himangi sharma

Abstract

4.5  

himangi sharma

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एक अविस्मरणीय यात्रा

एक अविस्मरणीय यात्रा

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यात्राओं पे निकलना शुरू से ही बहुत ज्यादा पसंद है। कही घूमने निकलने की सबसे बड़ी वजह हैं प्रकृति की लुभावनी मुस्कुराहट और अद्वितीय दृश्यों की झलक। जीवन में जितना हो सके उतना अधिक जानकारी प्राप्त करते रहना चाहिए, और जानकारी बटोरने का अवसर प्रदान करती है प्रकृति। प्रकृति के अद्वितीय दृश्य और प्रक्रियाएं देखकर मन मे नई उमंग और ऊर्जा का संचार होता हैं। जब भी महसूस होता हैं प्रकृति का आदेश है तब निकल पड़ती हूं प्रकृति के अद्भुत दृश्यों को अपने नेत्रों और दिल मे सँजोने। प्रकृति वो सुशोभित माला है जिसमे अनेक मोती समाहित हैं, सभी पेड़, पौधे, पक्षी, प्राणी आदि रूपी मोती मिलकर प्रकृति रूपी माला को सँजोते है। प्राकृतिक सौंदर्य का वर्णन करना इतना आसान कार्य नहीं हैं क्योंकि प्रकृति के हरेक दृश्य का प्रत्यक्ष रूप से अनुभव करके उनको अपने दिल में संजोके रखने का उत्साह अलग ही हैं और उस अनुभव को शब्दों में पिरोना एक कठिन कार्य है।

 इस यात्रा पर निकलने के लिए मैंने अपने घर से प्रस्थान किया। यह यात्रा भी मेरे लिए उतनी ही खास थी जितनी और यात्राएँ रह चुकी थी। मैं जल्दी से स्टेशन पहुँची, ट्रेन आ चुकी थी। मेरे ट्रेन में बैठ जाने के कुछ देर बाद ट्रेन चल पड़ी। अब ट्रेन से दिख रहे हरेक दृश्य की चमक मुझमें उमंग का संचार कर रही थी, कही किसी खेत में लहराती फसल के दृश्य दिखाई पड़ते तो कही हवा में नृत्य करते पेड़-पौधे। ट्रेन चलती गयी और कई सारे अद्भुत दृश्यों की सैर कराते हुए अपने गंतव्य तक पहुंच गई। ट्रेन से उतरने के बाद, एक गाड़ी में बैठकर मैंने आगे का सफ़र तय किया, हम सभी गाड़ी में कुल 8 लोग थे। रास्ते में कई सारे स्थानीय लोग अपनी वेशभूषा और विशेष तौर-तरीको से हमारा ध्यान केंद्रित कर रहे थे। वहाँ के बागानों, पहाड़ो, पक्षियों को देखने में आनंदित महसूस हो रहा था। सभी दृश्य मन को मंत्रमुग्ध कर रहे थे। उन सभी दृश्यों को देखकर लगता था कि हरेक दृश्य को बस देखते ही रहे। ये दृश्य पूर्णतः शांति प्रदान कर रहे थे और मन को विभ्रांति से स्पष्टता की ओर ले जा रहे थे। हमारी गाड़ी हमें सैर कराती हुई पहाड़ो के बीच ले आयी और हम वहाँ के दृश्यों का आनंद उठाने लगे। वहाँ पर झरने से बहता पानी निरंतर बढ़ते रहने की सीख दे रहा था और प्रकृति का हरेक हिस्सा मानो जीवन का साक्षात्कार कर रहा था। ऐसी जगह आकर मन का अहंकार बिल्कुल समाप्त हो चुका था।

अब वापस घर लौटने का समय आ चुका था। मन थोड़ा दुखी था कि अब प्रकृति से दूर जाना पड़ेगा, लेकिन फिर अहसास हुआ कि प्रकृति एक स्थान पर ठहरना नही सिखाती, हमें बढ़ते रहना चाहिए और हम चाहे कही भी रहे प्रकृति हमारे आसपास ही है, जरूरत है तो प्रकृति के साथ कदम मिलाकर चलने की न कि उसे नष्ट करने की। 

यह एक अविस्मरणीय यात्रा हैं जो बहुत कुछ सिखाती हैं।


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