Ranjana Kashyap

Abstract

4.9  

Ranjana Kashyap

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उर्मिल

उर्मिल

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आज भी जब उस गली से गुजरती हूं तो गली के कोने में उस बड़े से घर को देख कर कुछ याद आता जाता है। कमरों वाला घर और बड़ा सा आंगन।

 

उर्मिला!  सब उनको उर्मिल बोलते थे। बूढ़ी लगती थीं, हालांकि इतनी उम्र नहीं थी। कपड़ों को सिल कर गुज़र बसर करती। घर अपना ही था।

 

बाबूजी थे उनके, उनको लाला जी कहते थे सब। मां! हां मां की बीमारी ही वजह थी, जो उर्मिल ने शादी ना करने का फैसला किया। अपनी पूरी जिंदगी दांव पर लगा दी थी। बाबूजी की पेंशन शायद आती थी। पर सब मां की बीमारी में सब लग जाता था।

एक भाई था जो अच्छा खासा कमाता, खाता था, वहीं नजदीक अपने परिवार के साथ रहता था। लेकिन किसी कारण से उर्मिल ने उस से कोई नाता नहीं रखा था।

 

अपनी क्यारी में लाल गुलाब के फूल सहेजती, और हम बच्चे उनसे गुलाब मांगते रहते तो हमको फुसला देती थी। पूरा मोहलला उनको पसंद करता था। मेरी मां की भी दोस्ती थी, तो हमारे घर भी आती थी।

पर उनके जीवन में अचानक सब कुछ बदल गया था, जिस मां के लिए सब कुछ छोड़ दिया था वह उनको छोड़ गई।

उफ्फ! कितना बुरा हाल हुआ था उनका और कुछ समय बाद बाबूजी भी चल बसे। अब वह अकेली रह गई, वक्त ने संभलने का मौका भी नहीं दिया। मुझे याद है वो दिन जब हमने जबरदस्ती उनको साड़ी पहना के साझा दिया था, कितनी खुश लग रही और शर्मा भी रही थी। फोटो खिचवा के रख लिया था। उस दिन मुझे लगा कितने अरमानों को दबा रखा है इन्होंने।

वह धीरे धीरे फिर से संभलीजप तप करतीगृह नक्षत्र देखती सबके। मेरा भविष्य भी बताया था उन्होंने और आज याद करती हूं तो वह सच ही थाएक अच्छा जीवन साथी बताया था मेरे लिए उन्होंने।

वहीं उर्मिल आज नहीं रही, वक़्त ने एक ओर खेल खेला था, उनको कैंसर हो गया, बहुत इलाज करवाया, सब मोहल्ले वालों ने जितना हो सका सेवा की, लेकिन वह नहीं बची। कुछ दिनों बाद वकील ने कर मेरी मां से बात कीउनकी वसीयत पढ़ी वह सारे मोहल्ले के लोगों के नाम कुछ ना कुछ लिख के गई थी, वह स्वाभिमान वाली स्त्री थी, यथाशक्ति सबको कुछ देकर गई। लेकिन मोहल्ले में किसी ने कुछ नहीं लिया। आखिर में सब उसी भाई को ही मिला जिस से कभी उनका नाता नहीं था। 

 



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