विजेता
विजेता
आज बहुत खुश दिख रहा है वो, होता भी क्यों नहीं, आज वर्षों बाद वही जिंदगी जो जी रहा है, जिसका वो आदि हो गया था।आज फिर वह लोगों के कंधों पर सवार है, लोग उसके नाम के नारे लगा रहे हैं, जहाँ-जहाँ से वो गुजर रहा है लोग फूल माला से उसका स्वागत कर रहे हैं। एक बार फिर उसके पुराने दिन लौट आये हैं।
मुझे याद है जब बचपन में गलियों में अपने दोस्तों के साथ क्रिकेट खेला करते थे और वो ऐसे शॉट मारता की लोगों के घरों की खिड़कियों के शीशे टूट जाया करते थे, पूरा मोहल्ला चाहता था कि वह क्रिकेट खेलना छोड़ दे पर उसके बाबा ने उसको गाँव के बाहर वाले बाड़े में क्रिकेट ग्राउंड बना कर, वहां अपने दोस्तों के साथ खेलने को कहा। एक बस बाबा ही तो समझते थे उसके जुनून को। उन्होंने ही तो उसको मदन लाल जी से क्रिकेट की कोचिंग लेने में मदद की थी। रोज सुबह शाम दोस्तों के साथ बाड़े में क्रिकेट खेलना, उसकी दिनचर्या का हिस्सा हो गया था।
हम आसपास के गांवों की टीम्स के साथ मैच रखते थे, उसकी जीत का सफ़र वही से शुरू हो गया था। मुझे आज भी याद है हमारे पहले ही मैच में उसने नाबाद 35 रन बनाकर अपनी टीम को जीत दिलाने में मदद की थी। बस उस दिन से ही वह अपने दोस्तों के कन्धों पर सवार हो गया था।
फिर आगे की पढ़ाई के लिए भोपाल जाना हुआ। क्रिकेट भी एक लत की तरह ही है, कहते हैं न कि एक लती दुनिया में कहीं भी जाये अपना ठिकाना ढूंढ ही लेता है। उसने भी पास के ही एक लोकल क्रिकेट क्लब को ज्वाइन कर लिया। वहीं पर उसके बाबा ने मदन लाल जी से उसकी प्रोफेशनल कोचिंग स्टार्ट करवा दी थी। जल्द ही वह यहाँ भी अपने साथियों के कन्धों पर सवार हो गयामदन लाल जी की कोचिंग के कारण उसकी बैटिंग में निरंतरता और धार दोनों आ गयी।
एक दिन भारत की अंडर नाइन्टीन टीम के सिलेक्शन के लिए कुछ सेलेक्टेर्स एक मैच देखने भोपाल आये थे। मुझे याद है उस दिन उसकी टीम की बोलिंग धराशायी हो गयी थी। विरोधी टीम ने रन्स का पहाड़ खड़ा कर दिया था सामने। यहाँ भी पारी की शुरुआत की जिम्मेदारी मेरे दोस्त को ही दी जाती थी। टीम ने सम्भल कर बैटिंग करने का निर्णय लिया था, मेरा दोस्त अजीत एक छोर पर टिका हुआ सम्भल कर रन बना रहा था, लेकिन दूसरे छोर से विकेट झड़ते ही चले जा रहे थे। शुक्र था की मंदीप ने आकर सूझबूझ से बैटिंग की और दूसरे छोर से विकेट के पतन को रोका।
तब तक अजीत की नजर जम चुकी थी और उसने पिच को भी अच्छे से पढ़ लिया था। फिर तो उसने मानो एक्सीलेटर पर पैर रख दिया, मैदान में हर तरफ रन्स की झड़ी लगा दी और आखिरी बॉल पर छक्का लगाकर अपनी टीम को मैच जीता दिया। उसकी वह पारी देखने के बाद सेलेक्टेर्स ने अजीत से बात की और उसको उनकी बोलिंग की कसौटी पर परखा भी। अंततः अंडर नाइंटीन टीम के लिये अजीत को चुन लिया गया था।
अजीत की किस्मत और मेहनत दोनों खूब रंग ला रही थी, टीम के कोच की मदद से अजीत का खेल और भी निखरता चला जा रहा था। अजीत ने अपनी दम पर टीम को कई मैच जिताए। अब वह बेस्ट फिनिशर की लिस्ट में शुमार किया जाने लगा था। बहुत से फैन बन गये थे उसके और वो कइयों का आदर्श बन चुका था।
फिर हुआ अंडर नाइंटीन वर्ल्ड कप, याद है मुझे वो फाइनल मैच, जिसमे भारतीय टीम दूसरी पारी में बैटिंग करने वाली थी, श्रीलंका ने भारत के सामने 310 रन्स का पहाड़ जैसा लक्ष्य रखा था पर उस दिन तो पता नहीं क्रिकेट के भगवान की उस पर कृपा हो गयी थी, पूरी पारी में उसने कभी भी विपक्षी टीम के बोलर्स को मैच में आने का मौका ही नहीं दिया और 5 विकेट से वह मैच जीत लिया। पूरे टूर्नामेंट में उसने अपना बेहतरीन परफॉरमेंस दिया। आठ मैचेस में उसको मेन ऑफ़ द मैच मिला और मैन ऑफ़ द टूर्नामेंट का ख़िताब भी अजीत की ही झोली में आया था। मुझे याद है कैसे उस दिन साथी खिलाड़ियों ने उसको कंधों पर उठाकर पूरे ग्राउंड का चक्कर लगाया था।
जब अपने देश वापस आया तो एअरपोर्ट पर अपना स्वागत देखकर, लोगों की आँखों में प्यार और सम्मान देख कर उस दिन मेरे दोस्त की आँखे भर आई थी। जिसे जिंदगी से इतना कुछ मिल गया हो उसको और क्या चाहिए। अपने गाँव पंहुचा तो लोगो ने उसको कांधे पर बैठाकर पूरे गाँव में घुमाया, जगह-जगह फूल मालाओं से उसका स्वागत किया गया। वो तो एकाएक पूरे देश का हीरो बन गया था।
अंडर नाइंटीन वर्ल्ड कप में उसकी परफॉरमेंस को देखते हुए भारत की सीनियर टीम में उसका चयन हो गया। पहला ही मैच पकिस्तान से था, और उस दिन उसने रावलपिंडी एक्सप्रेस को पटरी से ऐसा उतारा की फिर तो उसको सपनों में भी अजीत ही दिखने लगा था, यह बात बाद में उसने एक इन्टरव्यू में सबको बताई थी। इस दौरान अजीत को लोगों से बहुत प्यार मिला, दिन व दिन लोगों का प्यार और उम्मीदें बढती ही जा रही थी और उसने भी लोगों की उम्मीदों पर खरा उतरने में कोई कसर नहीं छोड़ी। हर मैच से पहले खूब अभ्यास करता। अपनी बैटिंग के विडियो देखकर अपनी गलतियों को सुधारने की कोशिश करता। अपोजिट टीम के बोलर्स के वीडियो देखकर उनकी कमजोरी को पकड़ता और उस पर ऐसा वार करता की उनकी पूरी लाइन बिगड़ जाती, और फिर पूरी टीम उस बॉलर का जमकर फायदा उठाती। अब तक कई रिकॉर्ड, अवार्ड और ट्राफी अजीत के नाम हो चुकी थी। लेकिन उसकी नज़र तो कहीं और थी। वो तो अब आने वाला वर्ल्ड कप जीतने के सपने देखने लगा था। पूरे जोश से वह वर्ल्ड कप की तैयारी में जुट गया था।
वर्ल्डकप से ठीक पहले एक रात उसका दोस्त उसके घर आया, बोला आज मौसम सुहाना है चल बाइक राइडिंग पर चलते हैं।दोनों ने हेलमेट पहने और निकल गये मौसम का मज़ा लेने। दोस्त बाइक चला रहा था अजीत पीछे बैठा हुआ था। दोनों निकल गये वीआईपी रोड
पर। स्ट्रीट लाइट की मद्धम सी रौशनी में वीआईपी रोड का नज़ारा और बड़ा तालाब का दृश्य मनोरम था। दोनों अपनी साइड पर इस दृश्य का आनंद लेते हुए चले जा रहे थे तभी पता नहीं कब पीछे से एक पज़ेरो आई और उनको उड़ाती हुई नज़रों से ओझल हो गयी। अजीत के दोस्त के शरीर में कोई हलचल नहीं थी, और अजीत भी अपनी जगह से हिल नहीं पा रहा था, कुछ देर तक वह हेल्प–हेल्प चिल्लाता रहा और बेहोश हो गया।
जब आँख खुली तो उसने खुद को अस्पताल के एक दस बाय पंद्रह के कमरे के बेड पर पाया। घरवाले सब आसपास थे, उसने प्रश्न भरी नजरों से अपनी माँ को देखा और उसकी मम्मी फूट – फूट कर रोने लगी, उनकी आंखों के आंसुओं ने कह दिया था की उसका वो अजीज दोस्त अब नहीं रहा, अजीत की आँखों के आगे अँधेरा छा गया था। कुछ भी न दिखाई दे रहा था न सुनाई दे रहा था। बस दोनों आँखों से आंसुओं के झरने बहते जा रहे थे। उसकी माँ अपने सारी के पल्लू से उसके आंसू पोछ रही थी।
कुछ दिनों तक अजीत का इलाज चलता रहा और एक दिन वह उठकर बैठने की कोशिश करने लगा, लेकिन लाख कोशिश के बाद भी वह बैठ नहीं पाया। जैसे ही उसकी माँ ने उसको बैठने की कोशिश करते हुए झटपटाते हुए देखा वो दौड़कर डॉक्टर को बुला लाई। डॉक्टर ने उसको शांत करते हुए जो कहा वो अजीत की बर्दाश्त के बाहर था। उनके मुताबिक उसकी रीढ़ की हड्डी में फ्रेक्चर हो गया था और कुछ गुरिये उतर गये थे ऐसा ही कुछ कहा था। पैरों में स्टील की रॉड डाली गयी थी, अब आगे की लाइफ अजीत को बैसाखियों के सहारे ही बितानी थी।
यह सुनकर मानो उसके सारे सपने बिखर से गये। वो लोगों की भीड़, वो क्रिकेट ग्राउंड, बैटिंग-बोलिंग करते हुए खिलाड़ी सारे दृश्य एक-एक करके उसकी नजरों के सामने दौड़ने लगे। मैंने इससे अधिक लाचार उसको कभी नहीं देखा था। अपनी किस्मत पर उसको गुस्सा आने लगा। जीने की इच्छा जैसे ख़त्म ही हो गयी थी। लेकिन धीरे-धीरे उसकी हालत में सुधार होने लगा और वह अपने घर लौट आया। थोड़े दिनों में वह बैषाखियों के सहारे चलने लगा था।
एक्सीडेंट के बाद दोस्त, उसके कोच, बी सी सी आई वाले साथी, जान पहचान वाले लोग कुछ दिनों तक मिलने हाल-चाल जानने उसके घर आते रहे। कुछ की आँखों में सहानुभूति नजर आती तो कुछ उसको होंसला रखने को कहते। पर वह अपने आप को समझा नहीं पा रहा था। कैसे एक ही झटके में उसके वो सारे सपने बिखर गये। उसको देश के लिए विश्व कप जीतना था। विश्व कप ट्रॉफी अपने देश के लिए लाना चाहता था वो। पर जैसे सब हाथ से फिसल गया। वह चाह कर भी कुछ नहीं कर पा रहा था।
अजीत को अब तक लोगों से घिरे रहने की इतनी आदत हो गयी थी की वह अचानक से आये इस सूनेपन से जूझ नहीं पा रहा था, इसलिए वह अकसर अपने साथियों से मिलने ग्राउंड जाने लगा। पर वहां लोग उसको सहानुभूति की नजर से देखते जो अजीत को कतई अच्छा नहीं लगता। वह एक विजेता था और विजेता की तरह ही जीना चाहता था। धीरे-धीरे उसने ग्राउंड जाना कम कर दिया। अकेलेपन से बचने के लिए वह पास ही की सोसाइटी के ग्राउंड में जाकर बच्चों को क्रिकेट खेलता हुआ देखता और उनको बैटिंग के टिप्स देता रहता।
धीरे-धीरे लोगों ने उसको भूलना चालू कर दिया। अब कोई घर मिलने नहीं आता। किसी के कॉल नहीं आते। कोई उसको किसी फंक्शन में नहीं बुलाता। बस साल में एक बार जब भी उसका जन्मदिन होता लोग बधाई देने कॉल करते। अब बस यही उसकी पहचान थी लेकिन ये सब उसको अन्दर ही अन्दर खाए जा रहा था। मैंने देखा था अपने उस दोस्त को टूटते हुए एक दिन। खैर जल्दी ही उसने खुद को सम्भाल लिया था और वह किसी भी तरह अपने पुराने दिनों को दौबारा जीना चाहता था। उसने कई बार बिन बैशाखी के चलने की कोशिश की लेकिन हर प्रयास घरवालों और डॉक्टर्स की डांट के साथ ख़त्म हो जाता।
पर उसे तो हर हाल में इस नर्क सी जिंदगी से बाहर आना था। उसने अपने कुछ पुराने साथियों के साथ मिलकर एक क्रिकेट कोचिंग अकादमी की शुरुआत की। और वो सब मिलकर बच्चों को क्रिकेट के गुर सिखाने में लग गये, इस से अजीत के मन का अकेलापन तो दूर हो गया लेकिन अकसर विजेता की तरह लोगों के कांधे पर सवार होने का जुनून उसको मन ही मन कचोटता रहता।
कल की ही तो बात है, वह ग्राउंड से पैदल घर की ओर जा रहा था, एक बच्चा सड़क किनारे अपनी धुन में मस्त खेल रहा था। अजीत की नजर सड़क पर आती हुई कार पर गयी जो बहुत स्पीड में उस बच्चे की और आ रही थी, गाड़ी बहक भी रही थी, लगा शायद ड्राइवर नशे में होगा।
कोई अनहोनी हो उस बच्चे के साथ उससे पहले अजीत अपनी दोनों बैशाखियों को कसकर पकड़ते हुए पूरी ताकत से उस बच्चे की और बढ़ने लगा, कार बहुत पास आ गयी थी। अजीत पूरा जोर लगाकर आगे बढ़ा और बच्चे का हाथ पकड़ कर झटके से उसे पीछे की और खींच दिया। और इससे पहले की अजीत वहां से हट पाता गाड़ी उसे उड़ाते हुए चली गयी थी।
और देखिये आज फिर से मेरा दोस्त लोगों के कांधे पर सवार है, आज फिर वो सबका हीरो बन गया। फर्क बस इतना है की आज वह कंधो पर बैठा नहीं लेटा है। लोग उस पर फूलमाला चढ़ा रहे हैं। उसके नाम के नारे लगा रहे हैं, हांलाकि ‘अजीत-अजीत’ की जगह आज ‘जब तक सूरज चाँद रहेगा अजीत तेरा नाम रहेगा’ नारे ने ले ली है।
खैर जो भी हो आज फिर से मेरे दोस्त के पीछे लाखों लोगों की भीड़ है, फिर से वह लोगों के कांधे पर सवार है, आज बहुत दिनों बाद वह फिर वही दिन जी रहा है, एक विजेता की तरह जा रहा है। उसकी आँखे सुकून से बंद हैं और चेहरे पर एक अजब सी शांति है। बस यही तो चाहता था वो जिन्दगी से।
‘’मैं आज ख़ुशी ख़ुशी इस दुनिया से जाने को तैयार हूँ,
मर कर ही सही, फिर से लोगों के कंधों पर सवार हूँ।’’