अंधविश्वास की बेड़ियों में जकड़े
अंधविश्वास की बेड़ियों में जकड़े


बहुत जरूरी काम है, जल्दी निकलना होगा- ऐसा हड़बड़ाते हुए कहकर एक महिला अपने घर से बाहर निकली। दो कदम चलते ही उनका रास्ता एक बिल्ली काट गयी, तो वो महिला उस बिल्ली को कोसने लगी और ये भूलकर कि उनको कोई जरूरी काम था, फौरन अपने घर की ओर चली गयी। कुछ देर बाद वह वापस आयी और अपने गंतव्य तक जाने लगी। अचानक किसी राह चलते व्यक्ति के छींकने की आवाज़ आयी और वह महिला बिना कुछ सोचे समझे उसे डाटने लगी। करीब पंद्रह मिनट इंतज़ार करने के पश्चात ही वह वहाँ से हिली। उनके इस अंदाज़ को कोई बेवकूफी कहेगा तो कोई अंधविश्वास , और कहे भी क्यों न, क्या सच में सिर्फ बिल्ली के रास्ता काटने से या किसी के छींकने से असफलता तय होती है।
अंधविश्वास का ये एक किस्सा नहीं है, ना जाने कितने लोग कभी धर्म के नाम पर तो कभी संस्कृति, रीति- रिवाजों के नाम पर अंधविश्वास में जीते है। अंधविश्वास की डोर को इतना कसकर पकड़े रहने से समाज और देश को गर्त में जाने से कतई नहीं रोका जा सकता। क्योंकि अंधविश्वास और विश्वास में बहुत बड़ा फर्क नहीं है, अंधविश्वास और विश्वास के बीच के फर्क को समझना जरूरी इसलिए भी हो जाता है क्योंकि जब हमें किसी चीज़ पर अंधविश्वास होने लगता है तब हम उसके पीछे छुपे कारण को देखने और जानने के बजाय उस पर आँख बंद करके विश्वास कर लेते है। इस अंधविश्वास की ही वजह से हमें सच और झूठ के बीच का फर्क समझ में आना बंद हो जाता है। किसी भी चीज़ को आंख बंद करके मानने से पहले उसके हर पहलु को जानना सच में बहुत जरूरी है, खास कर तब जब किसी अंधविश्वास के कारण किसी की जिंदगी दाव पर लग जाये। यही बात मैंने उस महिला को समझानी चाही लेकिन अंधविश्वास को तोड़ना इतना आसान नहीं है.... लेकिन नामुमकिन भी नहीं।
उस महिला को मैंने पूछा कि इतना जरूरी काम होते हुए भी वह इन बेतुके कारणों से इतनी बार उस कार्य में विघ्न उत्पन्न कर रही थी तो क्या उसे अपनी मूर्खता नहीं दिखाई देती। भला डूबते सूरज को देखना अशुभ कैसे हो सकता है, सूरज का उगना और डूबना तो प्रकृति का नियम है इसमें क्या अशुभ। काले कौवे के छत पर बैठने से मेहमानों के आने का आकलन किया जाता है, जबकि कई बंद मकानों की छत पर कौवे लगभग रोज़ बैठा करते है, वहा तो कोई मेहमान नहीं आते। इस तरह के कई तर्क मैंने उस महिला के सामने प्रस्तुत किये, उसे समझ सब आ रहा था पर वह मानने को तैयार नहीं थी कि उनका अंधविश्वास गलत है। इन्हें कभी तो अपनी गलतियों का एहसास होगा यह उम्मीद लेकर मैं वहाँ से चली गई।
एक दिन उनके घर के किसी सदस्य की तबीयत अचानक बहुत खराब हो गई और उन्हें हॉस्पिटल ले जाते वक्त किसी ने छींक दिया तब वह महिला एक भी मिनट रुके बिना तुरंत हॉस्पिटल की ओर चली गई, उस दिन यदि वह अंधविश्वास में उलझ कर रह जाती तो अपने घर के सदस्य को शायद हमेशा के लिए खो देती। बाद में जब मुझे पता चला कि उन्होंने अंधविश्वास की डोर को छोड़ दिया है तो मुझे यह जानकर बहुत ख़ुशी हुई कि उनको अपनी गलती का एहसास हो गया और उन्होंने अपनी गलती को सुधार भी लिया।
यह किस्सा वह महिला हर अंधविश्वासी को सुनाती है और उसे सीख देती है कि अंधविश्वास की डोर को छोड़ दो। लेकिन एक दिन किसी ने उनके इस किस्से पर तर्क किया कि आप लोग तो वैसे भी किसी शुभ कार्य से नहीं जा रहे थे तो उसमें किसी के छींकने से क्या फर्क पड़ता तो उन्होंने उस व्यक्ति को मुस्कुराकर समझाया कि हम उस दिन शुभ कार्य के लिए ही जा रहे थे क्योंकि हम किसी की जान बचाने जा रहे थे और यदि हमें थोड़ी भी देर हो जाती तब अशुभ घटना जरूर घटित हो सकती थी।
## अंधविश्वास कई बार इतना बुरा हो सकता है कि वो किसी की जान भी ले सकता है, इसलिए अंधविश्वास से दूर रहे और दूसरों को भी यही सीख दे ##