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Hari Ram Yadav

Inspirational

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Hari Ram Yadav

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धरती हमारी, हम धरती के लाल

धरती हमारी, हम धरती के लाल

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*पुण्यतिथि पर विशेष : 09 अगस्त*

आज देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। सरकार "हर घर तिरंगा" फहराने का आह्वान कर रही है। सरकार की यह मंशा है कि देश का प्रत्येक नागरिक अपने घरों पर राष्ट्रीय ध्वज फहराये। राष्ट्रीय ध्वज हमारे राष्ट्र की शान है, सम्मान है। "हमारे देश में हमारा राष्ट्रीय ध्वज फहराये" इस आशा और विश्वास में देश के असंख्य नागरिकों ने कुर्बानी दी है। हमारे उन पूर्वजों के त्याग और बलिदान की बदौलत आज देश स्वतंत्र है, हम स्वतंत्र है, फिर भी लोगों से राष्ट्रीय ध्वज फहराने के लिए आह्वान करना पड़ रहा है। राष्ट्र प्रेम और राष्ट्रीयता की भावना दिल से निकलती है। ऐसे ही दिल से निकलने वाली राष्ट्रीयता की भावना से भरे हुए एक महापुरुष की आज पुण्यतिथि है, जिसने अपने बाल्यकाल में ही यूनियन जैक को उतार कर फाड़ दिया और लहरा दिया था तिरंगा।

 राजे सुल्तानपुर के थाने पर लहरा रहे यूनियन जैक को देखकर बालक का मन आंदोलित हो उठता था, उसे लहराता देखकर उसकी आत्मा चीत्कार करने लगती थी, झंडे की फहराने से उत्पन्न होने वाली फर फर की ध्वनि उसके कानों में गूंजती रहती थी। वह बालक कोई और नहीं "धरती हमारी हम धरती के लाल " का चितेरा, फैजाबाद का महान क्रांतिकारी, गरीब, मजदूर, किसान के अंदर अधिकारों की अलख जगाने वाला ग्राम उरई का राजबली यादव था। उस बालक ने मन में ठान लिया था कि अंग्रेजों का यह झंडा हवा में नहीं उडे़गा। एक दिन क्रांतिकरी वसुधा सिंह के साथ मिलकर उसने उसे उतारकर, फाड़कर फेंक दिया, और लहरा दिया तिरंगा। राजे सुल्तानपुर के थाने पर तिरंगा लहराने वाले उस बालक राजबली यादव का जन्म सन् 1906 में फैजाबाद (अयोध्या) जिले के ग्राम उरई (अब अम्बेडकर नगर) में हुआ था। उनके पिता का नाम श्री राम हर्ष यादव था। वह अपने तीन भाइयों में सबसे बड़े थे। उनकी माताजी का देहांत बचपन में ही हो गया था।

देश आजादी के लिए संघर्षरत था। अंग्रेजों द्वारा किए जा रहे अत्याचार को सुन सुन कर क्रांतिकारी स्वर्गीय राजबली यादव के बाल मन पर अंग्रेजों के खिलाफ गुस्सा भरा हुआ था। उन्होंने प्राइमरी की पढ़ाई को बीच में ही छोड़ दिया और आजादी की लड़ाई में कूद पड़े। इसी दौरान फैजाबाद के क्रांतिकारी वसुधा सिंह से मुलाकात हुई। वे आसपास अंग्रेजों के खिलाफ होने वाली जनसभाओं और कार्यवाहियों में शामिल होने लगे। अंग्रेजी हकूमत उनके कार्यों से परेशान हो उठी उसने उनके ऊपर पांच हजार रुपये का इनाम घोषित कर दिया।

  अंग्रेजों ने उन्हें अपने लिए खतरा मानते हुए 25 वर्ष की उम्र में ही उन्हें जेल भेज दिया। किन्तु वे अपने रास्ते पर अडिग रहे। उन्हें देश की गुलामी तीर की तरह चुभती थी। नमक सत्याग्रह और सविनय अवज्ञा आन्दोलनों में उन्होंने सक्रिय साझेदारी निभाई। इसीलिए वे अंग्रेजी हुकूमत के कोप भाजन बनते रहे। भारत छोड़ो आन्दोलन तक स्व0 राजबली यादव को कई बार जेल की सजा काटनी पड़ी। वे सात वर्षो तक जेल में रहे। उन्हें जेल में काफी प्रताड़ना दी गयी। अपने नाटक "धरती हमारी, हम धरती के लाल" मंचन के दौरान वे कभी कभी उस प्रताड़ना का भी जिक्र करते थे।

स्वतंत्रता मिलने के पश्चात् वह मया विधान सभा सीट से भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी के टिकट पर चुनाव जीत कर विधायक बने। उन्होंने कभी जाति और धर्म आधारित राजनीति नहीं किया और न ही सत्ता के पीछे भागे। बल्कि गरीबों के रहनुमा होने के कारण भयभीत सत्ता उनके पीछे भागी। आजादी के बाद भी उन्हें कई बार जेल की हवा खानी पड़ी।

सन् 1972 में आजादी की 25वीं सालगिरह पर आजादी में उनके योगदान के लिए उन्हें ताम्रपत्र देकर सम्मानित किया गया। उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री कमलापति त्रिपाठी उन्हें यह सम्मान देने स्वयं फैजाबाद आये थे।

आजादी के बाद भी सामंतवादी ताकतों के विरुद्ध उनका संघर्ष जारी रहा। अशिक्षित, गरीब, मजदूर, दलित और पिछड़े लोगों को जगाने के लिए वे "धरती हमारी, हम धरती के लाल" नाटक का मंचन करते रहे। सामंतवादी व्यवस्था का विरोध करने और गरीबों की रहनुमाई करने के कारण उनके ऊपर कई बार प्राणघातक हमले किए गए, उन्हें डकैती, आगजनी जैसे मामलों में फंसाया गया। लेकिन यह हमले और झूठे मुकदमे उनके मनोबल को तोड़ नहीं पाये।

पूरे जीवन भर उन्होंने गरीबों और मजदूरों की रहनुमाई किया। उनके समर्थकों में हर जाति धर्म के गरीब तबके के लोग होते थे। वह वर्तमान ब्यवस्था से भी खुश नहीं थे क्योंकि वह हक और हुकूमत में बराबरी के पक्षधर थे। वे अपने जीवन में यह गीत गाते हुए सुने जाते थे, जिसमें उनकी नाखुशी झलकती है :-

किसे मालूम था आजादी का दिन ऐसा आएगा,

तमन्नाएं हमारी यों तड़पता छोड़ जाएंगी।


खुशी रोती गरीबों की उजड़ती दुनिया है लेकिन,

उजाला आने वाला है, अंधेरा बीत जाएगा।


उठो मेहनतकशो! जागो, जरा कुछ करके दिखला दो,

तुम्हारा खूं पसीना भी किसी दिन रंग लाएगा।


सता लो ऐ हमें जालिम, सता लो जितना जी चाहे,

हमारी आंख का पानी किसी दिन रंग लाएगा।

09 अगस्त 2000 को सामंतवादी व्यवस्था का विरोधी, गरीबों, शोषितों का रहनुमा और "धरती हमारी, हम धरती के लाल" का योजनाकार और चितेरा धरती मां की गोद में सो गया। कामरेड स्व० श्री राजबली यादव की विचारधारा आज भी प्रासंगिक हैं।

(इन पंक्तियों के लेखक को नाटक "धरती हमारी हम धरती के लाल" मंचन के दौरान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और क्रांतिकारी स्व0 श्री राजबली यादव जी से मिलने का अवसर मिला था।)


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