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Ranjana Kashyap

Abstract

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Ranjana Kashyap

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तारा

तारा

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"कितना प्यारा बेटा है तेरा।"

मां की आवाज़ मेरे कानों में पड़ी। मैंने बाहर आ कर देखा तो मां तारा से बात कर रहीं थीं।

तारा वह एक जमादारिन थी। वह हर घर के शौचालय ओर कूड़ा साफ किया करती थी। हर गली की एक जमादारिन थी। जो रोज़ आती थी और सफाई किया करती। और जब वह घर जाती तो, हर घर से खाना ले कर जाती। महीने के आखिर में कुछ पैसे बांध रखे थे। सब देते । तारा आज अपने बेटे को स्कूल से ले आई थी साथ।

वैसे तो तारा भी बुरी नहीं थी देखने में, पर आज उसका बेटा देखा सच में बहुत सुंदर बच्चा था। किसी अच्छे पब्लिक स्कूल में डाल रखा था उसको।

मां ने पूछा बड़े अच्छे स्कूल में पढ़ा रही है। तो वह बोली, " जी आंटी अब हमने तो काट ली जैसे तैसे अपने बच्चों को ना बर्बाद करूंगी, पढ़ा लिखा कर साहब बनाऊंगी।"

मैं उसको देख रही थी, कैसी चमक आ गई थी उस मां की आंखों में ये बोलते ही।

मैं कॉलेज में थी तब। उसके बाद मेरी नौकरी लगी, फिर शादी हो गई। तारा रोज़ काम पर आती ही थी। काफी साल बीते, मैं अपने घर मां के पास थी, तारा अब सिर्फ कचरा लेने आती थी, क्यूंकि अब सब घर मॉडर्न स्टाइल के हो गए थे। तारा मिली, " अरे वाह बेटी कैसी हो, मैंने कहा, अच्छी हूं" फिर मैंने पूछा और आपका वो प्यारा बेटा कैसा है। तारा का तो जैसे चेहरा खिल गया," बेटा तो इंजीनियरिंग पढ़ रहा है, तीसरा साल नौकरी भी मिलने वाली है बड़ी कंपनी में। बस २ साल बाद मैं भी काम छोड़ दूंगी।"

मैंने उसे बधाई थी। मुझे सच में बहुत खुशी हुई थी उस दिन। तारा ने जी जान लगा दी थी। एक मां जो अपने बच्चे की अच्छी ज़िन्दगी के लिए जो सपने देखती थी, आज पूरे हो गए थे।


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