कान्हा
कान्हा


जिन्दगी भी पहेली सी है किसी को तो सुख के अम्बार ..…देती है और किसी को दुःख के अभिशाप... रामी का दुख बहुत बड़ा था उसकी आँखों का तारा... उसका बेटा
कान्हा ....उसके सामने मौत की गोद में जा चुका था....रामी की गोद सूनी हो गई .......आँखों से झरते आंसूभी मानो सूखने लगे और वह सूजी हुई आँखों से एकटक अपनो आँख के तारे को देख रही थी ......आसपास...... पड़ोस के लोग इकट्ठे थे सबकी आँखों में आंसुओं का सागर लहरा रहा था आखिर क्यों ?
रामी को किस पाप की सजा मिली जबकि वह तो सबकी मदद करती है सन्तान का ..माता पिता से पहले चले जाना वह पीड़ा हैजिसका बखान कोई नहीं कर सकता ...दुःख का पहाड़ जब आम आदमी पर टूटता है तो वह बिखर जाता है वह अपना संतुलन खो बैठता है क्योंकि साधारण व्यक्ति कोई सन्त नहीं कि उसने अपने ज्ञान की चरम सीमा पर जाकर सुख या दुख में सम्भाव का अनुभव करता है !रामी को कान्हा से अलग किया गया फिर रामी के देवर
ने सारी अंतिम क्रियाएँ की और अठारह वर्ष का कान्हा चार कंधो पर उस लोक चला गया.... जहां से कोई ... नहीं आता ! रामी के पति राघव भी सोलह साल पहले इसी तरह संसार को छोड़ गए थे.......तब कान्हा छोटा सा था.. उसके जीवन की आशा सा ...कहते हैं ...ये आशा की किरण , उम्मीद का एक छोटा सा तिनका भी बहुत होता है आदमी के लिए पर आज वह जीवन के इस मोड़ पर अकेली रह गई.... पास पड़ोस की स्त्रियाँ भी धीरे धीरे अपने अपने घर जाने लगी .......
आपस में बात कर रही थी वह, " बहुत बुरा हुआ ,जवान लड़का खत्म हुआ "
"भगवान की लीला भी ग़जब है अरे मोटरसाइकिल में आ रहा था घर की ओर और बारिश में मोटरसाइकिलफिसल गई और वह सीधे नाले में जा गिरा "
"रात बारिश भी बहुत ज्यादा हुई, कान्हा को क्या मालूम की आज की बारिश उसके लिए काल बन
के आई है"
"वो तो पुलिस की गाड़ी पीछे पीछे आ रही थी बहन उन्हो
ंने देखा कि नाले के पास मोटरसाइकिल गिरीहुई है , फिर उन्होंने गोताखोर बुलाए, जो नाले मेंउतरे, कान्हा को निकाला , उसकी नब्ज़ टटोलीपर तब तक उसके प्राण पखेरू उड़ चुके थे....
"सच बहन बहुत ही बुरा हुआ ....एक होनहार बच्चाथा पता नहीं किस की नजर लगी"
अब घर में रामी के देवर देवरानी ही थे ..वे भी क्या कहते ..जब दुख की गागर से दुःख ही छलकने लगे तो दूसरे शब्द मात्र औपचारिक लगते हैं देवरानी
को न जाने क्या सुझा उसने देवर के कान में कुछ फुसफुसाया देवर ने कहा, " ठीक है " औरतभी रामी की देवरानी कहीं चली गई ..रामी सोचने
लगी ...किस को क्या कहूँ मेरे भाग का दुःख है तो सहन भी मुझ को ही करना होगा ..अब तो ईश्वर से भी शिकायत करने का जी नहीं करता..ऐसा लग रहा
था कि रामी के दुख को देखकर दुख भी आसपास बिलख बिलख कर रो रहा था....
"भाभी अब कुछ खा भी लो कल से तुमने कुछ भी नहीं खाया " देवर बोला ।
" भैय्या अब तुम भी जाओ अपने बच्चों को सम्भालो लल्ला"रामी बोली ।
तभी रामी की देवरानी अपने आठ साल के छोटे बेटे को लाती है और कहती है," दीदी तुम्हारा कान्हा कहीं नहीं गया ..ये है तुम्हारा कान्हा ,अब इसको सम्भालो"
रामी," पागल हो गई क्या , अपने राजदुलारे को मुझे दे रही हो"
देवरानी," नहीं दीदी आज मुझे दर्द बॉटने दो, तुमने कान्हा के चाचा को अपने बेटे जैसा प्यार दिया ...मुझेछोटी बहन... जैसा ही माना आज मेरी बात .…मानो वैसे भी पास पड़ोस में ही तो हैं मेरे पास दो बच्चे और भी हैं अब ये तुम्हारी आँखों का तारा है अब रखो इसको अपने पास वैसे भी मुझसे तीन बच्चे
न संभलते"
रामी अपनी बाहों को फैलाते हुए," आजा मेरे कान्हा,मेरी आँखों का तारा आजा" बच्चा रामी के गले लग जाता है और रामी को लगता है उसे जीने का एक
मौका जिन्दगी ने दे दिया सबकी आंखों में आंसु थे पर अब उनमें खुशी भी समाई थी