उदय भाग २२

उदय भाग २२

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उदय को होश में आने में कुल १० मिनट लगे। अब तक वह सोच रहा था की उसकी बीवी ने शर्मिंदा होकर आत्महत्या की थी। उसका क्रोध बढ़ने लगा उसने पास में पड़ा एक बड़ा पत्थर उठा लिया और रोनक की तरफ बढ़ा और जैसे ही पत्थर मारने गया तब दो हाथों ने उसे रोका। हाथों की पकड़ मजबूत नहीं थी लेकिन उसके मुलायम स्पर्श ने उसे रुकने पर मजबूर कर दिया। उसने मुड़कर देखा तो वह देवांशी थी। एक साया दूर से यह दृश्य देख रहा था। जब उदय रोनक को मारने जा रहा था तो वह साया आगे बढ़ा था लेकिन जब उसने देखा की देवांशी ने उदय को रोक लिया तो वह अपनी जगह पर रुक गया और देखने लगा की आगे क्या होता है।

"देवांशी ने कहा ये क्या कर रहे हो पल्लव ?" उदय ने कहा "तुमने सुना नहीं उसने क्या कहा ?" "हां मैंने सब सुना लेकिन हत्या उसका उपाय नहीं है। आप एक बार उस गुनाह के के लिए सजा पा चुके हो जो तुमने किया ही नहीं है लेकिन अब हत्या जैसा गुनाह करके गुनहगार मत बनो। और वो भी ऐसे आदमी की हत्या जिसके पिताजी ने तुम्हें आसरा दिया वो भी बिना किसी पूछताछ के।" उदय बच्चों की तरह रोने लगा और कहने लगा "क्या ग़लती थी मेरी ? पुलिस का साथ दिया यही न ? बच्चों की तस्करी करनेवालों के खिलाफ खड़ा रहा ये। और मुझे बदले में क्या मिला मैं जेल गया, मेरे बीवी बच्चे की मौत हो गई और आज पता चल रहा की जिसे मैं दोस्त की तरह मानता था उसने उनकी हत्या की है।" देवांशी ने उदय को बाँहों में भर लिया और उसे रोने दिया। जब उदय ने रोना बंद किया तो देवांशी ने कहा की "इसे मारने से क्या होगा असली गुनहगार तो वो स्वामी है उसे सजा होनी चाहिए ,अगर वो सलाखों के पीछे चला गया तो काफी सारे बच्चों की जान बच जाएगी। और हां रोनक रावण के कौन से औजार के बारे बात कर रहा था ?"

उस एक सवाल ने उदय को होश में ला दिया। उसने सोचा अच्छा हुआ देवांशी ने उसे रोक लिया नहीं तो आज उससे समय परिवर्तन का नियम टूट जाता।

देवांशी ने उसे झंझोड़ा और पूछा "किस सोच में पड़ गए पल्लव ?" उदय ने कहा की "कुछ नहीं मैं भी सोच रहा था की वो किस औजार की बात कर रहा था ? देवांशी मेरे लिए एक काम करोगी प्लीज, इस बात को राज़ ही रखना मैं कल सोचकर बताता हूँ की क्या करना है।" देवांशी ने कहा की "आपको प्लीज कहने की जरुरत नहीं है मैं आपकी मनोदशा समझती हूँ।" उसने रोनक को सम्मोहन से आज़ाद किया और तुरंत बेहोश कर दिया और उसे कंधे पर उठाकर घर की तरफ चल दिया। देवांशी उसके साथ में चलते सोचने लगी की मुझे पल्लव से इतने हमदर्दी क्यों है ? इसलिए की इसने जिंदगी में काफी दुःख देखे है या फिर मुझे उससे प्यार हो गया है। यह सोचकर वो कुछ शर्मा गई अच्छा हुआ अंधेरा था नहीं तो उसकी शर्म की लाली उदय को दिख जाती।

देवांशी ने सोचा की यह भावना सिर्फ मेरे मन में ही है या पल्लव भी ऐसा ही सोचता है। आखिर मैं सिर्फ उसकी वजह से यहाँ गांव में वापस आई हूँ। उसकी आँखें तो बताती है की वो मुझे चाहता है लेकिन अपनी जबान से कुछ कहे तो पता चले। इस सवाल का जवाब उसने भविष्य पर छोड़ दिया।

उदय जब उनको छोड़कर खेत में वापस पहुंचा तो वह कटंकनाथ खड़े थे उसके आते ही उन्होंने पूछा "औजार ले आये ?" उदय ने कहा "नहीं मैंने योजना बदल दी है अब मैं भी असीमानंद के आश्रम में जाऊँगा और वही से औजार ले आऊंगा।" कटंकनाथ ने कहा "आप गलत कर रहे है आपको असीमानंद की ताकत का अंदाजा नहीं है एक बार उसके हाथ में औजार पड़ गया तो आप कभी उससे छीन नहीं पाएंगे। उसकी ताकत के सामने आपकी ताकत कुछ नहीं है।" उदय ने कहा "मैं उसका सामना करने को तैयार हूँ उसने मेरी पत्नी और बच्चे की हत्या करवाई थी। पहले मेरी योजना सुन लीजिए फिर अपनी योजना विस्तार से बताई।" कटंकनाथ ने कहा की "आपकी योजना तो अच्छी है लेकिन मेरा अभी भी यह कहना है की मन मे बदले की भावना रखकर असीमानंद का सामना करने जायेंगे तो हार जायेंगे। उसका सामना आगे भी होगा ही। आप अभी औजार अपने कब्जे में ले लीजिए मैं रारामूरिनाथ को बुला लेता हूँ आप वो औजार लेके चले जाइये।"

उदय ने सर हिलाया और कहा "नहीं आप मेरी योजना पर चलेंगे।" फिर कटंकनाथ अंधेरे में ग़ायब हो गए।


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