himangi sharma

Children Stories

4.4  

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दुःखी गोरैया चिड़िया

दुःखी गोरैया चिड़िया

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एक सवेरे मै थोड़ा जल्दी उठ गई। करीब चार बजे होंगे !! थोड़ी देर तक तो यही सोचती रही कि आज इतनी जल्दी आँख कैसे खुल गई फिर सोचा कि आँख खुल ही गई है तो क्यों न छत पर जाकर पंछियो से बातें की जाये। उन दिनों मुझे पंछियो से कुछ ज्यादा ही लगाव हो चला था। पंछियो की चहचहाने की आवाजें सुनकर चेहरे पे जो मुस्कराहट आई, फिर तो मुझसे रहा न गया और फ़ौरन छत की ओर भागी। छत का दरवाज़ा खोलते ही जो अद्भुत नज़ारा पाया, प्रकृति के उस खूबसूरत दृश्य को देखकर आँखें जैसे चमक उठी। उन्मुक्त गगन के पंछियो को देखकर मन में उत्साह और उमंग की लहर उठी। लेकिन अचानक उत्साह और आँखों की वो चमक दुःख और अंधकार में तब्दील हो गई जब मेरी नज़र एक दुखी गोरैया पर पड़ी जिसके आंसुओ में दुःख छलक रहा था।

एक पल के लिए तो मुझे लगा कि शायद ये उसका कोई निजी मामला हो इसलिए वह परेशान हो, लेकिन अगले ही पल मेने उस से पूछ ही लिया - क्या हुआ है गोरैया, इतनी दुखी क्यों दिखाई पड़ती हो ?

गोरैया करुणापूर्ण ध्वनि में बोल पड़ी-क्यों इतनी सहानुभूति दिखती हो ? तुम इंसान ही मेरे दुःख का कारण हो। जब भी मैं तुम इंसानो के घर में अपना घोंसला बनती हूँ तो तुम घोंसला बनने से पहले ही उसे उजाड़देते हो, पिछले कई महीनो से अलग- अलग घरो में अपने अंडो के लिए एक छोटी सी जगह बनाने की कोशिश कर रही हूँ किन्तु तुम इंसान कितने निर्दयी हो इसी का परिचय बार - बार मिलता रहा। क्या तुम्हारे घर की इतनी सी जगह भी तुम हम बेसहारा पंछियो को नहीं दे सकते ? हम तुम लोगो की तरह ना तो किराये का घर खरीद सकते है और ना ही अपना घर बना सकते है क्योकि हम तो तुम इंसानो पर ही निर्भर है या तो पेड़ो पर। लेकिन अब तो तुम पेड़ो को भी अपना समझने लगे हो और जब चाहो तब किसी भी पेड़ को उखाड़ फेंकते हो किन्तु ये नहीं सोचते कि उस पेड़ पर कितने पंछियो के घर बसें होंगे !

इतनी करुणापूर्ण वाणी सुनकर मेरी आँखों से अश्रु बहने लगे। मैंने गोरैया से कहा- गोरैया तुम ऐसा मत सोचो की तुम अपना घोंसला नहीं बना पाओगी। तुम मेरे घर में अपना घोंसला बनाओ और यहाँ तुम पूर्णतः सुरक्षित हो। और तुम्हे इंसानो से डरने की आवश्यकता नहीं, सब इंसान एक जैसे नहीं होते, हर किसी की सोच मेल नहीं खाती! और तुम इंसानो पर निर्भर नहीं हो क्योंकि तुम अपना घर अपनी मेहनत से बनती हो, हमारे घर का तो सिर्फ सहारा लेती हो, हम इंसानो को भी तो घर बनाने के लिए जमीन का सहारा लेना होता है। और ये जमीन तो प्रकृति की देन है, जो तुम पंछियो के लिए भी है और हम इंसानो के लिए भी!

तुमने सही कहा। सभी इंसान एक जैसे नहीं होते, तुम उन इंसानो में से हो जिसकी सोच शुद्ध और सभी के लिए परोपकारी है। काश ! मै तुम्हे कुछ दे सकती! - गोरैया दुखी होकर बोली।

मैंने कहा - तुम हमें मीठी- मीठी आवाज़ों से प्रफ्फुलित करती हो, ये क्या कम है ?

तुम बहुत अच्छी हो गोरैया! अब ख़ुशी-ख़ुशी अपना घोसला बनाओ और मिलने आती रहा करो। साथ ही अपनी मधुर आवाज से माधुर्य रास बिखेरती रहा करो।

ऐसी कई गोरैया है जो अभी भी आंसू बहा रही है, उनके दुःख को समझने की कोशिश करे। मुझे उस दिन बहुत कुछ समझा गई वो गोरैया, जो कि हम सभी इंसानो को समझने की आवश्यकता है। हम ये अच्छी तरह जानते है कि गोरैया चिड़िया आज के समय में लुप्त होती जा रही है। हमें हमारे घरों का एक छोटा सा कोना देने में भी शर्म आती है, की यदि किसी ने ये घोंसला देख लिया तो मेरी क्या इज्जत रह जाएगी !

लेकिन जरा सोचिये की लुप्त होती गोरैया को हमने अपने घर का एक कोना दे दिया तो हमारा गोरैया को बचाने में बहुत महत्वपूर्ण योगदान हुआ। इस योगदान से हमें हमारे घरो में गोरैया की मृदुल ध्वनि पुनः सुनाई दे सकती है और गोरैया को दाना पानी डालकर उसका पेट भरने से हम पाएंगे गोरैया की वो अनमोल दुआए जो रुपया देकर नहीं अपितु अपने घर में एक छोटी सी जगह देकर और अपने दिल में एक विशाल स्थान देकर ही पायी जा सकती हैं।

नहीं पड़ेगा गोरैया चिड़िया को फिर कभी रोना, अगर दिया जाए उसे अपने घर का एक कोना,

ऐ इंसान ..........

घर में पंछियों को जगह न देकर क्या बढ़ेगी तेरी शान, ये तो है साक्षात् प्रकृति माँ का अपमान !


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