ऊंचाई
ऊंचाई
शोभित को घर की छत पर टहलता देख आज उसकी पत्नी रुचिता हर्षित हो उससे बोली। सुनो शोभित मुझे आप पर नाज है कि जिस उम्र में लोग दुसरो की नोकरी करना शुरू करते है।
उसी उम्र में आपने खुद की एक कम्पनी खोलकर उसमें कितनो को नोकरी दे दी।और अपनी मेहनत व लगन से कम्पनी को भी कितनी ऊँचाई दे दी।
अपनी पत्नी से आज अनायास ही अपनी इतनी तारीफ सुन, शोभित बस उसकी ओर देखकर मुस्कुराभर दिया।
फिर वो आगे बोली,पर एक शिकायत भी है,कि कंपनी में आखिर आपने अपने भाइयों को इतने महत्वपूर्ण पद क्यो दे रखे है।
कि कम्पनी के किसी भी निर्णय में उनकी राय लेना पड़े।
उसकी बात सुन तब शोभित कुछ गम्भीर स्वर में बोला।रुचिका तुम्हे आकाश में उड़ती हुई वो पतंग दिखाई दे रही हैं ना।
सही मायने में वह बस तभी तक उस आकाश में टिकी हुई है।
जब तक वह एक विश्वासरूपी धागे से बंधी है। और नीचे वह धागा किसी अनुभवी हाथों में है।
