उस रात के अतिथि -- अंतिम भाग
उस रात के अतिथि -- अंतिम भाग
केरोलीन ने कमरे के अंदर आकर कसकर कुंडी चढ़ा दिए। वह अब भी त्रास के कारण थरथर काँप रही थी। पता नहीं फिर किस उद्देश्य से स्टिव का आविर्भाव उसके जीवन में हुआ ? तलाक के बाद वह किसी तरह तिनका तिनका जोड़कर, बड़ी मेहनत से, बरसो बाद अपनी जिन्दगी को पटरी पर ला सकी थी। अब उसे पुनः बिखर जाने न दे सकती थी। उसे याद है कितनी रातें वह भूखी सोई थी।
रहने को भी जगह न थी उसके पास। कितनी ही रातें कड़कती ठंड में उसने वाॅलमार्ट के पीछेवाले पेभमेंट पर बिताई थी। तब तो स्टीव ने कोई खबर नहींं ली उसकी।फिर न जाने आज किस चीज का हिसाब मांगने वह स्टीव फिर से लौट आया है ? उसे लगभग यकीन हो गया था कि स्टीव जान बूझकर उससे मिलने आया है। और वह भी उस समय जब अभिजीत यहाॅ पर नहींं है। वह इतनी सहमी हुई थी कि अपनी भावनाओं पर काबू न रख पा रही थी, और कांपते हाथों से अभिजीत का नंबर लगा बैठी। दूसरी बार काॅल करने पर अभिजीत ने अर्धनींद्रा की अवस्था में फोन उठाकर "हैलो" बोला था। घबराहट के मारे केरोलीन इंडिया का समय चेक करना भूल गई थी।
यह भी भूल गई थी कि सारी रात जगकर माॅ की सेवा करके अभिजीत इस समय थोड़ी देर के लिए सो पाता है। वह अभिजीत को सारी बातें बताने ही वाली थी परंतु कुछ सोचकर चुप रही। अभिजीत स्टीव के बारे में ज्यादा कुछ नहींं जानता था। सिर्फ उसके नाम से और उनके पूर्व - संबंध से वह परिचित था। अपने पूर्व पति की दरींदगी के इतिहास को केरोलीन ने अपने वर्तमान पति से छिपाया था। कहती भी तो क्या। उन चीजों को मन में लाने भर से वह दहशत से भर उठती थी फिर उन्हें जुबान पर लाना उसके लिए असंभव था। अतः केरोलीन ने अपना मन बदल लिया। इस समय भी अभिजीत को कुछ कहना उसे ठीक नहींं लगा। यह उसका निजी मामला है उसे खुद ही इससे निपटना है। इसलिए अभिजीत की माॅ के स्वास्थ्य के बारे में पूछकर और कुछ इधर उधर की कुछ बातें करके उसने फोन काट दिया।
बहरहाल, अभिजीत की आवाज सुनकर वह अब थोड़ा अच्छा महसूस कर रही थी।
इधर केरोलीन के ठंडे वर्ताव से स्टीव के दिल को बहुत चोट पहुंचा था।परंतु वह कर भी कुछ नहींं सकता था। इन सबके लिए वह खुद ही जिम्मेदार था। अब बोया पेड़ बबूल का तो आम कहाॅ से होय ?
रातभर जगे रहने के बाद सुबह के समय केरोलीन की आंखे लग गई थी। जब वह जगी तो घड़ी में नौ बज रहे थे। वह हड़बड़ाकर बाहर आई तो सबसे पहले किचन पर उसकी नजर गई । उसकी आंखे आश्चर्य से फटी रह गई। सबकुछ वहाॅ करीने से रखा हुआ था। रात के वर्तन धूले हुए थे। फर्श और किचन काउंटर इस तरह साफ थे मानो अभी अभी कोई पोछा लगाकर गया हो। सबकुछ वहाॅ चमाचम चमक रहा था। एक पल के लिए उसे ऐसा लगा जैसे अभिजीत वापस आ गया है। पर यह कैसे हो सकता है ? अभी कल रात को ही तो उससे बातें हुई थी।
वह कुछ अनमने भाव से आगे बढ़ी और गेस्टरूम तक जाकर उसके कदम सहसा रुक गए। अंदर झाॅका तो वहाॅ कोई न था। पूरे घर में खोजा तो स्टीव का कोई अता पता न था। शायद वह जा चुका था। लेकिन उसका सारा घर किचन की भांति ही साफ और चमक रहा था। तो क्या यह सब स्टीव ने किया ?
विस्मित केरोलीन दुबारा गेस्ट रूम में आई। नहींं , स्टीव के साथ लाया हुआ सामान वहाॅ नहींं था। इधर उधर नजर दौड़ाने पर उसे बेडसाइड टेबुल पर एक लिफाफा जैसा दिखा। पास गई तो लिफाफे के नीचे दबा हुआ कोई पत्र भी था। हाॅ , हस्ताक्षर स्टीव के ही थे । वह खोलकर उस पत्र को पढ़ने लगी।
"प्रिय केरोलीन,
वर्षों बाद तुमसे मिलकर मुझे बहुत खुशी हुई। जानता हूं कि तुम मेरे बारे में ऐसा नहींं कह पाओगी। कोई बात नहींं। तुम्हें तो शायद मेरा मुंह भी देखना पसंद नहींं होगा। आखिर मैं हूं ही इतना मनहूस। मानता हूं कि मैंने तुम्हारे साथ जो वर्ताव भी किया उसके बाद ऐसा सोचना बहुत स्वाभाविक है।शायद मेरी मृत्यु की खबर पाकर उस समय तुम खुश ही हुई होगी कि चलो आखिर, स्टीव से पीछा तो छूटा।! परंतु मैं मरा नहींं। अपने पापों का प्रायश्चित्त करने के लिए जिन्दा बच गया।
जिस ट्रेन से मैं सफर कर रहा था उसका अक्सीडेंट हो गया था। परंतु अक्सीडेंट के समय मैं उस ट्रेन पर नहींं था। दो स्टेशन पहले उतर गया था क्योंकि मेरा ब्रीफकेस किसी ने चुरा लिया था, जिसमें टिकट और सारे दस्तावेज रक्खे थे। सरकार ने भी बाद में उन्हीं दस्तावेजों के आधार पर मुझे मृत घोषित कर दिया था, जिसका खबर तुमने अखबार में पड़ा था।
फिर आगे की कहानी बहुत लंबी है। मौका मिले तो किसीदिन सामने बैठकर तुम्हें सुनाऊंगा। संक्षेप में यदि कहूं तो , मैं नामहीन, अर्थहीन, स्वजनहींन किसी तरह बार्डर पार कर कॅनाडा पहुंच पाया था। फिर दस साल तक बहुत संघर्ष करने के बाद आज कहीं जाकर फिर मेरी आर्थिक हालत थोड़ी बेहतर हुई है।
इन दस सालों में केरोलीन ,तुम्हें मैंने बहुत मिस किया। एक तुम्हीं तो मेरी अपनी थी। तुमने हर उतार चढ़ाव में मेरा साथ दिया है। फिर भी देखो मैं तुम्हें भी दुख देने से नहींं चूका।
दरअसल, तुम्हें खोने के बाद ही मुझे तुम्हारी कीमत पता चल पाया। ऐसा क्यों होता है, बता सकती हो ?
खैर,मैं तुम्हें ढूंढता हुआ कर्लाइल आया था। पता था कि एक न एकदिन तुम मुझे जरूर मिल जाओगी। किस्मत तो देखो, तुम्हारे घर के पास आकर ही मेरी गाड़ी खराब हुई थी। जो होता है,शायद अच्छे के लिए ही होता है।
मुझे पता नहींं था कि तुम्हें मैं किस हालत में मिलूंगा। जैसे मैं तुम्हें छोड़ गया था, इसके लिए मुझे बहुत खेद है। यदि संभव हो तो मुझे इसके लिए माफ कर देना।
मैं बता नहींं सकते कि तुम्हें यहाॅ खुश देखकर मुझे कितनी खुशी हो रही है। अब मैं खुशी खुशी वापस जा सकूंगा।
ईश्वर से प्रार्थना करता हूं कि मेरे हिस्से की सारी खुशियों से वे तुम्हें नवाजें। सदा सुखी रहो।
तुम्हारा भूतपूर्व पति,
स्टीव।
पुनःश्च: तलाक के समय मैं तुम्हें एलीमोनी नहींं दे पाया था, जिस पर कि तुम्हारा हक था। इसलिए एक छोटी सी भेंट छोड़े जा रहा हूं, सिर्फ तुम्हारे लिए।
केरोलीन लिफाफा खोलती है तो कुछ धातु की चीज उसमें से निकलकर उसके पैरों के ऊपर आ गिरती है। अरे, यह तो उसकी शादीवाली अंगूठी है। इसे तो स्टीव कब का बेच चुका था।
फिर लिफाफा के अंदर से वह एक कागज़ का पुलिंदा बाहर निकालती है। कानूनी दस्तावेज था। अपने अच्छे वक्त में स्टीव और उसने मिलकर मैनहैटन के फिफथ एवेन्यू और सिक्थ स्ट्रीट पर जो बंगला पसंद किया था, उसी को खरीदकर स्टीव ने उसके नाम गिफ्ट कर दिया था।!
केरोलीन अब मैनहैटन के एक विलासयुक्त बंगले की मालकिन थी। यह जानकर उसकी सारी इंद्रियों ने एकाएक काम करना बंद कर दिया। काफी देर तक वह यह तय न कर सकी थी कि इसबात पर उसे खुश होना चाहिए अथवा रोना ? वह अपने पूर्व विवाह की निशानी को हाथ में लिए काफी समय तक गेस्ट रूम की खिड़की से बाहर शून्य में ताकती रह गई थी उस दिन।