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Kusum Lakhera

Drama Romance Tragedy

4  

Kusum Lakhera

Drama Romance Tragedy

वह मानसून

वह मानसून

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255


बारिश की रिमझिम रिमझिम बूंदे, मिट्टी की महक, और वह कॉलेज के हॉस्टल वाले दिन बहुत याद आते हैं प्रशांत को.....

 अभी भी सावन की झड़ी लग जाती है तो वह बीते हुए लम्हें जैसे ताज़ा हो जाते हैं ...............अभी वह बालकनी 

में बैठा ही था कि ज़ोरदार बारिश की झड़ी लग गई अंदर से किसी ने आवाज़ दी " प्रशांत भीतर आ जाओ 

यार बाहर अकेले अकेले क्या कर रहे हो ?" आ रहा हूँ सुधा डियर" प्रशांत बड़े प्यार से बोला 

सुधा," क्या बात है जनाब कहाँ खो गए, कुछ तो है बताओ न, देखो तुम्हारी मेरी शादी के अब एक साल

पूरा होने वाला है,पर अब भी लगता है जैसे कहीं कुछ ....

ऐसा है ...जो तुम मुझसे छुपा रहे हो " प्रशांत," तुम लड़कियाँ भी न पता नहीं क्या क्या

सोच लेती हो ? राई का पहाड़ तो कोई तुमसे बनाना सीखे ".....

सुधा, " आम लड़की नहीं हूँ मैं, एक तो मनोविज्ञान में पीएचडी कर रही हूँ.... दूसरा एक डॉक्टर की पत्नी हूँ"

प्रशांत," तुमसे जीत नहीं सकता मैं ................सुधा," प्रशान्त मेरी मम्मा का फोन आया है, शायद 

भाई के लिए लड़की फाइनल करनी है, मुझे बुलाया हैक्या मैं ........

प्रशांत,"सुधा कमाल करती हो, तुम जाओ भई ! सुधा,'तुम मैनेज कर लोगे न क्योंकि अभी जाऊंगी 

वहाँ ..कल लड़की वालों के घर ....फिर मैं परसों ही लौट के

आ पाऊंगी ..प्रशांत," डोंट वरी स्वीट हार्ट मैं कर लूंगा.. मैनेज... वैसे 

भी मुझे हॉस्टल से आदत है खाना बनाने की मैडम "

सुधा एक छोटे बैग में अपने कपड़े जरूरी सामान, कुछ पैसे लेकर घर से चली जाती है .........

प्रशान्त फिर कुछ देर बॉलकनी में बैठता है...वहाँ भी उसका मन नही लगता, वह बैडरूम में आकर 

सोने की कोशिश करता है तभी नींद का प्यारा झोंका उसे सुला देता है वह अब अपने सपनो की दुनिया 

में पहुँच जाता है " कॉलेज वाला मानसून का रिमझिम बारिश का दिन ....वह उस दिन 

दोस्तों के साथ बहुत भीगा था ..तन मन और आत्मा तक वह भीतर तक भीग गया था ...मानो प्रेम की बारिश में ...

..क्योंकि उस दिन शुभांगी को उसने प्रोपोज किया था ...

वह बहुत खुश था..उसे लग रहा था जैसे सपना सच हो

गया हो ..यूँ तो वह भी लड़कियों के साथ जल्दी से 

बातचीत नहीं करता था ..अभी तक माँ, भाभी, बहनों

के रूप में लड़कियों के संग बात करता था .

.पर आज ....भीगे हुए मानसून ने उसे एक प्यारी सी लड़की का 

दोस्त बना दिया ...शुभांगी," तुम प्रशांत हो न सेकंड ईयर के स्टूडेंट "

उसकी खनकती आवाज़,उसका बोलने का अंदाज बहुत ही भोलेपन और 

मासुमियत से भरा हुआ ...शुभांगी,'"तुम मेरे सीनियर हो,इसलिए बस दोस्ती ....

बाकी कुछ भी नहीं,मुझे दूसरे स्टूडेंट्स जैसे टाइम   वेस्ट करना मुझे अच्छा नहीं लगता "

प्रशांत को लग रहा था जैसे उस दिन मानो पहला प्यार मिला था, ......बहुत ही...

सादगी..... से भरी, स्पष्टवादी लड़की ......शुभांगी," सुनो प्रशांत बारिश मुझे बहुत ही अच्छी लगती है .......

 ,यूँ लगता है आसमान अपना प्यार अपनी अनुभूति

प्रकट कर रहा हो...धरतीं भी तो कितने इंतजार के 

बाद कितने समय के बाद बूंदों का स्पर्श पाती है...

कितना पावन है न ये सम्बन्ध ........प्रशांत,"शुभांगी तुम कविताएँ भी लिखती हो क्या?

..तुम बोलती रहो यार ..तुम इस डॉक्टरी के चक्कर 

में क्यों पड़ी ? शुभां

गी खिलखिलाते हुए," ऐसा नहीं है, थोड़ा 

बहुत लिटरेचर भी पढ़ लेती हूँ  

उस दिन वे दोनों चार घन्टे साथ रहे, पहले गप्पें मारी,

फिर हॉस्टल के कैम्पस में भीगे, फिर शाम को कॉफी पी ...वह उस दिन सब कुछ भूल गया ..मानो

दुनिया शुभांगी तक ही सिमट गई .....पर अगले दिन जो हुआ वह बहुत बुरा हुआ .... बहुत ही भयानक .....गर्ल्स हॉस्टल में एक लड़की गिर गई है ...उसे 

बहुत चोट भी आई हैं ...ये न्यूज़ सारे ब्वॉयज हॉस्टल में पहुँच गई ....पर जब थोड़ी देर के बाद पता चला कि शुभांगी ही वह लड़की है तो मानो उस दिन प्रशांत के सर के 

ऊपर मानो आसमान गिर गया और पाँव के नीचे जमीन धंस 

सी गई ... वह दिन प्रशांत के लिए बहुत ही मनहूस सा निकला ......

हॉस्टल के चौकीदार ने बताया कि .....शुभांगी हॉस्टल के बाथरूम में नहाने गई थी वहां 

किसी ने साबुन या शैम्पू की खुली शीशी छोड़ दी थी लापरवाही से उसमे पैर फिसला और उसके सिर 

पर ऐसी चोट आई कि वह अपनी सारी याददाश्त खो बैठी ...सब स्टूडेंट बारी बारी उससे मिलने गए ..,पर वह 

किसी को भी पहचान नहीं पाई उसी दिन ही वार्डन ने उसके घर से उसके मम्मी पापा को भी फोन करके बुलवा दिया 

वे भी बेचारे बहुत निराश हुए शुभांगी उनकी इकलौती सन्तान थी .......प्रशांत उस दिन बहुत रोया ..भगवान से

भी शिकायत की ...पर कुछ नहीं कर सका .... .प्रशांत  नींद में ही चिल्ला पडा "शुभांगी " तभी वह सपने से जागा

ओह मैं न जाने कब तक शुभांगी को ढूंढता रहूंगा ..मन

ही मन .... वह बुदबुदाया तभी उसे लगा साथ वाले फ्लैट 

में कुछ लोगों ने शिफ़्ट किया है जब उसने बालकनी से

झांका तो मानो उसके पैरों तले जमीन खिसक गई .…

शुभांगी व्हीलचेयर पर और उसके माता पिता उसके 

साथ ....मन ही मन प्रशान्त सोचने लगा ये तो सच है 

पर ..शिवांगी का ये हाल ...थोड़ी देर में लिफ़्ट से 

वे सभी ऊपर आ गए ..

पड़ोसी होने के नाते प्रशांत ने शुभांगी के पिता को

हेलो कहा क्योंकि वह अभी अपने बारे में कुछ 

 नहीं बताना चाहता था,...तब शुभांगी के पिता ही 

बोले ..हम आज ही आए हैं दिल्ली से बम्बई आए हैं...

ये व्हीलचेयर ...में मेरी बेटी..शुभांगी ...

 जब ये पढ़ रही थी दिल्ली......

में वहाँ कॉलेज में ऐसी गिरी की इसकी याददाश्त अब तक नहीं लौटी ..फिर एक ब्रेन सर्जरी भी हुई उसके  बाद तो इसके पैरों ने भी काम करना बंद कर दिया  ..अब भगवान ही मालिक है किसी ने पूना के अस्पताल में बताया है कोई अच्छा सर्जन अब उसे दिखाते हैं व्हीलचेयर में बैठी शुभांगी अब भी वैसी ही मासूम जैसे  वह कॉलेज में नज़र आती थी...प्रशांत सोचने लगा एक वह भी मानसून की बारिश थी .....एक आज भी मानसून की बारिश है ......परिस्थितियों के बदलने से ..सोच में भी कितना बदलाव आ जाता है !!

"ओके अंकल अगर आप लोगों को कुछ भी चाहिए तो मैं आपके पड़ोस में ही हूँ " कहकर प्रशांत अपने कमरे में आ गया ...मन ही मन कुछ सोचा और सुधा को फोन लगाया 

"सुधा कब आओगी, जल्दी आ जाओ तुमसे बात करनी है।"।"प्रशान्त अरे कल तो आ रही हूँ मजनू साहब एक रात की बात है "

अब प्रशांत ने ठान लिया कि शुभांगी के बारे में वह सुधा को सब बता देगा साथ ही सोचने लगा कि काश शुभांगी ठीक हो जाए तो इस उम्र में उसके माता-पिता को दर दर न भटकना पड़े।


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