कर्मा
कर्मा
फर्श पर बिखरे मोती, मेरे टूटे हुए हार के हैं! दीवारों पर यह नीला रंग, इन दीवारों को रंगा था मैंने, मेरे नाखून तक मैंने पेंट करने के लिए नष्ट कर दिए ! ये गुलाबी पर्दे, ये फूल यह जगमग बत्तियां यह सब अब मुझे सता रही हैं!
लगता है जैसे कोई तूफान इस कमरे से हो कर गुजरा है, उस तूफान के बाद मेरे कमरे में, अंधेरा है। मेरी सांस तेज चल रही है। सभी कुचली हुई आशाएँ और मन में हजार सवाल हैं, पछतावा है। मैंने एक गलत व्यक्ति पर भरोसा किया। उसने ऐसा क्यों किया? अज्ञात छाया मेरे कानों में फुसफुसा रहे हैं, मेरे सिर को पीट रहे हैं, जैसे-जैसे मैं उस आयाम की ओर खिंचती गई। ये मेरे मन के कितने टुकड़े हुए और चारों ओर बिखरे गए।
आज एक फोन कॉल ने मेरी दुनिया बदल दी है!!!
हैलो, "मैं पुलिस स्टेशन से बात कर रहा हूं, क्या आप सार्थक नाम के किसी व्यक्ति को जानती हैं, उनका खून हो गया है।
यह सुनकर मेरे होश उड़ गए। मैंने कहा, " जी हां।"
इंस्पेक्टर ने बताया कि, जिस बिल्डिंग में लाश मिली है वहां के सीसीटीवी में कुछ रिकॉर्डिंग हो गई है, एक महिला के साथ एक आदमी ने मिलकर उसको मार डाला है। "लाश की शिनख्त के लिए आ जाइए।"
सार्थक यही नाम था, रीगल थिएटर में मेरा उसका लिखा नाटक होने वाला था, मैं उस नाटक की नायिका थी, रिहर्सल के दौरान नजदीकी बढ़ती गई, कितने वादे किए थे उसने इस शो के लिए, मन ही मन चाहने लगी थी। कितनी तैयारी हुई, शो भी हुआ। कितने सपने सजा लिए थे।हम खुश थे।
लेकिन उस नाटक की खलनायिका हमारे जीवन की भी खलनायिका बन गई थी, मुझे उस वीना पर शक हमेशा से था। सार्थक और मेरे बीच आ ही गई, लेकिन सार्थक मुझे एक बार कहता तो क्या मैं उसे जाने नहीं देती क्या। क्यूँ धोखा दिया। सारे पैसे ले कर यूं भाग जाना। आज वही पैसा उसका दुश्मन बना। क्या ये पहले से षड्यंत्र था। निविदाओं के लिए मेरे जीवन में कोई स्तंभ नहीं बचा।
हर जगह अंधेरा है, जहां लौटने का कोई रास्ता नहीं बचा। पुराने शो के टिकट बिखरे हुए हैं, संवेग संग्रहीत हैं। मेरा पर्दा उड़ रहा है, हवा ने मेरे दरवाज़े खोल दिए।
सुबह हो चुकी है, कब तक आखिर मैं रोती रहूँगी, क्या मैं कमजोर हूं? नहीं। यह मजबूत होने का समय है, अकेली ही सही, लेकिन अब निर्धारित, अनकहा युद्ध जारी है, मैं लड़ूंगी।