वचन (दूसरा भाग )....
वचन (दूसरा भाग )....
बिकाश अपने घर पहुँचकर हाथ मुँह धोकर रात के खाना खाए और अपने कमरे को चले गये। बिकाश के दिमाग़ में वही एक बात "वचन "अभी तक घूम रहा है। वो सोचते रहे की ये कैसा वचन जिसके वजह से अरुण जी जैसे एक अच्छे इन्सान को अपनी जान गवाना पड़ा? ये कैसा वचन है की जिसके लिए आशीष का चोरी पकड़े जाने के बाद भी सुचित्रा देवी चुप है और अपनी बेटा अशोक को बेकसूर जानते हुए घर से बेघर कर दिए? ये कैसे वचन है जिसके लिए अशोक ने आशीष का दोष को खुद के ऊपर ले लिया और चुप चाप घर से निकल गया? आशीष और अशोक को बिकाश ने बचपन से अपनी गोदी में खिलाये है। वो दोनों को बहुत अच्छी तरह जानते है। आशीष कभी गलत काम कर नहीं सकता। पर वो क्यूँ एक बार नहीं दो दो बार बार पैसे को उठाया? उसके पीछे कुछ ना कुछ कारण जरूर होगा। उनको वो कारण ढूंढ़ने होगा। वो इतना हँसते खिलते परिवार को बिखरने देख नहीं सकते। बिकाश शुरू से अरुण के साथ जुड़े हुए है। औरंगाबाद जी जब जिन्दा थे कई बार उन्होंने बिकाश के परिवार के मदद किए। उनकी वजह से आज बिकाश के एक लौती बेटी आशा आज डाक्टरी पढ़ रही है। सुचित्रा देवी भी बिकाश को अपने परिवार के सदस्य जैसे मान सम्मान देते है। आज भी अशोक घर से दूर होकर सिर्फ उनके साथ बात करता है। सबके बारे में पूछता रहता है। ये सब सोच सोच कर बिकाश परेशान हों रहे थे। वो घड़ी को देखे, रात की 12 बज चूका था। वो उठकर गये एक गिलास पानी पीये और आकर बिस्तर पर सोने की कोशिश किए। उनकी पत्नी निशा आकर सो चुकी थी। अब वो सोने की कोशिश किए आँख बन्द करके।
अगली दिन बिकाश दुकान थोड़ा जल्दी पहुँच गये। आशीष आ चुका था। और कोई नहीं आये हुए थे। बिकाश सोचे की आशीष से थोड़ा घुमा के पुछेंगे असल में क्या बात है, जो उसे मजबूर किया वैसा काम करने को? वो सोच रहे थे की आशीष पास आकर पूछा, "चाचा जी क्या बात है, आज आप बहुत जल्दी आ गए? अब क्या सोच रहे है? कोई परेशानी है?" तब बिकाश बोले, "नहीं आशीष बाबू ऐसी कोई बात नहीं, पर मुझे जब से अशोक बाबू यहाँ से गए कुछ अच्छा लगता नहीं। वो बिचारे निर्दोष थे, आप भी जानते है, पर चुप चाप चले गये । आज भी वो आप सबको बहुत प्यार करते है। वो अभी भी आपके बारे सोचते रहते है। मुझे आश्चर्य लग रहा है की आप दोनों भाइयों में इतना प्यार है और आप उनके लिए कुछ भी नहीं किए। अभी तक मैं इसके बारे में भाभी जी (सुचित्रा देवी )को ये सब बोला नहीं। मुझे ताज्जुब लगता है की आप अपने पिता जी (अरुण जी ), अपने छोटा भाई अशोक जी को खोकर क्या पाए? हाँ मैं आपके यहाँ नौकरी करता हूँ , मुझे ये सब नहीं बोलना चाहिए। पर मैं आप दोनों को मेरी गोदी में खिलाया हूँ। आप सबको में अपना मानता हूँ। ये सब बात मुझे कल से बहुत परेशान कर रहा है।" ये सुनकर आशीष थोड़ा उदास होकर आगे निकल गया, तब देखा उसका साला सरोज वहाँ आ गया। उसे देख आशीष थोड़ा परेशान होने लगा। ये सब बिकाश देख रहे थे। उनको भी सरोज के बारे में सब कुछ मालूम है। वो उनकी बेटी आशा के साथ कालेज में पढ़ता था।
सरोज को एक कोने में लेकर आशीष पूछने लगा, "यहाँ क्यूँ आये? अब फिर तुम क्या किए? तुम तुरन्त यहाँ से जाओ। जो कुछ बोलना है घर आकर अकेले में बोलना। "तब आशीष बहुत गुस्से में था और परेशान हो रहा था। आशीष को ऐसे कहते हुए सुनकर सरोज ने हँसकर बोला, "अरे जीजू, क्या मैं आपकी दुकान आ नहीं सकता? और आप ऐसे क्यूँ परेशान हों रहे है? मैं तो यहाँ से जा रहा था, सोचा मिलकर आपको धन्यवाद बोल दूँ की आपके वजह से मैं और माँ दोनों बच गये। ठीक है अब मैं चलता हूँ, घर आकर बात करूँगा। "ये बोलकर सरोज वहाँ से निकल गया। पर उसका धन्यवाद वाली बात वो थोड़ा जोर से बोला था जो की बिकाश को सुनाई दिए। तब आशीष बहुत दुःखी होकर बिकाश की ओर देख रहा था। आशीष को इतने परेशानी में देखकर बिकाश को दया आ रहा था और दुःख भी हो रहा था। उस समय सुचित्रा दुकान में आ गईं। थोड़ी देर बाद बाकि के कर्मचारी भी आ गये। ग्राहक आने लगे। सब लोग अपने अपने काम पे लग गये।
दोपहर के समय जब थोड़ा भीड़ भाड़ कम हुआ, सुचित्रा ने आशीष और बिकाश को अपने पास बुलाए। दोनों को बिठा कर थोड़ा खरीददारी और बिक्री के बारे में बोलने के बाद सुचित्रा बोले,"बिकाश जी आज से सारे लेन देन का बारे में मुझे बिना पूछे कुछ निर्णय आप दोनों नहीं लेंगे। मुझे हर हफ़्ते आकउंट की जानकारी आप देंगे। बस अब आप जाइए अपना भोजन कीजिये और हम दोनों भी कर लेंगे।" बिकाश हाँ बोलकर वहाँ से निकल गये और देखे की आशीष थोड़ा मायूस हो गया था।
बिकाश खाना खाते खाते मन ही मन थोड़ा ख़ुश हो रहे थे ये सोचकर की अब आशीष अपनी मनमानी नहीं कर पायेगा। और वो सोच रहे थे सरोज का आशीष को वो धन्यवाद वाले बात क्यूँ कहा? शायद आशीष को सरोज ने फँसाया होगा या उसके लिए आशीष ये गलतियाँ किया। हो सकता है आशीष ने उसे कुछ वचन दिया होगा और उसके खातिर ये सब किया। पर वो वचन फिर कैसा वचन, जिसके लिए एक परिवार को सिर्फ खोना पड़ता है बहुत कुछ? अब बिकाश सोचे की उनको अपनी वचन जो उन्होंने अरुण जी को दिए थे उसको निभाना होगा। आशीष, अशोक और सुचित्रा भाभी के सारे परेशानी दूर करना पड़ेगा। अब खाना ख़त्म करके सब फिर अपने काम पे लग गये। सुचित्रा बिकाश और आशीष को बोलकर ब्याँक चली गयी और वहाँ से वो घर चले जाएंगी ।
रात के आठ बजे दुकान बन्द हुआ और सब अपने अपने घर चले गये। बिकाश घर जाकर अपने कमरे में चले गये। अन्दर से दरवाजा बन्द करके वो अशोक को फोन किए। अशोक फोन उठाया तो बिकाश बोलने लगे, "बेटा आप कैसे हों। अपना ख्याल रखना। मैं आज इसीलिए फोन कर रहा हूँ की मुझे लगता है की आशीष बाबू उनके साले सरोज को लेकर कुछ परेशान है। आज सरोज हमारे दुकान आये थे और आशीष बाबू को उनको और उनकी माँ को बचाने के लिए धन्यवाद भी दे रहे थे। पर आशीष बाबू ये सुनकर बहुत परेशान थे और दुःखी भी। अगर हो सके तो आप जरा आशीष बाबू से मेरा नाम लिए बगैर जानकारी लीजिए। अब बहुत हो गया अशोक बाबू। कौन क्या पाया मुझे मालूम नहीं मगर आप और आपकी परिवार सिर्फ खोया है। मैं भी खोया हूँ आपके पिताजी को और आपको। आप अब कुछ कीजिए मैं भी आपके पिताजी को दिया हुआ मेरा वचन निभाऊंगा। "अशोक सब कुछ सुनने के बाद बोले, "चाचा जी आप अच्छा किए मुझे बता दिए। मैं कोशिश करूँगा मेरा भाई को हर परेशानी से बचाने के लिए। ये वचन मैं अपनी पिता माता को दिया हूँ। आप भी अपना वचन निभाइए। सब ठीक हो जायेगा। आप परेशान मत होना। "ये बोलकर अशोक फोन रख दिए। बिकाश को लगा जैसे अपनी मन अब बहुत साफ हो गया। अब वो अपना काम करेंगे और अशोक बाबू उनका काम करेंगे अपने अपने वचन को निभाने के खातिर।
