मोबाइल संकट
मोबाइल संकट
मैं एक दिन टैक्सी से भोपाल जा रहा था। साथ में अन्य सवारियां भी थीं । सब की नजरें और गर्दन झुकी हुई थी। नहीं - नहीं शर्म के कारण नहीं, सभी फेसबुक, व्हाट्सएप्प में व्यस्त थे।
तभी ड्राइवर के मोबाइल फोन की रिंग बजती है। बंदा कॉल रिसीव करने लगा बोलने के लहजे और आवाज की पिच से ही पता चल रहा था कि दूसरी ओर साहब की पत्नी थीं। साहब ने पूरे पंद्रह मिनट बात की। बात भी क्या की, हाँ, हूँ, ठीक है, ले आऊँगा, कर दूँगा, आ जाऊँगा यही सब चलता रहा। मैं थोड़ा हैरान भी था कि भाई पंद्रह मिनट कौन बात कर लेता है पत्नी से मोबाइल पर । इस बंदे को तो राष्ट्रपति पुरुस्कार मिलना चाहिए ।पत्नी के कॉल के अलावा एक - दो कॉल और आए, उसने वो भी रिसीव किए और बात की।
टैक्सी अपनी रफ़्तार में चली जा रही थी। तभी ड्राइवर को तिराहे पर दाएं तरफ से एक कार आती हुई दिखाई दी। ड्राइवर ने उसे रोकने के लिए हार्न बजाया पर वो बंदा नहीं रुका और कार लेकर सामने आ गया ।
हमारी टैक्सी के ड्राइवर ने तुरंत ब्रेक लगाया और कार वाले को चार-पांच भजन सुनाए और बड़बडाता हुआ गाड़ी बढ़ाने लगा। ''कैसे बेबकूफ लोग हैं, कान में इयर फोन डाल लेंगे, मोबाइल पर बात करते रहेंगे और ड्राइविंग भी करेंगे। आप कितना भी हॉर्न बजाते रहेँ कोई ध्यान नहीं। मरेंगे सा... एक दिन। सरकार भी बेबकूफ है, मोबाइल पर बैन ही लगा देना चाहिए। ड्राइविंग करते समय कोई बात करे तो ड्राइविंग लाइसेंस ही रद्द कर देना चाहिए लोगों का।''
तभी मेरे बाजु में बैठे साहब मन ही मन चिल्लाए '' सबसे पहले तेरा ही लायसेंस रद्द होगा''।मोबाइल की लत