Pawanesh Thakurathi

Abstract

4.6  

Pawanesh Thakurathi

Abstract

वह अनमोल किताब

वह अनमोल किताब

3 mins
339


मैं पिथौरागढ़ गांधी चौक की भीड़ के बीच से गुजरता हुआ राजदीप पुस्तक भंडार पर जा पहुंचा। वहाँ मैंने दुकानदार से एक किताब के विषय में पूछा। दुकानदार ने कहा कि वह किताब उसकी दुकान में उपलब्ध नहीं है। मैंने शहर की अन्य दुकानों में भी उस किताब की तलाश की, लेकिन वह किताब मुझे कहीं नहीं मिली। वह किताब मुझे नहीं मिली, लेकिन उस किताब के लेखक द्वारा लिखी हुई अन्य किताबें मुझे मिलीं और मैंने वो खरीद लीं। इसके बावजूद जब भी मैं किसी किताब की दुकान से गुजरता हूँ, मेरी नजरें उस किताब को जरूर तलाशती हैं। 


      इंटरमीडिएट की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद मैं अत्यंत निराश और दु:खी-सा रहने लगा था। मेरी निराशा और दु:ख का कारण आर्थिक दबाव और पारिवारिक समस्याएँ थीं। यद्यपि मैं अभी युवावस्था की ओर अग्रसर ही था, तथापि निम्नवर्गीय परिवार से संबद्ध होने के कारण मैं स्वयं पर आर्थिक दबाव महसूस करने लगा था। इसके अलावा परिवार का कलहपूर्ण वातावरण भी मेरे चिंताग्रस्त रहने का कारण था। इसे विडंबना ही कहेंगे कि इंटर की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद निर्धन पृष्ठभूमि के पर्वतीय युवाओं को पढ़ाई की उतनी चिंता नहीं होती, जितनी आजीविका की। और चिंता होना भी स्वाभाविक ही है क्योंकि कहा भी गया है, भूखे पेट तो भजन भी नहीं होते।


      चिंताग्रस्त और दु:खी रहने के बावजूद मैंने शहर आकर डिग्री कालेज में अपना एडमिशन लिया और बी.ए. की पढ़ाई करने लगा। चिंता और मायूसी अब भी मेरे दामन से बंधी हुई थीं। इसी दौरान मैं एक दोस्त के बुलावे पर उसके कमरे में गया। चाय पीने के बाद हम दोनों की सामान्य बातचीत चल ही रही थी कि मेरी नजर टेबल पर रखी हुई एक किताब पर पड़ी। मैंने वह उठा ली। शीर्षक था- "हंसते-हंसते जीना सीखो।" किताब का शीर्षक मेरे ह्रदय को छू गया। मैंने किताब के पन्ने पलटे। किताब में प्रेरक निबंध संगृहीत थे। मैं किताब पढ़ने लगा।


     मुझे किताब पढ़ते देखकर मित्र ने कहा- "आज रात्रि विश्राम यहीं है तुम्हारा। बाद में पढ़ लेना।" मैंने किताब रख दी। रात को मैंने पूरी किताब पढ़ डाली। शीर्षक निबंध तो मैंने कई बार पढ़ा। मैंने महसूस किया कि अगली सुबह मेरे लिए एक नई सुबह थी। मेरे मन से निराशा लुप्त हो चुकी थी और चेहरे पर मायूसी की जगह उमंग थी। किताब में लिखे निबंधों का मुझ पर गहरा प्रभाव पड़ा था। किताब के लेखक ओरिसन स्वेट मार्डेन ने अपने निबंधों में उदाहरण देकर, तर्कों से सिद्ध किया था कि हंसते-मुस्कुराते हुए जीवन जीने पर हम कठिन-से-कठिन परिस्थितियों में भी विजय प्राप्त कर सकते हैं। 


      निश्चित रूप से एक किताब ने एक निराश, दु:खी, चिंताग्रस्त और मायूस युवक को एक आशावादी और हंसमुख युवक में तब्दील कर दिया था। 'हंसते-हंसते जीना सीखो' शीर्षक की वह किताब एक मुरझाये हुए फूल के लिए सावन की रिमझिम फुहार साबित हुई थी। 


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Abstract