उदय भाग ३३
उदय भाग ३३
भभूतनाथ दुविधा में थे लेकिन महाशक्ति से बात करके कुछ आश्वस्त हूँए थे। उन्हें अपने कार्य के लिए एक दिशा मिल गई थी। वो उस खंड में आये जहा उदय बेहोश पड़ा था और वो जानते थे की उदयनाथ काफी समय तक बेहोश रहेगा। इसका कारण उन्होंने लगाई हूँई दवाए जिसमे अस्थिवर्धक, शक्ति वर्धक और पीड़ाशामक वनस्पति के मूल थे। भभूतनाथ उस खंड से निकले और मात्रा से दरवाजा बंद किया जिससे असीमानंद वह प्रवेश न कर सके। भभूतनाथ अब श्रापमुक्त हो चुके थे और उन्हें उनकी साडी शक्तिया मूल चुकी थी अब वो तीसरे, चौथे या पाचवे परिमाण में कभी भी आवागमन कर सकते थे। वो चौथे परिमाण स्थित अपने आश्रम में गए और जाकर रारामूरिनाथ को देवांशी को वह लाने का आदेश दिया। और सर्वेश्वरनाथ को सेना तैयार करने को कहा। सर्वेश्वरनाथ से कहा की अब युद्ध दूर नहीं है शायद असीमानंद भी अपनी सेना बना रहा होगा। फिर भभूतनाथ अपनी कुटिया में गए और अपना फरसा उठाया और एक खुले मैदान में जाकर युद्धाभ्यास करने लगे।
इस तरफ असीमानंद उदयनाथ को घायल छोड़कर दूसरी गुफा में गया जिसके बारे में काली शक्ति ने उसे पहले से ही बता रखा था। गुफा के अंत में एक अग्निकुंड जल रहा था जिसमे अपना रक्त अर्पण करके उसने काली शक्ति का आव्हान किया। एक आकृति उस अग्नि में प्रकट हूँई तब असीमानंद ने बताया मैंने उदयशंकरनाथ का शरीर नष्ट किया और उदयनाथ भी अब तक मर चूका होगा अब आगे क्या आदेश है ? जैसे ही उसने अपना वाकया पूर्ण किया असीमानंद पर एक जोरदार प्रहार किया जिससे वो जमीं पर गिर गया फिर उस आकृति ने कहा मैंने तुम जैसा महामूर्ख अब तक नहीं देखा, मैंने तुम्हे बताया था की उदयनाथ की हत्या कर देना फिर उसे घायल करके क्यों छोड़ दिया। तुम्हारी वजह से रावण का औजार नष्ट हो गया मेरा शक्तिशाली सेवक मर गया और फिर भी तुम उदय को मारने में नाकाम हो गए क्या अभी तुम अपने आप को दिव्यपुरुष मानते हो जिसको दूसरे दिव्यपुरुष की हत्या करने का अधिकार नहीं है। असीमानंद ने कहा अब तक उदय मर चूका होगा। आकृति ने बताया वो नहीं मरा अभी तक जीवित है। असीमानंद ने कहा की मैं फिर जाता हूँ उसे मार दूंगा। आकृति ने कहा मैंने ऐसे ही तुम्हे महामूर्ख नहीं कहा क्या उसे बचानेवाले ने उसकी रक्षा का उपाय नहीं किया होगा अब तक ? अब तुम उदय की चिंता छोडो अब जरायु नहीं रहा तो तुम्हे उसकी जगह लेनी होगी अब तुम वो करो जो जरायु करनेवाला था, एक सेना तैयार करो जिसकी विधि मैं बताता हूँ।
फिर आकृति उसे विधि समझाने लगी। विधि बताने के बाद कहा की इस परिमाण में इस सेना के उपयोग से तुम भभूतनाथ और उदयनाथ को हराओ फिर चौथे परिमाण में जाकर उनके साथिओ को हराओ फिर तुम्हे तीसरे परिमाण में कोई हरा नहीं पायेगा। जब आकृति की बात पूरी हूँई तो असीमानंद वहाँ से रेगिस्तान की तरफ निकल गया।
थोड़ी देर बाद एक और साया उस गुफा में आया और आव्हान मंत्र का प्रयोग करके काली शक्ति को बुलाया। उस आकृति ने प्रगट होते ही कहा आ गए जरायु कैसे हो, लगता है पहले से शक्तिशाली हो गए हो। जरायु ने आगे आते हूँए कहा की आपकी कृपा से मैं जीवित हूँआ हूँ और पहले से ज्यादा शक्तिशाली भी, अब मेरे लिए क्या आदेश है ? आकृति ने कहा की मैंने असीमानंद को सेना तैयार करने का युद्ध करने का आदेश दिया है, तुम आराम करो। जरायु ने कहा की ये काम तो मैं करनेवाला था क्या आपको मुझपे भरोसा नहीं रहा ? आकृति ने कहा तुम हजार साल से मेरी सेवा कर रहे हो तुम भरोसा क्यों नहीं करूँगा, असीमानंद एक दिव्यपुरुष है उनको आपस में लड़ने दो जब वो युद्ध जीत जाये उसके बाद में उसे ख़त्म कर देना फिर तुम तीसरे और चौथे परिमाण पे राज करना, महाशक्ति को मात देने का इससे अच्छा कोई रास्ता नहीं है।
मैं तुम्हे एक हथियार देता हूँ जिससे तुम असीमानंद को आसानी से मर पाओगे इतना कहकर अपना हाथ बढ़ाया जिसमे एक हथियार था जिसे जरायु ने ले लिया।
वहाँ चौथे परिमाण में रारामूरिनाथ बेहोश देवांशी को लेकर भभूतनाथ की कुटिया के बहार खड़ा था। भभूतनाथ में देवांशी को कंधे पर डाला और एक दिशा में प्रयाण किया।