Ranjana Kashyap

Abstract

4.9  

Ranjana Kashyap

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गोद

गोद

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" तुम कब तक यूँ अकेली रहोगी ?" लोग उससे जब तब यह सवाल कर लेते हैं और वह मुस्कुरा कर कह देती है" आप सबके साथ मैं अकेली कैसे हो सकती हूं।"

उसकी शांत आंखों के पीछे हलचल होनी बन्द हो चुकी है। बहुत बोलने वाली वह लड़की अब सबके बीच चुप रह कर सबको सुनती है जैसे किसी अहम जबाब का इंतजार हो उसे।

जानकी ने दुनिया देखी थी उसकी अनुभवी आंखें समझ रहीं थीं कि कुछ तो हुआ है जिसने इस चंचल गुड़िया को संजीदा कर दिया है लेकिन क्या?

" संदली! क्या मैं तुम्हारे पास बैठ सकती हूं?" प्यार भरे स्वर में उन्होंने पूछा।

" जरूर आंटी यह भी कोई पूछने की बात है।" मुस्कुराती हुई संदली ने खिसक कर बैंच पर उनके बैठने के लिए जगह बना दी।

" कैसी हो ?क्या चल रहा है आजकल ? " जानकी ने बात शुरू करते हुए पूछा।

" बस आंटी वही रूटीन कॉलिज- पढ़ाई...." संदली ने जबाब दिया।" आप सुनाइये।"

" बस बेटा सब बढ़िया है। आजकल कुछ न कुछ नया सीखने की कोशिश कर रही हूं।" चश्मे को नाक पर सही करते हुए जानकी ने कहा।

" अरे वाह! क्या सीख रही है इन दिनों?" संदली ने कृत्रिम उत्साह दिखाते हुए कहा जिसे जानकी समझ कर भी अनदेखा कर गई।

"बस पेंटिंग में मॉडर्न आर्ट सीख रही हूं। मैंने कभी बनाई नहीं तो बस अब कोशिश कर रही हूं।

तुम बुरा ना मानो तो कुछ पूछूं तुमसे? "

संदली ने सिर झुका के कहा "जी"

नहीं रहने दो तुम खुद बता देना अगर कुछ बताना चाहती हो।

संदली चुप रही। एक लंबी खामोशी के बाद उसने कहा आंटी में शाम को घर आऊंगी अभी मुझे जाना है। वह पास ही पेइंग गेस्ट रहती थी। यह कह कर वह चली दी। जानकी पार्क में बैठी उसे देखती है रही। जानकी कुछ समय के लिए दिल्ली चली गई थी। आज संदली से काफी समय बाद मिली थी।

शाम को डोर बेल बजी तो जानकी ने दरवाजा खोला संदली थी सामने" आओ आओ बेटा। "

संदली अंदर आ गई। दोनों बैठ गईं। संदली के बेजान चेहरे पर मुस्कुराहट थी फीकी सी। जानकी चाय और कुछ स्नैक्स ले आती है। जानकी ने कहा "क्या हुआ इतनी कमजोर ओर उदास क्यूं हो गई हो।"

संदली की आंखों में जैसे समुंदर तैर गया। वह जानकी से लिपट कर बहुत देर रोती ही रही। जानकी ने उसे रोने दिया। वह जानती थी ये पथरीली आंखों में सैलाब आना ज़रूरी है। काफी देर बाद संदली ने कहना शुरू किया" आप जानती हैं मेरा कोई नहीं है बस वो आंटी ने मुझे पाल पास के बड़ा किया है। और वो भी कैसे मुझे पता है किसी तरह से में ट्यूशन ओर स्कॉलरशिप ले कर यहां तक पहुंची आप जानती नहीं हैं किस तरह की चाल के माहौल में पढ़ी लिखी ओर रही हूं। और वो पैसों की लालची आंटी ने पहले भी एक बार मेरा रिश्ता एक बाहर रह रहे अधेड़ के साथ किया था तब भी में लड़ झगड़ कर यहां पी. जी. मे रहने आती थी। अब वो काफी बीमार थी तो मुझे लगा जो भी ही मुझे पाला है तो सेवा करना मेरा फ़र्ज़ है। मैं वापिस गई। लेकिन इस बार तो हद्द कर दी उस औरत ने। एक शैख के हाथ मेरा सौदा तय किया गया। मुझे खबर नहीं थी। जब अलमारी में भरे नोटों का बैग देखा तो मुझे शक हुआ। फिर मैंने आंटी को अपने मुंह बोले भाई से बात करते सुना। उन लोगों ने मेरा सौदा किया। मैंने उनसे झगड़ा किया। मुझे उन्होंने मारा। मैं किसी तरह भाग आई हूं। "

जानकी सुनती रही। उसने उठ कर अपना मोबाइल उठाया और दूसरे कमरे में चली गई।

जानकी ने वापिस आ कर संदली को चुप करवाया और उस से कहा " बेटा हमारी शादी को काफी साल हो चुके हैं वैसे एक ही बेटा है हमारा बेटी की चाहत ही रह गई क्या तुम हमारी बेटी बनोगी हम वकील से बात कर के तुमको गोद लेना चाहते हैं अगर तुम चाहो तो। मैंने सागर से बात कर ली है उनको कोई ऐतराज़ नहीं।" 

संदली की आंखों में फिर आंसू थे लेकिन इस बार वह खुशी के थे।


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