हम तो ऐसे हैं भईया
हम तो ऐसे हैं भईया
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एक समारोह में जब मेरे ही किसी अपने रिश्तेदार की बीवी ने मुझसे पूछा और क्या करती रहती हो सारा दिन, मैं कुछ कहती इस से पहले ही मेरे वह महान रिश्तेदार बोल उठे, क्या करती है सारा दिन रोटियां पकाती है और सोती है, मुझे सुनकर हंसी आ गई मैं ने कुछ नहीं कहा उनको, वह बड़े थे तो कुछ कहने का मन नहीं था। उनकी वाइफ स्कूल में टीचर हैं, इस बात का घमंड होगा शायद।
लेकिन मुझे उनकी इतनी छोटी सोच पर दुख बहुत हुआ। तभी वहां एक बच्ची जो उसी समारोह में थी, वह मेरे रिश्तेदार की ही बेटी थी, वह बोली बुआ आपकी फोटो अख़बार में देखी थी कितनी बड़ी एग्जीबिशन थी आपकी। यह सुन कर वह महान रिश्तेदार भी मुड़े मेरी तरफ, वो तेरी एग्जीबिशन थी मैंने फिर कुछ नहीं बस हंस दी, उनको काफी सदमा लगा, बोले मैंने सुन तो था पर खबर पढ़ी नहीं, मैंने कहां कोई बात नहीं में खुद भी नहीं जाती हूं अपनी एग्जीबिशन में।
लेकिन उसके बाद उनका रवैया बदला मेरी तरफ। उन्होंने जब मेरी तारीफ के पुल बांधने शुरू किए तो मैंने पूछ लिया, "मैं एक बात आज तक समझ नहीं पाई, नौकरी करना या कोई भी काम करना हमारी अपनी मर्ज़ी है, पढ़ाई लिखाई सिर्फ नौकरी पाने के लिए ही तो नहीं, जब हमारी ज़िन्दगी में सब सुख सुविधा है और हम नौकरी नहीं करना चाहते तो कोई हमारी काबिलियत को नापने वाला कोई होता कौन है? घर में रहने का मतलब यह तो नहीं हम नालायक हो गए",यह सारे सवाल मैंने उनसे पूछ लिए। पर जवाब था नहीं उनके पास। क्यूंकि वह जानते थे कि में शायद उनसे भी ज़्यादा पढ़ी लिखी हूं और उनकी टीचर बीवी से भी ज़्यादा। लेकिन उस किस्से से एक बात तो साफ हो गई, आप कितने गुणी है इस बात का ढोल जब तक नहीं पीटोगे आपको कोई कुछ समझेगा नहीं, क्यूंकि दुनिया दिखावे की है सादगी को सब मूर्खता ही समझ लेते हैं। पर मुझे इस कोई फर्क नहीं पड़ा, मैं इतना ही बदली जितना मुझसे हुआ " क्यूंकि हम तो ऐसे ही हैं।"