Arunima Thakur

Abstract Inspirational

4.5  

Arunima Thakur

Abstract Inspirational

विशेष उपहार

विशेष उपहार

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एक नोट :- (जो भी बोल्ड लिखा है वह सब नायिका के मन मे बोला गया है)

आज माँ अति उत्साहित हैं। हाँ माँ का ऐसा ही है जब भी नीता के भाई बहनों को आना होता है माँ का उत्साह सरिता सा बहने लगता है बाकी दिनों में वह स्थिर तालाब के गंदे पानी जैसी सिर्फ नीता के आगे रोती रहती है। नीता की आदत पड़ गई है। सालों पहले पापा के जाने के बाद नीता ने जब रोती हुई माँ को कंधे से लगाया था तब एक पल के लिए शायद विधाता भी हैरान हो गए होंगे कि उनकी लेखनी ने सोलह वर्षीय लड़की का सहारा उसकी माँ को बनाया है या वह पूरे परिवार का सहारा बनने वाली है। बस वह दिन है और आज का दिन माँ मानो उस पर आश्रित ही हो गई हैं और वह अपने कमजोर कंधों पर माँ के परिवार का बोझ उठाकर मजबूत। वैसे यह कोई नई बात नहीं है अक्सर मुखिया के जाने के बाद परिवारों में ऐसा होता है। पर यहाँ थोड़ा अलग है नीता अपने पापा से बहुत प्यार करती है। तो जब भी उसकी माँ पापा की फ़ोटो के आगे गुस्सा करती कि मुझे इस मजधार में अकेले छोड़ कर भाग गए। नीता को बुरा लगता, उसके पापा भागने वालो में से नही थे। यह उनकी गलती नही थी कि उन्हें जाना पड़ा। तब नीता अधिक से अधिक अपनी माँ को खुश रखने का प्रयास करती। शायद इसीलिए उसकी माँ भूल गयी कि वह भी उनकी बेटी है। नीता सोचती क्या यह सच मे उसकी जीवनदायिनी माँ है ? क्या सच में उसे कभी नीता की सूनी आँखे उसका अकेलापन नहीं दिखता ? क्या बुढ़ापा इतना स्वार्थी हो जाता है ? 

पर स्वार्थी कहां...? माँ तो बाकी बच्चों पर कितना लाड़ लड़ाती है। बस नीता को ही भूल जाती है। सच ही कहते हैं कमजोर को माँ भी ज्यादा प्यार करती है। तो अगर नीता कमजोर नहीं है, तो क्या यह उसकी गलती है ? नीता की माँ हमेशा उसकी बड़ी बहन के लिए परेशान रहती। अरे उसका अच्छा खासा खुशहाल परिवार है पति है बच्चे हैं और क्या चाहिए ? पर नीता की माँ के लिए वह बेचारी पति परिवार में जुटी है। उसे कितना काम करना पड़ता है। तेरा क्या तू तो आराम से है। ना सास ससुर की चिकचिक, ना पति बच्चों की झिकझिक। माँ होकर, एक औरत हो कर भी वह नीता के मन को नहीं समझ पाती हैं तो किसी और से क्या कहना। पापा के जाने के बाद उसने कैसे ट्यूशन पढ़ा पढ़ा कर अपनी और भाई बहनों की पढ़ाई पूरी करवाई थी। शायद यह सारी जिम्मेदारी माँ और दीदी को उठानी चाहिए थी। दीदी तो बचपन से छुईमुई राजकुमारी थी और माँ, पापा के जाने से बहुत दुखी थी टूट गयी थी। भाई छोटे थे। पढ़ना तो वह भी चाहती थी पर कुछ सालों में उसको पापा की कंपनी में नौकरी मिल गई। घर चलाने के लिए उसे अपने सपने, अपनी पढ़ाई को ताक पर रखा और जुट गई। आज माँ कैसे समाज में बोल देती है कि मैंने बच्चों को कैसे पाला, कैसे यहां तक पहुंचाया यह मैं हीं जानती हूँ। क्या नीता का कोई योगदान नहीं। वह तो यहां तक बोलती है, इसका पढ़ने का मन ही नहीं था इसीलिए तो इसने नौकरी करना शुरू कर दिया। जिम्मेदार होना भी कितना कष्टकारी है, आप अपना दुख किसी को बता भी नहीं सकते, शायद कोई जानना भी नहीं चाहता।

तब से माँ की आवाज आई, "अरे नीता रात को फ्रुट्सलाद बना कर रख देना, मनु को बहुत पसंद है। और हाँ वह रसगुल्ले लाई है ना कल के लिए ? रीता तो और कोई मिठाई खाती ही नहीं है। माँ कभी तो पूछा करो, तुम्हें क्या पसंद है? और हा रीता और उसके बच्चों के लिए, बहू के लिए उपहार लाई हो ना। जरा मुझे तो दिखाना। नीता का मन करता, माँ कभी तो पूछ लिया करो तुमने अपने लिए कुछ लिया क्या ? 

अरे तेरा क्या तू तो कमाती है जो मर्जी खा, जो मर्जी पहन। वह बेचारी तो ससुराल वाली है। 

जाने दो माँ ने अपना नजरिया तय कर रखा है। उनसे कुछ कहना भगवान से कहने जैसा है। हां पत्थर पर सिर फोड़ने जैसा।

 नीता को अपने भाई-बहनों से कोई शिकायत नहीं है। सब उसका सम्मान करते हैं, हाँ सम्मान पर शायद प्यार नहीं। वह भी खुशी खुशी उनके स्वागत की तैयारी करना चाहती है पर माँ का अति उत्साह उसे निरउत्साहित कर देता है। सब सामान, काम समेट कर वह कमरे में आकर अलमारी खोलकर देख ही रही थी कि वह कल क्या पहने ? उसने अपने लिए कुछ भी नया नहीं लिया है। पर त्यौहार है, ऑफिस जाएगी सब नए कपड़ों में आएंगे तो थोड़ा बुरा लगता है। उसने एक पीली बैगनी सिल्क की साड़ी निकाली। यह साड़ी उसकी सहकर्मी सहेली बेंगलुरु से लायी थी। अभी तक कभी पहनी नहीं थी।यह सोचकर कि चलो कल पहनूंगी वह भी खुश हो जाएगी। जब किसी का दिया उपहार कोई पहनता है तो देने वाले को कितनी खुशी होती है ना कि उसने मेरा मान रखा। नीता कल्पना करके कि उसने वह साड़ी पहनी है और उसकी सहेली उसे देखकर खुश हो रही कल्पना में ही मुस्कुरा दी। तब से माँ आ गई। चल नीता जरा उनके कमरे व्यवस्थित कर दे और चादरें वगैरह बदल दे। वह बोलना चाहती थी, माँ मैं आफिस से आकर पूरा समय रसोई में थी। और अब खाली हुई हूँ ... आप सारा दिन घर पर थी इतना तो आप भी कर सकती थी। और वो लोग कोई मेहमान नही है इतना तो कर ही सकते है। पर हमेशा की तरह वह कुछ बोल नही पायी। साड़ी देखते हुए माँ बोली, "अच्छा हुआ यह साड़ी तुमने निकाल कर रखी। यह साड़ी रीता पर बहुत अच्छी लगेगी। पर माँ रीता के लिए मैं साड़ी लाई हूँ। आपको दिखलाई तो थी और आपको अच्छी भी लगी थी"। हाँ तो क्या एक ही साड़ी दोगी ? तेरा दिल बहुत छोटा है। अरे तेरी बहन है। एक साड़ी की ही तो बात है। नीता की आँखों में आँसू आ गए, जो किसी को कभी दिखाई नहीं देते। माँ को तो बिल्कुल नहीं।

नीता कुछ साल पहले अतीत में चली गयी। उसके साथ बस में सफर करने वाली एक महिला अपने बेटे का रिश्ता उसके लिए लेकर आयी थी। तब भी माँ ने यही कहा था, तुझे तो बहुत रिश्ते मिल जाएंगे या तेरी बड़ी बहन के लिए बात कर ले ना। दुनिया क्या कहेगी बड़ी बहन के रहते छोटी ने शादी कर ली। मन के कितने इंद्र धनुषी सपनों को माँ ने कुचल दिया था। माँ ऐसी ही है, हमेशा उसके सपने को कुचलती हैं, जानकर या अनजाने में, पता नहीं। माँ भला गलत कैसे हो सकती है ? वह तो अपने बच्चों का भला ही चाहती है। नीता उठ खड़ी हुई मन में सोचती हुई, माँ नहीं, मैं ही स्वार्थी हूँ। एक साड़ी नहीं दे सकती क्या ? जिंदगी दे दी है भाई बहनों को। हसरत से साड़ी को एक नजर देख कर किनारे पर रख दिया।

सुबह तड़के ही सब आने वाले थे। आज बिना किसी दर्द की शिकायत किए माँ उत्साह से रसोई घर में कुछ बना रही थी। नीता ने उठकर देखा। उन्होंने चौक भी पूर कर दिया था और आरती की थाली भी सजा दी थी। नीता का मन कसैला सा हो गया। माँ कभी तो मेरे लिए भी सोच लिया करो। नीता ऑफिस से थक कर आती, माँ हमेशा दुखी कराहती ही मिलती। नौकरानी रखने को भी राजी नहीं थी कि दो लोगों का काम तो मैं ही समेट लेती हूँ। तुम्हें कहां कुछ करना पड़ता है ? पर क्या सचमुच ? क्या उसे आज तक माँ के हाथ की एक कप चाय भी नसीब हुई थी। ऑफिस से आकर खाना बनाना, दोपहर के पड़े हुए बर्तन धुलना और मैं माँ कहती, अरे आज बर्तन धुलने रह गए और नीता का मन चिल्ला कर बोलना चाहता, माँ तुम कब धोती हो ? पर नीता बोल नहीं पाती, बेचारी माँ जो ठहरी, सास होती तो शायद चार बातें सुना देती। 

वही माँ आज सुबह से उठकर किचन में है। मानो घर का रोज का काम वह ही संभालती है। नीता ने सोच लिया, आज तो माँ जो भी कुछ कहें यह साड़ी वही पहनेगी। वह नहा धोकर साड़ी पहनकर बाहर आयी। तबसे रीता आकर उसके गले लग गई। 

दीदू कैसी हो ? 

तुम कैसी हो कितनी प्यारी लग रही हो। 

माँ भी पीछे-पीछे आ गई। अरे यह साड़ी क्यों पहनी ? मैंने रीता को देने के लिए रखने को कहा था ना। 

हां ठीक है ना, मैं आज पहन का रीतादी को दे दूंगी।

 तो क्या रीता तुम्हारी उतारी हुई साड़ी पहनेगी ? 

रीता बीच में बोल पड़ी, "माँ मुझे साड़ी नहीं चाहिए। वैसे भी मैं सलवार सूट ही पहनती हूँ। यह साड़ी इस पर कितनी अच्छी लग रही है। 

माँ रीता की बलैया लेते हुए बड़बड़ाई एक तू है जो इसके लिए इतना सोचती है। एक यह है अपने भाई बहनों के बारे में जरा भी नहीं सोचती। 

नीता की आँखे फिर अदृश्य आँसुओं से भर आई। तब से दोनों भाई भाभी भी आ गए। उनके साथ उनके बच्चे रीता के बच्चे सब दीदी बुआ भाभी कहते हुए उसको घेर लिए। यह सब कितने प्यारे हैं। उनसे भला कैसी नाराजगी ? नाराजगी तो माँ से है। मैं उसके ही हाड़ मांस से बनी हूँ फिर भी वह मेरे लिए इतनी असंवेदनशील क्यों है ? 

अच्छा हुआ तुम लोग समय से आ गए। चलो जल्दी से राखी बंधवा लो, फिर मुझे ऑफिस भी जाना है। हाँ दीदी चलो, कितना अच्छा होता आज आप ऑफिस ना जाओ आज हम सब घूमने जाते हैं। नहीं तुम सब घूम कर आओ। वैसे भी मैंने छुट्टी के लिए अप्लाई नहीं किया है। अरे पहले इन लोगों को चाय नाश्ता तो करने दो। तेरा ऑफिस है तो क्या ? वह तो अभी थके हारे आए हैं। नीता बिना कुछ बोले चुपचाप अपने पर्स में कुछ ढूंढती रही। ना जाने क्या। शायद उसे नहीं मालूम था उसकी माँ की ममता जो खो गई है वह पर्स में तो पक्का नहीं मिलेगी। पर वह ढूंढती रही। चौक पर पीढा रखकर पहले बच्चों ने एक दूसरे को राखी बांधी। भतीजे को बिठाकर उसको राखी बांधी। छोटा भाई बैठा उसको दोनों बहनों ने राखी बांधी। फिर बड़ा भाई बैठा उसको दोनों बहनों ने राखी बांधी, भाभी को भी राखी बांधी। चलो अब मैं ऑफिस के लिए निकलती हूँ, शाम को मिलते हैं। माँ ने एक बार भी नहीं कहा, बेटा चाय पीकर जा। माँ कभी नहीं कहती है। उनकी आदत ही नहीं है। नीता हर रोज चाय बनाकर पी कर जाती है। माँ का चाय नाश्ता टेबल पर रख देती है।

तभी उसके भाई बहनों ने उसका हाथ पकड़कर कुर्सी पर बिठा दिया। क्या हुआ छोटे ? छोटा भाई बोला, "राखी इसलिए बांधते हैं कि बहने चाहती हैं कि भाई हमेशा उनकी रक्षा करें। पापा के जाने के बाद से इतने सालों से यही तो आपने हमारे लिए किया है। तो आप क्या हमारे लिए भाई से कम हो। तो आज से हम सब आपको राखी बांधेगे। 

नीता की आँखों में इस बार सच्ची के आँसू झिलमिला उठे। वह प्यार से झिड़क कर बोली, चल पागल ऐसा भी कहीं होता है उल्टी रीत चला रहे हो। 

बड़ा भाई बोला उल्टी तो उल्टी रीत तो चलाएंगे। 

नीता को बैठा कर दोनों भाइयों और बहन ने उस को राखी बांधी। मिठाई खिलाई, आरती की। 

सब सपने जैसा लग रहा था। हां सच में वह मेरा सम्मान करते हैं, पर प्यार भी करते हैं।

माँ बोली, "अब राखी बंधवाई है तो सबको नेग भी तो दो"। 

नीता क्या देती ? उपहार तो ला कर उसने माँ को पहले ही पकड़ा दिए थे। आजकल सब काम ऑनलाइन हो जाता है तो घर में इतना कैश भी नहीं था। उसने शर्मिंदगी से सबको देखा। उसके दिल में टीस उठी। माँ चाहती तो वह सारे उपहार जो वह कल लाई थी, लाकर उसे पकड़ा सकती थी। वह बाद में जाकर और उपहार ले आती उन सब को देने के लिए। पर माँ से उम्मीद करना। 

उसने भाइयों के दिए हुए कवर उठाए फिर मुस्कुरा कर बोली, लाओ मेरा फोन अभी सब को ट्रांसफर करती हूँ। 

माँ फिर बोली, "हां यह हुई ना बात। आखिर पैसे बचाकर तुम करोगी भी क्या ?

 माँ तुम कितना असंवेदनशील बोलती हो। तुम्हारी बातें चुभती है। पर हमेशा की तरह वह कुछ बोली नहीं। 

पर भाई बोल पड़ा, "क्या माँ दीदी सब तो देती रहती है। 

हां सब तो तुम्हारी दीदी ही करती है मैंने आज तक तुम लोगों के लिए किया ही क्या है।

बड़ा भाई बोला, "इस बार हमने दीदी से राखी इसलिए नहीं बंधवाई है कि हमें उनसे कुछ पैसे या उपहार चाहिए। हमें तो बस दीदी से उनकी परमिशन चाहिए। हम चाहते हैं कि दीदी भी अपना घर बसाएं, अगर वह चाहे तो। अगर वह चाहे तो थोड़ा घूम फिर कर आये। वह भी अपनी जिंदगी जीना शुरू करें। 

अरे वह घूमने जाएगी तो मैं अकेली घर में कैसे रहूंगी ? ठीक है मुझे भी उसके साथ भेज देना।

 नहीं माँ तुम हमारे साथ चलो। हमारे साथ चलकर रहो। तुमको जाना है तो तुम भी जाना पर अभी दीदी को अपनी जिंदगी जीने दो। 

अच्छा जैसे वह जी ही नहीं रही है। 

नीता मन में बोली, माँ क्या इसे जीना कहते हैं ? 

अरे पर यह जिंदगी उसने ही चुनी थी। उसे शादी नहीं करनी थी, नही तो कितने लड़कों को ना क्यों बोलती थी ? 

माँ तुम झूठ बोलना कब बंद करोगी ? मैंने शादी के लिए कब ना बोला था ? तुमने ही हमेशा रोना रोया, तेरे जाने के बाद तेरे भाईयो का क्या होगा ? 

माँ वह सब पुरानी बातें थी। तब हम सब की जिम्मेदारी दीदी पर थी। आज दीदी हमारी जिम्मेदारी है। अगर सच में शादी नहीं करना चाहती तो उनकी मर्जी।

और बहुत चाहेंगी तो उससे शादी करेगा कौन ? माँ फिर बोली। 

माँ तुम हमेशा मेरे बारे में इतना गंदा क्यों सोचती हो? क्या मैं तुम्हारी सौतेली बेटी हूँ ?

माँ उसकी चिंता आप मत करो। दीदी हमने बगैर आपसे पूछे मैट्रिमोनी साइट पर आपका अकाउंट बना दिया है। कुछ अच्छे प्रस्ताव भी हैं। आप देख लो, मिल लो। अगर आपको अच्छा लगे तो ही हम आगे बढ़ेंगे। पर इससे पहले हम चाहते हैं आप एक लंबी छुट्टी लो और थोड़ा घूमो फिरो। अपने इतने साल हमारे लिए घर में होम किए। 

माँ का मुँह कैसा कैसा हो रहा था।

पर अब नीता को माँ की बातों की परवाह नहीं थी।

माँ कुछ भी कहे कहने दो, वह माँ है। कम से कम भाई बहन तो उसे समझते हैं। नीता आगे बढ़कर अपने भाई-बहनों के गले लग गयी। उसे रक्षाबंधन पर एक अनोखा उपहार मिला था, अपनी जिंदगी जीने का।


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