकोट, हलवारा, अम्बाला, फरीदकोट, आगरा, जोधपुर, जामनगर, सिरसा पर आक्रमण किया है"।
सरकार ने 04 दिसंबर, 1971 को युद्ध की घोषणा कर दी और सेना को ढाका की तरफ कूच करने का आदेश दे दिया। भारतीय वायुसेना ने पश्चिमी पाकिस्तान के आयुध भंडारों और वायु सेना अड्डों पर बम बरसाने शुरू कर दिया। भारतीय नौसेना के जांबाज सैनिकों ने बंगाल की खाड़ी की तरफ से पाकिस्तानी नौसेना को टक्कर देना शुरू कर दिया।
भारतीय नौसेना ने 04 दिसंबर 1971 को कराची बंदरगाह पर स्थित पाकिस्तानी नौसेना के हेडक्वार्टर को नेस्तनाबूद कर दिया। हमारे नौसैनिकों ने पाकिस्तान की गाजी, खायबर, मुहाफिज जैसे युद्ध पोतों को बर्बाद कर दिया।
इधर भारतीय वायुसेना के हंटर और मिग 21 फाइटर जहाजों ने राजस्थान के लोंगेवाला में एक पूरी आर्मर्ड रेजिमेंट को खत्म कर दिया। इसके साथ ही साथ भारतीय वायुसेना ने पश्चिमी पाकिस्तान में दुश्मन के रेल संचार को भी पूरी तरह बरबाद कर दिया। इसके बाद दुश्मन के हमले पर विराम लग गया। भारतीय सेना के जांबाज सिपाही पाकिस्तानी सेना को रौंदते हुए उसकी 13,000 वर्ग मील पर कब्जा जमा लिया। इस युद्ध में सेना वायु रक्षा कोर (तब आर्टिलरी) ने भारतीय वायुसेना के साथ मिलकर बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस कोर के बहादुर तोपचियों ने दुश्मन के कई युद्धक जहाजों को मार गिराया तथा महत्त्वपूर्ण पुलों, आयुध डिपो, हवाई अड्डों आदि की हवाई हमलों से सुरक्षा कर सेना को आगे बढ़ने में अपनी अभूतपूर्व भूमिका निभाई।
पाक सेना का नेतृत्व कर रहे लेफ्टिनेंट जनरल ए ए के नियाजी ने अपने 93 हजार सैनिकों के साथ भारतीय सेना के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के सामने आत्मसमर्पण कर दिया और अपनी हार स्वीकार कर ली। 13 दिनों तक चले युद्ध के पश्चात् बांग्लादेश अस्तित्व में आया।
इस युद्ध को आखिरी अंजाम तक पहुंचाने में श्रीमती इंदिरा गांधी की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण रही। उनकी इसी क्षमता के कारण उन्हें आयरन लेडी की संज्ञा दी गयी। उनकी सूझबूझ, रणनीतिक कौशल के सामने पाकिस्तानी सेना को मुंह की खानी पड़ी। वैसे तो अब तक पाकिस्तान हमारे देश से चार युद्ध लड़ चुका है। किन्तु 1971 का यह युद्ध उसे स्वप्न में भी श्रीमती इंदिरा गांधी की याद दिलाता रहेगा।
आज पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की 37 वीं पुण्यतिथि है। उनकी इस पुण्यतिथि पर उनकी दूरदर्शिता, साहसिक और निर्णायक निर्णय की जितनी प्रशंसा की जाए वह कम है। श्रीमती इंदिरा गांधी भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री थी।उनका जन्म 19 नवंबर 1917 को इलाहबाद में हुआ था। वह तीन बार देश की प्रधानमंत्री रहीं। 31 अक्टूबर 1984 को उनके अंगरक्षकों ने गोली मारकर उनकी हत्या कर दी थी।
