अमर जवान अर्जुन !!
अमर जवान अर्जुन !!


"नन्हा मुन्ना राही हूँ देश का सिपाही हूँ
बोलो मेरे संग जय हिंद जय हिंद !!! "
गीत की पंक्तियाँ छोटे से अर्जुन को याद करवा रही थी
मालती । अर्जुन जो अभी दस साल का ही तो था पर पता
नहीं क्यों उस दिन के फैंसी ड्रेस के प्रोग्राम के बाद उस फौजी
कपड़ों से और उस गीत से उसे इतना स्नेह हो गया था कि
बार बार वह ज़िद करता माँ मुझे वही ड्रेस पहननी है ।
मालती भी बालहठ के कारण उसका कहना मान लेती थी
क्योंकि अर्जुन नहीं तो पापा (महेश ) और दादा दादी को
माँ की शिकायत करता ।
वक़्त का पहिया चलता गया और अर्जुन अब आठ साल बाद
अपने अवचेतन मन के भीतर बैठे हुए छोटे सिपाही को
एक बड़े सिपाही का रूप देना चाहता था सो उसने
एनडीए की परीक्षा भी उत्तीर्ण कर ली जबकि दादा दादी
ने इतना मना किया था मालती और महेश को
"अरे इकलौता बेटा है इसे क्यों फ़ौजी बनना है !!
भगवान की दया से इतना बड़ा कारोबार है वह
काफ़ी है और ये फ़ौज की ड्यूटी !!
मालती भी मन ही मन नहीं चाहती थी कि अर्जुन
फ़ौजी न बने क्योंकि उसके पिता भी फ़ौज में थे
कभी कहीं कहीं देश के किस किस कोने में न गए थे
और सारा घर का जिम्मा माँ के कंधों पर आ जाता था
यही नहीं जब उसके पिता जोशीमठ में तैनात थे तब
वहाँ की बर्फ़ ने वहाँ के अत्यधिक ठंड के मौसम ने
उन्हें इतना बीमार कर दिया कि उन्हें जल्दी ही
स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेनी पड़ी । मालती नहीं
चाहती थी कि कुछ ऐसा ही बेटे के साथ भी हो
पर वह जानती थी कि अर्जुन जो ठान लेता है
वह करके ही छोड़ता है ...सो महेश और मालती
ने भी इकलौते बेटे के सपनों को पंख देने के लिए
अपने भीतर के डर और आशंका के भाव को
तिलांजलि दे दी अब अर्जुन अपनी ट्रेनिंग के लिए
पुने चला गया इसके बाद तीन साल की कड़ी ट्रेनिंग
के बाद एक साल की अतिरिक्त ट्रेनिंग देहरादून
से हुई और फिर उसमें भी सफल होने पर
अब अर्जुन को लेफ्टिनेंट का पद मिला इस पद
मिलने एक भव्य सामारोह हुआ जिसमें सभी एनडीए
में कमीशन प्राप्त करने वाले जवानों के माता पिता
को बुलाया गया मालती और महेश भी शामिल हुए
और युवा सिपाही की वर्दी पर चमकते सितारे देख
बहुत खुश हुए अर्जुन भी बहुत खुश था ...क्योंकि
उसका बचपन का सपना साकार जो हुआ
उसके जेहन में वही गीत चल रहा था " देश का
सिपाही हूँ ..बोलो मेरे संग जय हिंद "
अब अर्जुन का तबादला तीन वर्ष के लिए कश्मीर
बार्डर पर हो गया और उसे एक और हाई रैंक
कैप्टन का मिल गया ...बस यहाँ से उसे घर आने की
छुट्टियाँ बहुत कम मिलती थी ...कश्मीर में आए दिन
घुसपैठ चलती ही रहती थी ..इसलिए हमेशा
चौकन्ना रहना पड़ता था ..अक्सर उसके साथ के
जो दूसरे अफ़सर थे वे भी देश भक्ति के जज़्बे से
ही फ़ौज में भरती हुए थे ..उनके साथ रहना ड्यूटी
करना ..बंदूक चलाना गोली बारूद सभी अब उनके
रोज़ की दिनचर्या हो गई थी ..
एक दिन मुख्यालय से सूचना आई कि एक जीप
उसी चौकी से आगे जाने वाली है जिसमें चार आतंकवादी
बार्डर पार करते हुए चोरी से पाकिस्तान की ओर जाने वाले
हैं और वे पूरी तैयारी से भारतीय सीमा पर बड़ा धमाका
कर सकते हैं इस चौकी की सारी जिम्मेदारी
कैप्टन अर्जुन और उनके साथ तीस सैनिकों की थी
सबको कैप्टन अर्जुन ने सूचना दी और बताया कि
अब किसी भी तरह
से ये धमाका नहीं होना चाहिए
क्योंकि साथ ही एक गाँव भी सीमा से सटा हुआ
है भारत का उसे भी हानि न पहुंचे आनन फानन में
गाँव वालों को भी सन्देश पहुंचाया गया और एक
घण्टे बाद ही एक बड़ी जीप जिसके शीशे काले थे
वह भी चौकी की ओर बढ़ने लगी कन्ट्रोल रूम
से भी सूचना मिल गई कि यही वह जीप है
अतः कैप्टन अर्जुन ने मोर्चा संभाला उसने चौकी से पहले
ही जीप रोक ली और टीम के साथ उनकी घेराबंदी
कर ली ..पर आतंकवादी ठहरे जो किसी भी हालत
में नुकसान करना चाहते थे उन्होंने फायरिंग शुरू
कर दी तब कैप्टन अर्जुन को लगा कि हमारे
तीस जवान ज्यादा कीमती हैं अगर एक आगे जाकर
इन्हें रोक ले तो चौकी भी बच जाएगी और उसने
सभी तीस सैनिकों को कहा कि पहले वह जीप की
ओर बढ़ेगा...उनसे भिड़ेगा ..फिर बाद में वे आगे आएंगे
एक साथ सभी आगे नहीं बढ़ेंगे ...टीम ने भी
वही किया और कैप्टन अर्जुन हाथ में दो बारूद के
गोले लेकर सीधे आतंकवादियों की ओर बिना
डर के आगे बढ़ता गया । वे भी देख रहे थे कि
ये ऐसा क्यों कर रहा है उनका मनोबल टूटने लगा
और अर्जुन ने जैसे ही हथगोला दगा एक आतंकवादी
ने। अर्जुन पर भी एक गोला फेंक दिया यहाँ आतंकवादियों
के परखच्चे उड़ गए और ..वहाँ अर्जुन भी बुरी तरह
घायल हो गया ...उसके साथ के दो अफसरों ने जैसे
ही गोला दगा गया ..मुस्तैदी से अर्जुन को पीछे कर दिया
पर फिर भी उसकी हालत बुरी थी ..उन्होंने कहा
अर्जुन हमने एम्बुलेंस बुलाई है यार अभी आने वाली
होगी ! तुमने जो आज इतना बड़ा मोर्चा संभाला
चारों आतंकवादियों को मार गिराया तुम्हें सैल्यूट
....अर्जुन लहूलुहान था फिर भी उसने बड़ी मुश्किल
से जख्मी हाथ उठाकर कहा :" जयहिंद "
मानो आज उसके भीतर का सिपाही सचमुच देश
की सेवा करते करते शहीद हो गया ..और
अर्जुन ने आँख मूंद ली ...उसकी सांसे चलना बंद
हो गई !
अर्जुन के घर सन्देश पहुंचाया गया कि अर्जुन
घुसपैठ करते हुए आतंकवादियों को मार गिराते हुए
देश के लिए शहीद हो गए तो घर में मानो
मातम छा गया ...मालती की आँखों में से झरझर
आँसुओं की धारा दादा दादी ने तो मानो
अपने दिल पर पत्थर ही रख दिया और पिता महेश
ने सबको संभाला क्या करते क्योंकि जब से
अर्जुन कश्मीर में गया था..तबसे ही उन्हें आशंका
रहती थी कि कहीं ...पर वे भी सोचते कि अगर
सभी परिवार अपने लड़कों को फौज में भेजना
छोड़ दें तो मातृभूमि की सीमाओं की सुरक्षा
कौन करेगा !!!
अगले ही दिन पूरे सम्मान के साथ कैप्टन अर्जुन
की अंत्येष्टि क्रिया हुई सारा नगर सारे लोग मानो
शहीद अर्जुन के लिए नारा लगा रहे थे " कैप्टन
अर्जुन अमर रहे ! अमर रहे अमर रहे !!!
महेश ने जाते हुए बेटे को जयहिंद का सैल्यूट
किया लोगों की आँखों में आंसुओं की धारा
उमड़ रही थी ..माँ मालती अपने दिल को
समझा ही नहीं पा रही थी ...उनके जेहन में
मानो छोटा अर्जुन वर्दी पहने हुए गा रहा थ
"देश का सिपाही हूँ बोलो मेरे संग जय हिंद !!!
अब हर छब्बीस जनवरी को मालती और
महेश अमर जवान ज्योति को देखने दिल्ली
में जाते हैं और अपने बेटे को याद करते हैं और
सोचते हैं कि जवान कभी मरते नहीं हैं वे तो
हमेशा दिलों में यादों में अमर रहते हैं !!!
जय जवान !
जय हिंद !!!