उदय भाग ३०

उदय भाग ३०

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उदय को लगा की शायद रेगिस्तान में होने की वजह से उसे ये आभास हो रहा है।

लेकिन थोड़ी देर बाद उसे फिर से देवांशी की आवाज आयी और उस आवाज ने कहा की सूरज की दिशा में ही चलते रहो तुम्हारी मंजिल अभी काफी दूर है। उदय ने कहा देवांशी तुम कहा हो और तुम यहाँ कैसे आयी ? देवांशी की आवाज फिर से गुंजी और उसने कहा वो सब मैं मिलने पर बताउंगी, अभी तो फ़िलहाल चलते रहो। उदय बताई हुई दिशा में चलता रहा. उसे मालूम नहीं था की कितनी देर से चल रहा था। घडी देखकर उसने अंदाजा लगाया की वो पिछले २४ घंटे से चल रहा है अब उस पर थकन हावी होने लगी थी इसलिए उसने कुछ देर आराम करने का सोचा लेकिन रेगिस्तान में अगर वो सो जाता तो उस पर कई टन रेती आ जाती। वो विश्राम लायक स्थल ढूंढने लगा। उसे फिर से देवांशी की आवाज आयी जो कह रही थी अगर विश्राम करना चाहते हो तो थोड़ा आगे एक वृक्ष है और उधर एक कुआ भी है।

उदय थोड़ा पानी पीकर उस वृक्ष के निचे सो गया लेकिन थोड़ी देर बाद उसे एहसास हुआ की कोई उसे उस वृक्ष से दूर धकेल रहा है उसने आँख खोलकर देखा की वो वृक्ष जल रहा था, अगर वो उस वृक्ष के निचे होता तो अब तक जल चूका होता उसे समझ नहीं आया की उसकी मदद किसने की। उसने उठाने की कोशिश की लेकिन थकन से चूर वो उठ न सका और कुए के नजदीक ने बेहोश हो गया।

१० घंटे बाद जब उसकी बेहोशी टूटी तो वहां न तो वृक्ष था और न ही कुआ। जहा वो वृक्ष था वहां पर रेत थोड़ी काली पड़ गई थी। उसने सोच लिया था की अब वह सिर्फ अपने अंतर्मन की बात पर विश्वास करेगा। अब उसे देवांशी की आवाज धोखा लगने लगी थी।

वह आगे बढ़ा फिर जब ८ से १० घंटा चला तो वो एक जगह आराम के लिए रुक गया जिससे उसका शरीर थकान के मारे बेखबर न हो जाये। कुल मिलकर तीसरे परिमाण के हिसाब से १५ दिन तक चलता रहा तब जाकर रेगिस्तान ख़तम हुआ और उसे दूर हरियाली दिखी। उस वापस देवांशी की आवाज सुनाई दी जिसने कहा की सामने जो पहाड़ है उसे पर का लोगे तो मुझ तक पहुंच जाओगे। अकेलेपन के वो ऊब गया था इसलिए उसने अपनी गति तेज करदी। पहाड़ी चढ़ाते हुए उसे काफी थकान महसूस हो रही थी लेकिन उसने अपनी गति को नहीं रोका।

वो पहाड़ी पर करके उसकी तलहटी में खड़ा था उसे आशा थी की शायद देवांशी उसे मिलेगी या भभूतनाथ। अभी कुछ समय पहले ही देवांशी से मिला था लेकिन उसे वो मुलाकात सदीओ पुरानी लग रही थी। वो अभी उस जगह को देख ही रहा था की उसकी पीठ पर एक वार हुआ जिससे उदय नीचे गिर पड़ा। उदय ने देखा की पीछे असीमानंद हाथ में अजीब तरह की तलवार लिए खड़ा है। सामान्य तलवार में जैसे जैसे आगे जाते है उसकी चौड़ाई काम होती जाती है लेकि इस तलवार का आखरी सिरा उसके अधोभाग से काफी चौड़ा था, वो पुराणों में वर्णित असुरो के हथियार के जैसी थी। उदय ने देरी न करते हुए अपने कमर से लिपटी उरुमी निकली और खड़ा हो गया। असीमानंद हंसने लगा और कहा की अब बच्चे भी युद्ध करने लगे है। उदय ने पूछा देवांशी कहा है ? असीमानंद ने कहा बच्चे को अपना खिलौना चाहिए ? तुम्हें यहाँ बुलाने के लिए वो आवाज मैंने ही निकली थी मुर्ख। तू जलने से बच कैसे गया। उदयने कहा मारनेवाले से बचानेवाला बड़ा होता है और अगर तू इतना ही ताकतवर होता तो पूरी दुनिया तेरे सामने नतमस्तक होती।

उदय अपनी बात पूरी करता उससे पहले ही असीमानंद ने उस पर अपनी तलवार से वार कर दिया। उदय ने चपलता से हटते हुए उस वार की उरुमी से रोक लिया। फिर उन दोनों के बीच में घनघोर युद्ध शुरू हुआ। उदय अब इसमें माहिर हो चूका था लेकिन कुछ घंटो के बाद वो थकने लगा जिसका फायदा उठाकर असीमानंद ने उसके हाथ से उरुमी गिरा दी और एक लात से उदय को जमीं पर गिरा दिया। जब असीमानंद ने आखरी वार किया तो उसकी तलवार उदय के गले की बजाय एक दूसरी तलवार से टकराई।


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