वीरा की दादी !!
वीरा की दादी !!


वीरा वीरा !...….... कहाँ है तू ? ! ....जब देखो
अपने पढ़ने के कमरे में बंद !....…....अरे कैसे बच्चे हैं
आजकल बस ये इनका मोबाइल और ये ...यही इनकी
दुनिया .....कुछ नहीं पता इन्हें कि पड़ोस में क्या हो
रहा है ? ...आसमान कैसा है ...धूप निकल रही है या नहीं...
जब देखो मोबाइल पर मंत्र जापते हुए !!
"ओह दादी माँ .....आ रही हूँ ! ...तुम नाश्ता कर लो
मैं बाद में खा लूंगी !
वीरा अभी इक्कीस साल की लड़कीं थी ....वह अपनी
दादी (प्रेमा )के घर रामनगर आई हुई थी ..अपनी छुट्टियों को
बिताने के लिए ... उसकी दादी रामनगर में बड़े से
पुशतैनी मकान में अकेले ही रह रही थी क्योंकि
वीरा के पिता दिल्ली में सरकारी महकमें में थे
और उसके चाचा देहरादून में एक विश्विद्यालय के
प्रोफेसर पद पर कार्यरत थे । दोनों बेटों ने ही माँ
को अपने संग रखने की जिद की पर माँ ने साफ
मना कर दिया कि उसकी जड़े उस मकान से जुड़ी
हैं जहाँ बुजुर्गों के आशीर्वाद से उसके बच्चों ने
पढाई की और उस घर को कैसे छोड़ दे .....वैसे
80 वर्षीय दादी को देखकर वीरा को भी अचरज होता
था ..दादी इस उम्र में भी स्वयं का और आसपास के लोगों
का भी ध्यान रखती थी । उनके घरेलू नुस्खों के कारण
आसपास के लोग दादी से पूछने आते थे कि दादी
जुकाम खाँसी के काढ़े में कौन सी चीजें डालनी हैं
वह पूरी तरह से उन चीज़ों का अनुपात बता देती थी
क्योंकि दादी के पिता यानि उसके परनानाजी एक
अच्छे आयुर्वेदिक वैद्य थे जड़ी बूटियों की जानकारी
उन्हें थी बचपन से आसपास के क्षेत्रों से पेड़ पौधों की
उनके फायदे नुकसान को प्रेमा( दादी ) जानती थी इसलिए
आसपास के गली मोहल्ले के लोग भी दादी का बहुत
मान करते थे ! ....पिछले साल पड़ोस के एक घर
में न जाने कैसे बरसात में एक जहरीला साँप आ गया
और उसने उस घर के मालिक को डस लिया ...उस
समय ..रात को दो बज रहे होंगे ..आसपास वैद्य का
और झाड़ फूंक वाले के लिए लोग दौड़ाए गए ...पर
वैद्य जी कहीं गए हुए थे और झाड़ फूंक वाला भी
न मिला ....तब दादी ...को पता चला ..दौड़ पड़ी ...
अपने झोले के पिटारे को लेकर ....और जल्दी से
..उस स्थान को तेज पट्टी से बांध कर ...एक जड़ी को
पीस के लगा दिया ..थोड़ी देर में वहाँ वैद्य जी भी
पहुँच गए.....जब उन्होंने उस पीड़ित को देखा और
जड़ी का लेप देखा तो कहा , " ये जड़ी का लेप
किसने लगाया !"
दादी ने डरते हुए कहा " बैद्यजी मैंने "
वैद्यजी तो दादी के उसी दिन से बड़े प्रश
ंसक बन
गए उन्होंने कहा -" माजी आज से मैं आपका शिष्य !
आपने तो चमत्कार कर दिया ! किससे सीखा आपने
तब दादीजी ने परनाना का नाम बताया तो वैद्यजी
झट से समझ गए कि दादी आम साधारण सी दिखती
हैं पर बहुत गुणी हैं !
वह व्यक्ति आधे घन्टे में उठ बैठा ..उसके शरीर में
अब लेशमात्र का भी जहर न था ..सारा पड़ोस
सारा मोहल्ला दादी का प्रशंसक बन गया और जो
जिस व्यक्ति को दादी ने बचाया वह दादी का उसी दिन
से धर्म बेटा बन गया क्योंकि दादी वक़्त पर ..जड़ी
न लगाती तो उसकी जान भी जा सकती थी ।
एक बार वीरा के पिता और चाचा ने कहा भी था
दादी को कि कभी दिल्ली रहो , कभी देहरादून यहाँ
रामनगर में अकेले अकेले क्या करोगी माँ !
तब दादी ने एकटक जवाब दे दिया , " बेटा पुरखों
की ज़मीन छोड़ के नहीं जाऊंगी ...जब तक जीती
हूँ ...आसपास के लोगों के साथ हिलमिलकर ..
रह लूंगी .…तुम चिंता न करो ...क्योंकि अभी
यहाँ गाँव के सरल लोग है ...वह मेरे साथ उठते हैं
..बैठते हैं ....हँसते मुस्कुराते हैं .….मैं अकेली
कहाँ .. !
इसलिए छुट्टी पड़ने पर वीरा यहाँ दादी के घर आई हुई
थी । वीरा ने पाया दादी यहाँ के खुले खुले घर में
अपनी जिंदगी बहुत बढ़िया तरीके से जी रही है ।
वह देखती दादी सुबह बहुत जल्दी नींद से उठ जाती थी
फिर अपने खेतों में जो जड़ी बूटी लगाई थी उन्हें
तोड़ने चली जाती थी फिर अपनी दिनचर्या ..आसपास
के लोग भी सुबह के समय और शाम के समय
उनके आँगन में बैठते थे तब सारी ख़बर बिना
मोबाइल के ही पता चल जाती थी ...किसी की
तबीयत खराब है.…किसी के घर शादी ब्याह का
कार्यक्रम है ...किसी के यहाँ कोई समस्या है सबका
समाधान भी सब मिलकर कर लेते थे । वीरा मन
ही मन दादी की फैन बन गई और उसने अपने
मन में सोचा कि जैसे दादी का बुढ़ापा वैसे ही
बुढापा हो तो कितना अच्छा हो क्योंकि दादी
इस बुढ़ापे में भी व्यस्त थी । वह लोगों के साथ उनके
सुख दुख भी बाँटती थी और कभी भी अपने बेटे
बहुओं की शिक़ायत का रोना किसी के साथ नहीं
रोती थीं। उनका मानना था कि जीवन नदिया की
तरह बहना है ....कहीं रुकना नहीं है ..और
रुकने का मतलब है मौत ..और कर्म करते हुए
मृत्यु आ जाए तो वह बहुत बढ़िया ...
वीरा को अपनी दादी उनके जीने का अंदाज ...
उनकी सोच बहुत अच्छी लगती थी ..अभी भी
उनके साथ नाश्ता करते हुए वीरा सोचती है
दादी आप मेरी आदर्श हो ...और वीरा झट से
दादी के हाथों को अपने हाथ में लेकर कहती है
दादी आप बहुत ग्रेट हो !