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Kusum Lakhera

Tragedy Others

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Kusum Lakhera

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अन्नदाता पछताता क्यों है ?

अन्नदाता पछताता क्यों है ?

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यूँ तो किसान अन्नदाता कहलाता है पर भाग्य न देता ...साथ उसका वह सदैव ही पछताता है ....आखिर क्यों !


मदनु के पास दो बीघे जमीन पर खेत फैले हुए थे इस बार मक्का तो अच्छी लहरा रही है उसे लहराती हुई फसल देखकर ऐसी खुशी होती थी मानो वह फसल न होकर उसकी माँ हो वह जब भी खेत में आता तब और जब खेत से जाता तब ..दो बार अपने दोनों हाथ जोड़कर मन ही मन धन्यवाद करता था साष्टांग प्रणाम करता कि, हे मेरी धरतीं तू सोना उगले वह खुश भी था क्योंकि कमली को घर में लड़के वाले देखने आने थे शाम को सो उसकी पत्नी भतेरी ने उससे कहा दिया था, आज न अबेर करना तुमऊ ... अरे घर में कमली के ससुराल वाले मोड़े(लड़के) संग आ रन हैं थोड़ी तुम्हारी भी तो कोई जिम्मेदारी बनती है कि नहीं.....वह सब कुछ सोचता हुआ जा रहा था मन ही मन सोच रहा था इस बार कमली का ब्याह तय हो जाए तो चार चुड़ी सोने की बनवा लूंगा दो कमली के लिए दो भतेरी के लिए ....बेचारी भतेरी जब से मुझ संग ब्याही तब से सुख न पाया उसने जब आई थी हमाई दुल्हन बन के तब उसके हाथों में दो चुड़ी थी वो भी सोने की, पर ससुर अगले साल सूखा पड़ा सब सत्यानाश हो गया जबहि झट से ले आई चूड़ी और बोली मदनु ,"तुमही हमार श्रृंगार हो , तुमही इन चूडियन को बेच के साहूकार से उधार ले आऊ बाद में बन जाएँ चुड़ी

ये सोचते सोचते खेत खलिहान पार करते करते वह 


घर भी पहुँच गया मदनु  भतेरी," आ गए कमली के पापा ये लो पानी म

ुहँ, हाथ धोइ लो फिर वो नया कुरता पहिन लो"

मदनु," जे बात आज भतेरी तुमही ग़जब ढा रही" भतेरी ,"तुम्हाउ अब भी मजाक सूझत है "

मदनु," कोई न कहेगा कमली की अम्मा तुमहू बिल्कुल बड़ी बहन दिखत हो"

भतेरी ," जल्दी जल्दी तैयार हो जाओ कबहहि वे सब आ जाएं, कमली कमली तू तैयार हुई न मोड़ी....

कमली," हाँ माँ नया सूट पहन लिया ठीक है न "

भतेरी ," वाहः आज तो हमाई बिटिया भौत सुंदर लगरी 

मदनु," काला टीका लगा दे , कुछ झुमके भी पहनाई दे इसे ...कान खाली लग रहे....


भतेरी " कमली पहन लें बेटे वे झुमके .... मैंने निकाल रखे

कमली, "अच्छा माँ ! माँ सोने की चुड़ी न हैं अगर हैं तो दे दे कलाई खाली न अच्छी लग रही "

सबकी बातचीत  चल रही होती है तभी अंधड़ तूफान और ओलों की बरसात होने लगती है

भतेरी :कमली अंदर चल ....

मदनु," है परमेसर ये क्या !

मेरा मक्का!

मेरा मक्का! ..….

भरपाई," दिल छोटा न करो कमली के बापू 

मदनु," मैं लूट गया भतेरी , मेरी मक्का जो 

लहलहा रही थी वह ओलों से ख़राब हो गई होगी ..कहां मन में सोच रहा था फसल अच्छी होगी तो चुड़ी बनवाऊंगा अब अब क्या होगा. ..

भतेरी " मदनु कमली की शादी तो करनी है न अभी मेरे झुमके हैं , मांगटीका है सब कमली के लिए"

मदनु ,"पर तुम्हारी कलाई , तुम्हारे कान सब सूने .....

भतेरी "जब तक तुमहु हो तुम मेरे असली सिंगार 

मदनु ," तुम मेरी पत्नी ही नहीं देवी हो देवी हो "



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