Prafulla Kumar Tripathi

Tragedy Action Inspirational

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Prafulla Kumar Tripathi

Tragedy Action Inspirational

उजड़ा हुआ दयार ...कहानी श्रृंखला .....(3 )

उजड़ा हुआ दयार ...कहानी श्रृंखला .....(3 )

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जब से यह दुनिया बनी है या यूं कहें कि इंसान धरती पर भेजा गया है तब से आज तक यह दुनिया , यह इंसान , यह उसकी जीवन शैली ..सब कुछ तो निरंतर बदलती चली आ रही है। यह हाड़- मांस का एक अदद इंसान और उसका मस्तिष्क रात दिन अपनी वैज्ञानिक तलाश में जुटा हुआ है और वह चाहता है कि प्रकृति और परमात्मा को बेनकाब कर डाले ...यह साबित कर दे कि ना तो प्रकृति और ना परमात्मा नाम की कोई चीज़ है। यह सब खगोलीय और रासायनिक परिवर्तनों या प्रगति का परिणाम है। लेकिन आज तक तो वह सफल नहीं हो पाया है आगे की राम जानें !

समीर की दुनिया में भी फिलहाल नए घटना क्रम जुड़ते जा रहे हैं। उसने अब एक शानदार अपने मन माफिक नौकरी पा ली है। उसके बॉस और उसके ऑफिस के लोग उसे बहुत प्यार दुलार देने लगे हैं। लेकिन जब वह खाली होता है तो किसी फिल्म की तरह उसका अतीत उस पर हावी होने लगा है। यह शायद अकेलेपन के कारण भी हो !उसके पितामह और दादी जी का स्वर्गवास हो चुका था और माता पिता की ओर से वह निश्चिंत था। उनको किसी प्रकार की आर्थिक मदद समीर से नहीं चाहिए थी क्योंकि गाँव में खेती गृहस्थी से पर्याप्त पैसा आ जा रहा था। उसकी दोनों बहनें ब्याही जा चुकी थीं। हाँ, माताजी को अब समीर के विवाह और गृहस्थी बसाने की चिंता सताए जा रही है।

छुट्टी के दिन समीर अपने पुराने दिनों को याद कर रहा था कि उसके मोबाइल फोन की घंटी घनघना उठी।

"हेलो,"..समीर ने फोन उठाते ही कहा।

"यार , मैं सर्वेश बोल रहा हूँ ...कैसे हो ?" उधर से समीर का एक ख़ास दोस्त सर्वेश फोन पर था।

"ओह सर्वेश ! "लगभग खुश होते हुए समीर ने आगे कहा -"यार कुछ सुना न वहां का हाल ! "

"समीर तुझको एक जरूरी बात बतानी थी कि अपने मुहल्ले की वो लड़की जिससे तुम्हारा कुछ कुछ हो रहा था उसकी शादी होने जा रही है ...कुछ करो वरना ...वरना वह हाथ से निकल जायेगी।" सर्वेश अपनी बात कह चुका था।

एक झटके में समीर असंतुलित हो गया और हड़बड़ाते हुए बोला..."यार ,यार क्या करूँ ...कुछ तू ही बता ना।..क्या मैं मम्मी से बात करूँ की वे उसके घर जाकर मेरे बारे में बातें करें ...लेकिन पिताजी...."

"अबे साले ..पिताजी पिताजी क्या करता है ! तू अपनी मम्मी को फोन कर और हो सके तो आ जा।" सर्वेश अपना निर्णया सुना चुका था।

फोन कट गया था और अब समीर बस में सवार था घर जाने के लिए। छुट्टी के लिए उसने अपने बॉस को व्हाट्स ऐप कर दिया था।

जब तक वह अपने घर पहुंचता शाम हो चली थी } सब हैरान और परेशान कि बिना सूचना दिए लड़का कैसे और क्यों कर आ गया था ? कहीं कोई लड़ाई झगड़ा तो नहीं कर बैठा ?..या या नौकरी ही चली गई ?

देर रात जब उसने अपनी माँ को अपने अचानक आने का कारण बताया तो माँ हंस पड़ीं बोल पड़ीं -

"तू तो बड़ा भोला है रे।.......तुम उस धीरा की बात कर रहा है जो तेरे साथ खेलती कूदती थी ना ?

'हाँ मां ......क्यों ? " समीर हकलाते हुए बोला।....उसके मन में कुछ संदेह जाग उठा।

"अरे मेरे बच्चे, तब से अब तक दरिया का पानी बहुत आगे निकल गया है। वह कुलक्षिन तो बगल वाले मुहल्ले के बंगाली दादा के डाक्टर बेटे के साथ स्कूल से ही कानपुर भाग गई थी ..और ..और जब उसके घरवाले उसे पकड़ कर लाये तो उसने जिद ठान ली कि मैं शादी करूंगी तो बस उसी डाक्टर से ...मैं मैं अठारह की हो गई हूँ और मुझे कोई रोक नहीं सकता।" माँ बोलते - बोलते ऐसा उबल पड़ीं मानो उनकी बेटी ने ही ऐसी गुस्ताखी कर डाली हो।

समीर को काटो तो खून नहीं। अब अब वह करता भी तो क्या, कहता भी तो क्या ?

अगली सुबह बहुत भोर में समीर ने पहली बस पकड़ी और अब एक बार फिर वह अपने कार्य स्थल की ओर जा रहा था। उसका मन भारी भारी था। मन कर रहा था कि वह अपनी किस्मत को लेकर खूब खूब रोये ..पहले प्यार का मामला जो ठहरा ...!

दुःख तो इस बात का था कि लगभग डेढ़ साल के इस अंतराल में धीरा ने कभी भी ये बातें उसे नहीं बताईं थीं।..........यह भी नहीं बताया था कि उसके जीवन में कोई और आ गया है।

 "छि छि ...इतनी घटिया हरकत उसने कर डाली ? " समीर मन ही मन बुदबुदा उठा।


जब कभी अप्रत्याशित तरीके से आपके जीवन में कुछ घटित हो जाता है तब आप कुछ देर के लिए तो अव्यवस्थित अवश्य होते हैं लेकिन अगर आपने वह दौर समझ बूझ कर निकाल लिया तो आप चिंता मुक्त जीवन की ओर उससे दुगुनी गति से चलाने लायक हो जाते हैं। समीर अब अपने अतीत के प्यार को भूल चुका था। उसकी सर्विस में सरकार ने वेतन आयोग की रिपोर्ट को जब लागू किया तो सबसे जूनियर होने के नाते उसे सबसे ज्यादा आर्थिक लाभ हुआ।वैसे भी वह आलतू फ़ालतू खर्च करने का शौक़ीन नहीं था।.... और सिर्फ दिखावे के लिए तो कतई नहीं ! अभी कभार पान खा लिया और महीनों बाद अगर ऑफिस के संगी साथियों ने जोर डाला तो ड्रिंक भी ले लेने में उसे कोई परहेज़ नहीं थी।

घरवालों के सुझाव पर समीर ने अपनी लगभग चालीस लाख रुपये  की पूंजी में एक बहुत बड़ी जमीन ले लिया था। पड़ी रहेगी और कम से कम बैंक से तो ज्यादा ही देकर जायेगी।


हमारे और आपके जीवन में नियति अपना अलग चक्र व्यूह रचना करती रहती है। लाख कुण्डली -ब्लड ग्रुप -शील संस्कार का आप मिलान करके शादी बियाह करिए , कितना भी दान दहेज़ दे या ले लीजिए पति पत्नी का आपसी सम्बन्ध कैसा होगा ये सब बातें उन पर नहीं निर्भर किया करती हैं।हर क्रिया की प्रतिक्रिया तो होती है अवश्य लेकिन अंक गणित के नियम जैसे दो दूनी चार ही हो .................यह आवश्यक नहीं ...मैरिड लाइफ में तो कतई नहीं !...... और , जब आपकी मैरिड लाइफ डिस्टर्ब रहेगी तो आपके जीवन में चाँद- तारे , मंगल शुक्र या बृहस्पति महाराज का क्या रोल रहेगा ?...अरे इतना ही नहीं कामदेव महाराज भी लाख कोशिश कर लें , पति पत्नी के एकान्तिक क्षणों में वे भी बेअसर साबित होंगे !और घर के बड़े बूढ़ों का घर में किलकारियां गूँजने का सारा अनुमान ब्यर्थ साबित होता रहता है।

समीर के हाथ से या यूं कह लीजिए कि जीवन से धीरा के जाने के बाद जो ब्याहता के रूप में पत्नी आईं ... उनका नाम था मीरा। पाण्डेय परिवार के एक बेहद झगड़ालू परिवार की कन्याधन थीं वे। समीर और उसके अभिभावकों पर जाने क्या जादू कर दिया था उनके क्लर्क बाप ने कि जुलाई की झमझम बरसात में समीर पंडित जी के पढ़े जा रहे श्लोक " ओम मंगलम भगवान् विष्णु ,मंगलम गरुणध्वजह, मंगलम पुंडरीकाक्षाय मंगलाये तनोहरि.." का मन प्राण से आचमन कर रहा था।अब जैसी भी थीं मीरा देवी उसके जीवन की कहानी की नायिका हो रही थीं।

"परस्त्रियं मातूसमां समीक्षयं॑ स्नेहं सदा चेन्मयीकान्त कूर्या।

वाम्न्ग्मायामी तदा त्वदीयं ब्रूते वच:सप्तमन्त्र कन्या:।"..

यह श्लोक पढ़ने के बाद विवाह करा रहे पंडित जी इसका अर्थ नहीं बताने से नहीं चूके ....

" अर्थात , कन्या अपने अंतिम वचन के रूप में वर मांगती है कि आप पराई स्त्रियों को माता के समान समझेंगे और पति - पत्नी के आपसी प्रेम के मध्य अन्य किसी को भागीदार न बनायेंगे। यदि आप यह वचन मुझे दें तो ही मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूँ।"

सातवाँ फेरा समाप्त होकर अब सिंदूरदान हो रहा था।

सिंदूरदान ही नहीं यह एक प्रकार का दुखद अध्याय भी शुरू हो रहा था समीर के जीवन का जिसमें आर्थिक तंगहाली, दाम्पत्य जीवन के महाभारत का भी संकेत छिपा था।

(क्रमशः)


 



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