himangi sharma

Abstract

4.7  

himangi sharma

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उस पंछी की क्या गलती थी ??????

उस पंछी की क्या गलती थी ??????

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सवेरे सवेरे बगीचे मे टहलने ही आदत बहुत पुरानी थी। बगीचे का नज़ारा इस तरह आनंदित करता था जिसकी प्रशंसा शब्दों में बयां नहीं की जा सकती। याद है मुझे वह समय जब सामने वाले मकान में कुछ कबूतर जाकर बैठ जाया करते थे, उस घर में ऊपरी माले पे एक हॉल हुआ करता था जहा २-३ पंखे और कुछ फूलो के गमले पड़े रहा करते थे। लेकिन डर इस बात का लगा रहता था की कबूतरों का वहा जाना कही उनके लिए खतरनाक साबित ना हो जाये। खतरा तो इस बात का था कि कही कबूतर को पंखे से टकराकर किसी प्रकार की चोट आयी तो इसका जिम्मेदार कौन होगा भला!!!

 इस चिंता को व्यक्त करते हुए मैंने उस मकान की मालकिन से बात की लेकिन उन्होंने इस बात में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई अपितु ये कह दिया कि भला कबूतर के जीने मरने ने उन्हें क्या मतलब !

उसी दिन की बात है, एक कबूतर बहुत देर से उनके घर के आसपास उड़ रहा था, एक बार तो पंखे तक भी आ चूका था लेकिन उन्होंने पंखा बंद करना जरुरी नहीं समझा और कुछ मिनटों के अंतराल में ही वह कबूतर उस पंखे से आ कर जोर से टकरा गया और जमीन पर धड़ाम से गिर पड़ा और अपने प्राण त्याग दिए। खून से लबालब उसका शरीर देखकर मकान मालकिन बेहोश हो गयी और जोर से चिल्लाती हुई रोने लगी। ऐसी आवाजें सुनकर मै फ़ौरन उनके घर पे गई। वहा की स्थिति देखकर किसी को भी रोना आ जाता। कैसे जैसे मैंने मकान मालकिन जी को समझाया और उन्हें अपनी गलती का एहसास तो था लेकिन जब तक बहुत देर हो चुकी थी , एक बेजुबान पंछी अपनी जान गवा चुका था। यूं तो यह गलती किसी से भी अनजाने में हो सकती है और ऐसे कितने ही घर है जहा इस तरह कबूतर आते जाते होंगे और पंखे से टकराते होंगे लेकिन सबसे बड़ा दुःख तो इस बात का है कि क्यों लोग बिना ठोकर खाये सीखते ही नहीं है, क्यों गलती किये बिना सँभलते नही, क्यों उन्हें अपना अहंकार इतना बड़ा लगता है कि वो उस अहंकार के आगे किसी की बात नहीं सुनते, यदि वह महिला उस कबूतर के पहली बार आने पर ही पंखा बंद कर देती तो शायद उस बेचारे पंछी की जान बच जाती लेकिन उस महिला को अपने अहंकार के आगे किसी पंछी के जीवन मरण से कोई लेना देना नहीं रहा, उसने यह अपनी जिम्मेदारी नहीं समझी कि उसके तुरंत पंखा बंद कर देने से एक माँ अपने बच्चे से बिछड़ने से बच जाती, एक परिवार को अपना एक सदस्य नहीं खोना पड़ता, आखिर जितना दर्द एक इंसान की माँ को उसके बच्चे से बिछड़ने पर होता है उतना ही दुःख एक पंछी की माँ को भी महसूस होता है। 

गुस्सा तो मुझे उस पंछी पर भी आया जिसने दाने, पानी, छाव की आस एक इंसान से रखी जिसे उसके जीने मरने से कोई लेना देना होता ही नहीं है। इंसान जितनी घृणा एक दूसरे से रखते है शायद ही कोई पंछी रखता होगा एक दूसरे से।

 उस दिन के बाद जब भी बगीचे में टहलते टहलते उस मकान पर नज़र पड़ जाती थी तो उस कबूतर की याद हमेशा आती थी और आँखों को नम कर देती थी। हलाकि मकान मालकिन जी ने कभी वह पंखा नहीं चलाया और हमेशा कबूतरों को दाना पानी देने लगी, किसी भी पंछी को गिरा हुआ देख लेती तो उसका इलाज करवाने में बिलकुल देर ना लगाती और अपनी गलती का पश्चाताप करने के लिए अपना जीवन उन पंछियो की देखभाल में ही लगा दिया। मैंने भी उस महिला का इस कार्य में साथ दिया और हर संभव प्रयास किया। काश ! किसी और पंछी को अपनी जान न गावानी पड़े।


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