उनकी कमी
उनकी कमी
क्या सास सिर्फ ताने देने के लिए होती है"संजू के पापा" सावित्री जी की दुनियां इसी शब्द में सिमटी रहती थी।
सुबह उठते ही पहली टेर इसी नाम की लगातीं।
"संजू के पापा" उठिए, चाय पीकर सैर पर निकल जाइए। डॉक्टर ने कहा है, ज़रूरी है!"फिर तो पूरे दिन में घर में पचासियों बार इस नाम को पुकारा जाता।
अब सावित्री जी ख़ामोश हो गईं... संजू के पापा जो इस दुनियां में नहीं रहे।कुछ दिन पहले ही दीनानाथ जी यानि सावित्री जी के पति यानि संजू के पापा का देहांत हुआ था। कहना ना होगा कि उनके आकस्मिक मृत्यु से सबसे ज्यादा प्रभाव उनकी पत्नी सावित्री जी पर ही पड़ा था।जीवनसाथी का साथ अगर इस उमर में छूट जाए तो जिंदगी बिल्कुल भी बेरंग घर पर बेमानी हो जाती है। सावित्री जी को भी अब जीने के प्रति कोई उत्साह नहीं बचा था।
"मां जी! आप अकेले में किससे बात करती रहती हैं ? और आप ठीक से खाती पीती क्यों नहीं ? "आखिर आर्या से नहीं रहा गया तो उसने अपनी सास को टोका।
पिछले कई दिनों से आर्या अपनी सास को अपने आप से बात करते देख रही थी। और कई बार बातों बातों में कुछ ना कुछ ऐसा बोल जाती थी जिससे लगता था कि वह बहुत अकेलापन महसूस करती हैं।
"कुछ नहीं बहू! बस "संजू के पापा " से हमेशा बात करने की आदत थी ना । और बात बात पर झगड़ने और ताने देने की भी। सो अब भी उन्हें काल्पनिक रूप से सामने बैठाकर कभी ताने देती हूं तो कभी बढ़ती ठंड के लिए हिदायतें देती हूं। तो कभी दुख सुख बतियाती हूं। और कभी कभी तो झूठ मूठ का झगड़ा भी करने लग जाती हूं।तो मुझे लगता है कि वो कहीं गए ही नहीं हैं बल्कि यहीं हैं मेरे आस पास! "
इतना कहते कहते बिलखकर रो पड़ी सावित्री जी।उनका करुण रूदन सुनकर आर्या की आंखें भी भर आईंवह उनके पास जाकर उनका हाथ अपने हाथ में लेकर बोली,
"मां जी! आप मत रोइए। आपके मन में जितनी भी बातें हैं, वह सब मुझे कहिए। मैं सब सुनूंगी। आप जो बातें बाबुजी से कहना चाहती थीं पर कह नहीं पाईं, वह सब कह डालिए। आप मुझे डांटिए, ताने दीजिए पर यूं अकेली और उदास ना रहा कीजिए!"बहू के सांत्वना भरे शब्दों ने सावित्री जी को बड़ी राहत पहुंचाई।
थोड़ी देर वह समान्य होने की कोशिश करती रहीं। फिर बोलीं,
"अभी अभी तुमने क्या कहा बहू?
" मुझे पहले की तरह ताने मारिए।"
"अच्छा... तो मैं तुम्हें पहले ताने मारती थी?"
उनकी नकली नाराजगी में असली प्यार भांपकर आर्या भी उसी अंदाज में बोली,
"और नहीं तो क्या...! आप सास हैं, आप तो ताने मारेंगी ही!"अब इस नकली नोक झोंक में सावित्री जी को भी मजा आ रहा था।वह भी अपने पुराने रूप में वापिस आ रही थीं सो उसी अंदाज में बोलीं,
"अच्छा...! तो सास क्या सिर्फ ताने देने के लिए होती हैं? मैं तुम्हें प्यार भी तो कितना करती हूं, वह नहीं दिखता तुम्हें? "
"दिखता है मां जी! सब दिखता है। बस मैं यही तो चाहती हूं कि आप बिल्कुल सामान्य हो जाएं। बाबूजी कहीं नहीं गए। हमारे आसपास ही हैं ।और वो आपको अगर सामान्य नहीं देखेंगे आपको उदास देखेंगे तो जरा सोचिए ...उनकी आत्मा को कितनी तकलीफ होगी!"
कहते कहते भावुक होकर सावित्री जी से लिपट गई आर्या ।वैसे पहले इस घर में ऐसा दृश्य बहुत कम देखने को मिला था।
पिछली बार जब आर्या गर्भवती थी और उसने यह समाचार सुनाया था कि कोई नया मेहमान आनेवाला है जो सबको अलग अलग नामों से संबोधित करेगा और एक तरह से उसका सबके साथ एक नए रिश्ते का जन्म होगा।वैसे ही आज जब सावित्री जी ने आर्या को गले लगाया था तब आज फिर एक रिश्ते का नया जन्म हो रहा था।सास बहू का रिश्ता अब दोस्ती के रिश्ते में और मां बेटी के रिश्ते में बदल रहा था। और इस रिश्ते में ताने उलाहने के साथ बहुत सारा प्यार भी था।
थोड़ी देर बाद आर्या लूडो लेकर आ गई। और सावित्री जी से पूछा,
" मां जी! आप बताइए आपको लूडो में क्या खेलना है? "
" मुझे तो सांप सीढ़ी खेलना है। मैं इसमें हमेशा जीतती हूं। और पता है ... संजू के पापा हमेशा मुझसे हार जाते थे! "कहते-कहते सावित्री जी फिर से भावुक होने लगी थी।और रोने ही वाली थी,कि...फिर से आर्या ने उनमें दम भरा।
" पर एक बात है...मां जी! मैं आपसे नहीं हारूंगी। मैं भी सांप सीढ़ी में हमेशा जीतती हूं!"
अब तो सावित्री जी जोश में आ गई और कहा ,
"देखती हूं! तुम मुझसे कैसे जीत जाती हो मैं सांप सीढ़ी वाली गेम खेलूंगी और मैं ही जीतूंगी!"सावित्री जी ने बच्चों की तरह चहककर कहा।उनका ये उतावलापन देखकर आर्या मुस्कुराने लगी और सोचने लगी कि,सच में वृद्धावस्था में इन्सान बच्चों की तरह हो जाता है। छोटी सी बात पर नाराज होता है और छोटी सी बात पर खुश।
थोड़ी देर बाद दोनों सास बहू लूडो खेल रहीं थीं। बीच बीच में उनकी हँसी की आवाज भी आती जिसे सुनकर ऑफिस से आकर उनका बेटा अमित बहुत खुश हो रहा था।जब आर्या की गोटी को सांप खा लेता तब सावित्री जी बच्चों की तरह ताली बजाकर हँसती तब आर्या और अमित यह देखकर बहुत खुश होतेकुछ पल को ही सही वह अपना दुख तो भूल जा रही थीं।आर्या की तरकीब काम आ गई थी। लूडो खेलने के बहाने से ही सही सावित्री जी अब सामान्य व्यवहार पर लौट रहीं थीं। उनकी मुस्कुराहट भी धीरे धीरे वापिस आ रही थी
यह सच है कि ...किसी की जाने से उसकी कमी कोई नहीं भर सकता। लेकिन जो लोग बाकी बच जाते हैं , उन्हें जिंदगी जीनी होती है ।जो आपसी सहयोग और प्यार से और भी खूबसूरत हो जाती है। नहीं तो अकेलापन एक इंसान का सबसे बड़ा रोग है। यह बात आर्या जानती थी, तभी उसने सावित्री जी को जानबूझकर थोड़ी नाराजगी दिलाई और थोड़ी चुहलबाजी की और उनकी मुस्कुराहट वापस ले आई।
समझदार बहू ने वक्त रहते अपनी सास को संभाल लिया था और धीरे धीरे उनके चेहरे पर मुस्कुराहट सजने लगी थी और इस घर का आंगन फिर से गुलजार रहने लगा था।
अक्सर फुरसत के लम्हों में सास बहू की लूडो की महफिल जमती और अब तो आर्या को जानबूझकर हारने की जरूरत भी नहीं पड़ती थी। क्योंकि सच में सावित्री जी लूडो की पक्की खिलाड़ी थीं।और... मजे की बात ये कि,
सांप सीढ़ी का गेम तो वह हमेशा ही जीतकर ही रहती थीं।एकदम पक्की खिलाड़ी की तरह पैंतरे आते थे उन्हें। डायस को ऐसी चलाती कि उनका मनचाहा अंक आ जाता और वह खुशी से चहक उठती तो कभी उनकी जीत की पार्टी मन जाती थी।
वैसे तो अमित यह सब देखकर बहुत खुश था। और आर्या के प्रति उसके मन में प्यार बढ़ता ही जा रहा था। जिसने उसकी मां को फिर से जिंदगी से दोस्ती करा दी थी। वह पत्नी उसके लिए बहुत ही प्यारी तो थी ही अब वह उसके अन्य गुणों से भी प्रभावित होता जा रहा था।किसी छुट्टी के दिन कभी-कभी अमित भी उनके खेल में शामिल होता था और हार ही जाता था।वैसे भी जब सास और बहू एक टीम हो जाए और दोनों मां बेटी की तरह रहने लगे तो उनसे तो कोई भी टक्कर नहीं ले सकता है।
है कि नहीं....?तो...लूडो के गेम के साथ साथ साथ बहू का रिश्ता भी गहरा होता जा रहा था और इस परिवार की खुशियां वापस लौट रही थी।
कभी-कभी आर्या कहती," मम्मी जी! मैं अब आपके तानों को बहुत मिस करती हूं। आप अब मुझे पहले की तरह खडूस सास बनकर ताने क्यों नहीं देती? "
तब सावित्री जी हंसकर कहती," तुमने खुद ही मेरे ताने देने की आदत को बड़ी चालाकी और समझदारी से छुड़ाया है। तुम जो अब बहू से बेटी बन गई हो तो अब मैं भला अपनी बेटी को ताने कैसे दे सकती हूं? "
सावित्री जी की इन ममतामयीबातों को सुनकर आर्या उनके गले जाती और दोनों रिश्ते की गरिमाहट को महसूस करतीं थीं।
सच ... प्यार हर रिश्ते में बदलाव ले आता है। अगर खुले दिल से निस्वार्थ भाव से किसी रिश्ते और किसी इंसान को अपनाया जाए तो कोई भी रिश्ता स्पेशल बन सकता है।
यहां तक कि सास बहू भी आपस में दोस्त बन सकती हैं। मां बेटी की तरह रह सकती हैं।जैसे आर्या और सावित्री जी का प्यारा सा रिश्ता सबके लिए एक उदाहरण बन चुका था। उनके बीच के प्यार और अंडरस्टैंडिंग वाले रिश्ते को देखकर आसानी से समझ में आ जाता था कि दोनों ने एक दूसरे को दिल से अपनाया है।रिश्ते तो रिश्ते तो दिल से बनते हैं दिल से अपनाए जाते हैं और दिल से ही निभाए जाते हैं।