Hari Ram Yadav

Inspirational

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Hari Ram Yadav

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जरा याद करो कुर्बानी

जरा याद करो कुर्बानी

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देश के गौरव : परमवीर चक्र विजेता अब्दुल हमीद


सन् 1965 का वह दिन सैन्य इतिहास में स्वर्णाक्षरों में दर्ज है, जिस दिन खेमकरण सेक्टर में पाकिस्तानी पैटन टैंक एक जीप पर मांउटेड छोटी सी तोप के शिकार बनकर आग के गोले में तब्दील हो रहे थे। पाकिस्तानी हुकूमत अपने दिल में दुश्मनी पाले 1947 में हुई हार के बदले की भावना से भारत के खिलाफ आपरेशन जिब्राल्टर शुरू कर दिया था। दोनों देशों की सेनाएं आमने सामने थीं। समरतांत्रिक अपने देशों की सेना के लिए व्यूह रचना में व्यस्त थे और सैन्य कमांडर अपने अपने सैनिकों के साथ दो दो हाथ करने के लिए बेताब थे। 4 ग्रेनेडियर्स, 7 माउंटेन ब्रिगेड के अंतर्गत खेमकरण सेक्टर में भीखीविंड रोड पर चीमा गांव के पास तैनात थी। 


10 सितम्बर 1965 को 0800 बजे पाकिस्तानी सेना ने पंजाब के तरनतारन जिले के खेमरन सेक्टर में भीखीविंड रोड पर चीमा गांव के आगे असल उताड़ गांव पर हमला कर दिया। इस हमले के लिए पाकिस्तान ने काफी तैयारी की थी। उसकी तैयारी का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि उसने भारत के खिलाफ अमेरिका में बने पैटन टैंकों को युद्ध में उतार दिया था। दुश्मन के टैंक 0900 बजे तक हमारी फारवर्ड पोजीशन में घुस गए। कंपनी क्वार्टर मास्टर हवलदार अ`ब्दुल हमीद, जो कि एक रिकोइललेस गन टुकड़ी के कमांडर थे, वे अपनी गन माऊंटेड जीप से खेतों के बीच से गुजर रहे थे। इसी बीच उन्हें टैंको की दूर से आती आवाज सुनायी पड़ी। सी क्यू एम एच अब्दुल हमीद ने स्थिति की गंभीरता को समझते हुए पोजीशन ले ली और अपनी ओर आते हुए टैकों को रेंज में आने का इन्तजार करने लगे। जैसे ही दुश्मन के टैंक उनकी रेंज में आये उनकी माउंटेड गन ने आग उगनी शुरू कर दी। अचानक हुए हमले से दुश्मन घबरा उठा। देखते ही देखते वह क्षेत्र पैटन टैंकों की कब्रगाह बन गया। 


टैंक चलायमान तारगेट होने के कारण सी क्यू एम एच अब्दुल हमीद को अपनी पोजीशन बदलनी पड़ी। अब उन्हें प्राकृतिक आड़ से निकलकर बाहर आना पड़ा। इससे वे सीधे दुश्मन के निशाने पर आ गये। उनकी जीप पर दुश्मन ने चौतरफा हमला बोल दिया। चौतरफा हमला होने के कारण उन्हें बार बार अपनी पोजीशन बदलनी पड़ रही थी। अकेला होने के बाद भी वे दुश्मन पर भारी पड़ रहे थे। सी क्यू एम एच अब्दुल हमीद ने शत्रु के टैंकों पर गोलीबारी जारी रखी। पोजीशन बदलने के क्रम में वे शत्रु के भारी गोले से घायल हो गये। 


1965 के भारत पाकिस्तान के युद्ध के दौरान खेमकरन सेक्टर में असल उताड़ की लडाई में अद्भुत वीरता का परिचय देते हुए सी क्यू एम एच अब्दुल हमीद वीरगति को प्राप्त हुए। सी क्यू एम एच अब्दुल हमीद को वीरता और अदम्य साहस के प्रदर्शन के लिए देश के सर्वोच्च वीरता सम्मान “परमवीर चक्र” से सम्मानित किया गया। पाकिस्तानी टैंकों की कब्रगाह को देखकर दुनिया के समरतांत्रिक सोच में पड़ गये थे कि यह हुआ कैसे। यह घटना एक अजूबा थी। इस बात की गंभीरता का अनुमान आप इस बात से लगा सकते हैं कि अमेरिका को अपने इन टैंकों की दुबारा समीक्षा करवानी पड़ी।


सी क्यू एम एच अब्दुल हमीद का जन्म 01 जुलाई 1933 को उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के धामपुर गांव में हुआ था। इनकी माता का नाम सकीना बेगम और पिता का नाम मोहम्मद उस्मान था। वह 27 दिसंबर 1954 को भारतीय सेना में भर्ती हुए और प्रशिक्षण के पश्चात 4 ग्रेनेडियर में पदस्थ हुए। कम उम्र में ही उनका विवाह रशूलन बीबी से हो गया था। 1965 का युद्ध शुरू होने के समय सी क्यू एम एच अब्दुल हमीद अपने गाँव धामपुर अवकाश पर आये हुए थे अचानक उन्हें वापस ड्यूटी पर आने का आदेश मिला, उनकी पत्नी रसूलन बीबी ने उन्हें रोकने की कोशिश की लेकिन हमीद मुस्कराते हुए बोले - देश के लिए उन्हें जाना ही होगा।


अब्दुल हमीद बचपन से ही कुशल तैराक और निशानेबाज भी थे। सेना की सर्विस के दौरान एक बार वह अवकाश पर घर आये हुए थे। रात में रेंघनी चिड़िया बोल रही थी। गॉंव के लोग डर रहे थे कि गॉंव में कुछ अपशकुन होने वाला है। गांव वालों ने यह बात अब्दुल हमीद को आकर बतायी। वे अपनी बन्दूक उठाकर चल पडे। हल्की टार्च की रोशनी में उन्होंने निशाना लगाया। पल भर में वह चिड़िया जमीन पर आ गिरी।  


सी क्यू एम एच अब्दुल हमीद की याद में उनके गांव धामपुर में उनकी एक प्रतिमा लगायी गयी है। खेमकरण सेक्टर के असल उताड़ गांव में उनकी समाधि बनायी गयी है जहां पर प्रतिवर्ष 10 सितम्बर को एक मेला लगता है। आजादी के 50 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष में सरकार ने उनकी याद में एक डाक टिकट भी जारी किया है।


     


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