वाइड होराइजन
वाइड होराइजन
बहुत दिनों के बाद उससे मिलना हुआ। वह मेरी स्कूल के दिनों की दोस्त थी... स्कूल के दिनों में उसकी बोलती आँखें हमेशा ही मुझे भाती थी...
नौकरी के सिलसिले में मुझे इस बार इंदौर जाना हुआ और सेमिनार ख़त्म होने पर हम ग्रुप के लोग वहाँ की लोकल मार्केट में गये...
अचानक एक हैंडीक्राफ्ट एंपोरियम में वह दिखी... इतने सालों के बाद हम दोनों ही काफी बदल गयी थी.. लेकिन उसकी उन बोलती आँखों से मैंने उसे पहचान लिया...
मुझे पहचानने में उसको थोड़ी देर लगी... लेकिन पहचानने के बाद वह मुझसे लिपट गयी और कहने लगी, कितनी बदल गयी हो तुम...
मैं एक ऑफिस जानेवाली वर्किंग वुमन जिसके पहनावे में और बॉडी लैंग्वेज में एक अलग तरह का कॉन्फिडेंस झलकता था..... मुझे भी उसे देखकर महसूस हुआ की वाकई में बदल सी गयी हूँ ... क्योंकि वह घरेलू टाइप की एक अमीर महिला लग रही थी..... उसने झट से शाम को अपने घर आने की दावत दी दी.....मेरी कल मॉर्निंग की फ्लाइट थी और आज की पूरी रात थी तो मैंने झट उसके घर जाने के लिए हामी भर दी...
फ़ोन नंबर के साथ मैंने उसका एड्रेस ले लिया और जल्दी ही उसके घर जाने का वादा कर विदा ली। क्योंकि उसके घर से एयरपोर्ट नजदीक था तो गेस्ट हाउस से चेक आउट कर मैं अपना सामान लेकर उसके घर पहुँच गयी... उसके पति बेहद मिलनसार लगे.... बच्चों से मिलना हुआ... खाना हो गया और हम दोनों की फिर बातें शुरू हुयी...उसके पास तो बातों का भंडार था...घर की बातें..... परिवार की बातें...मेरी बातों में वह सारे विषय नहीं थे जो उसके पास थे।मैं ठहरी एक सिंगल वर्किंग वुमन..एक प्रोफ़ेशनल इंजीनियर.. मेरी बातों में ऑफिस और कुछ इस तरह की बातें थी... वह अपने परिवार और बच्चों की बातों के अलावा कोई इतर बात कर ही नही रही थी... शायद उसका परिवार ही उसकी दुनिया थी या उसकी दुनिया ही उसका परिवार था....
और मैं ?
मुझे लगता था कि सारा आसमाँ मेरा ही है....
बीइंग फीमेल इंजीनियर इस मेल डॉमिनेटिंग फील्ड में एफिशिएंसी के साथ काम करती थी....अपने काम को मैं एक अलग लेवल पर हैंडल करती थी। मेरा सर्कल अलग था.... मेरी बातें अलग थी...मेरा सोचने का ढंग अलग था... जबकि हम दोनों एक साथ एक स्कूल में साथ साथ पढ़कर बड़े हुए है....लेकिन आज हम दोनों की पर्सनॅलिटी में जमीन आसमान का अंतर नज़र आ रहा था...
जिंदगी में हम दोनों का अपना अपना आसमाँ था...जहाँ हमारे हिस्से के चाँद तारे थे... और आती जाती उजली सी धूप हम दोनों के ही आँगन में झांक लिया करती थी...
जो भी हो मेरी उस दोस्त के बिज़नेस क्लास फैमिली के होते हुए भी मुझे मेरा वर्किंग होना ज्यादा भा रहा था। क्योंकि मेरा होराइजन मुझे ज्यादा वाइड लग रहा था...
