Prafulla Kumar Tripathi

Tragedy

4.5  

Prafulla Kumar Tripathi

Tragedy

तुम्हें याद हो कि न याद हो !

तुम्हें याद हो कि न याद हो !

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उनकी ज़िन्दगी का सूरज अब ढलता जा रहा था।नज़रें कमजोर हो रही थीं। स्मृतियां धुंधली। लगभग तीन बड़ी सर्जरी के कारण शरीर पहले से ही अशक्त था अब तो और भी अशक्त हो चला।जी,सुरेश बाबू के बारे में ही बात हो रही है।अचानक से उनका मोबाइल घनघना उठा।

"हेलो,कौन ?"

उधर से थे श्रीवास्तव, जो सुरेश बाबू की पत्नी के साथ नौकरी कर चुके थे।

"क्षमा कीजिएगा, मैंनें अपनी डायरी के पुराने पन्ने से गुज़रते हुए यह पाया है कि आप पर मेरा कुछ देय(बकाया )है।शायद आपने अपने बच्चे के इंजीनियरिंग में सेलेक्शन और एडमिशन के दौरान लिया था।"

उधर से कुछ सहमति जनक उत्तर मिला।

"अब तो भगवान की मर्ज़ी से बच्चे कमाने लगे हैं।यदि स्मृति में वह उधारी याद हो तो उसे चुकता करने की कृपा करें। जिससे डायरी से मैं उसे बेदखल कर दूं।और हां, बुरा कत्तई मत मानिएगा।"

फोन कट चुका था।

उधर से जाने क्या कहा सुनी हुई थी कि सुरेश बाबू ने कुछ बुदबुदाते हुए मोबाइल रख दिया ।

अभी हमलोग बात का सिलसिला शुरू करें कि एक बार फिर मोबाइल घनघना उठा।

सुरेश बाबू के मोबाइल का रिंगटोन भी एक मशहूर फिल्म गीत का मुखड़ा था...वही कि , वो जो तुममें हममें क़रार था तुम्हें याद हो कि न याद हो !अब बात भी कुछ ऐसी ही पटरी पर चल रही थी।कुछ तेज़ क़दमों से तो कभी हल्के क़दमों से।

मैं कब उठकर कमरे से निकल गया इसका एहसास उनको नहीं हुआ।मैं अब कदाचित सोच में पड़ गया था कि चार साल इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करके लाखों रुपये कमा लेनेवाले सपूत के लिए उनके पिता को एमाउंट याद है कि नहीं?ये डूबा धन निकल पाएगा या नहीं?



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