उदय भाग ३५

उदय भाग ३५

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भभूतनाथ ने पीछे मुड़कर देखा तो वह उदय खड़ा था और उसके पीछे कमलनाथ , कदंबनाथ , इंद्रनाथ , नरेन्द्रनाथ , भवेन्द्रनाथ , सप्तेश्वरनाथ और ढोलकनाथ खड़े थे ।उदय ने आगे आते हुए कहा कालीशक्ति के प्रभाव में तुम तथ्यों को गलत दिशा में मोड़ रहे हो । तुम शक्ति का महत्व तो समझ गए लेकिन कर्म की महत्ता की नहीं समझ पाए , अगर समझ जाते तो अभी भी सत्य के मार्ग पर होते । अभी भी समय है किये हुए कर्म का पश्चाताप करो और महाशक्ति के शरण में आ जाओ तुम्हे माफ़ कर दिया जायेगा । काली शक्ति का साथ छोड़ दो तुम्हारा निर्माण पुण्यकार्य के लिए हुआ है और कालीशक्ति का निर्माण पापकर्म के लिए उसे उसका काम करने दो और तुम तुम्हारा काम करो । जहा तक रावण और दुर्योधन की बात है वे दोनों कालीशक्ति की छाया में थे । रावण ने तो छठे और सातवे परिमाण में जाने की प्रतिज्ञा ली थी इसलिए उसका वध करना पड़ा । दुर्योधन ने राजगादी पाने के लिए कालीशक्ति का सहारा लिया था , शकुनि कालीशक्ति का ही अंश था । जब उसने देखा की राज दो टुकड़ो में बँट गया है तो पांडवो को बुलाया और उनके साथ जुआ खेला । दुर्योधन की तरफ से कालीशक्ति शकुनि ने ही जुआ खेला था । दुर्योधन निश्चित रूप से दोषी था क्योकि वो कालीशक्ति के इशारे पर चल रहा था अगर उसका वध नहीं किया जाता तो कालीशक्ति अपनी पाप की छाया पूरी दुनिया पर फैला देती । और हिटलर की दुनिया जितने की इच्छा के पीछे तुम्हारा हाथ है ये तुम भी जानते हो और मैं भी तो मासूम बनाने का ढोंग बंद करो और महाशक्ति की शरण में आ जाओ यहाँ शरण आने वाले को माफ़ी जरूर मिलती है ।

असीमानंद जोर जोर से हँसने लगा बोलै देखो देखो कौन उपदेश दे रहा है एक बालक जो की मुझसे तीन तीन बार हार चूका है । शांति की बाते सिर्फ कायर ही करते है बहादुर युद्ध करते है । अगर हारने का दर है तो यहाँ से चले जाओ मैं तुम्हे कुछ नहीं करूँगा ।सत्य क्या और असत्य क्या ये सिर्फ जीत पर निर्भर करता है । सत्य वही है जो विजेता कहता है ।

असीमानंद ने अपनी काली सेना को आगे बढ़ने का आदेश दिया , सेना शोर मचाते हुए आगे बढ़ी । भभूतनाथ अपने फरसे के साथ और उदय खांडव और उरुमी के साथ उनका सामना करने तैयार थे और बाकि सात नाथ भी अपने प्रिय हथियार के साथ आगे बढे । भयंकर युद्ध शुरू हो गया दिव्यपुरुष जैसे ही किसी सैनिक को मरते थे तो वो रेती में तब्दील हो जाता और उसी रेत से दो सैनिक बन जाते थे । दिव्यपुरुष घंटो तक उनको मरते रहे लेकिन उनकी संख्या बढ़ती ही जा रही थी । असीमानंद अब तक मैदान में आया नहीं था वो दूर से ही युद्ध का आनंद ले रहा था । ये देखकर कदंबनाथ अपनी गदा लेकर आगे बढ़ा असीमानंद को ललकारा और शुरू हुआ भयंकर द्वंदयुद्ध , उनके हथियारों से निकलती हुई अग्नि दूसरे सैनको को जला रही थी । काफी देर तक यह युद्ध चल रहा था तो असीमानंद ने चिल्ला कर कहा पीछे से वार मत करो । इस चल में कदंबनाथ फंस गया और पीछे मुड़कर देखा ,तब असीमानंद ने अपनी गदा का प्रहार कदंबनाथ के सर पर किया जिससे वो जमीं पर गिरा और बेहोश हो गया ,यह दृश्य देखकर उदय की आँखे लाल हो गई उसने अपने हथियार मैदान में दाल दिए और अपने हाथ सूर्य की तरफ कर दिए तो उसके और सूर्य के बीच किरणों की रेखा आ गई और धीरे धीरे उसका शरीर प्रकशित होने लगा और उसका प्रकाश बढ़ने लगा फिर उदय के शरीर से गरमी निकलने लगी तो काली सेना धीरे धीरे उससे दूर होने लगी लेकिन उसकी गरमी से काली सेना के सैनिक पिघलने लगे । धीरे धीरे पूरी काली सेना पिघल गई । 

अब सिर्फ असीमानंद बचा था , उदय ने उसे ललकारते हुए कहा अब कहा भागोगे असीम आओ मुझसे युद्ध करो । उदय के हाथ में एक अलग तरह का हथियार था जब असीमानंद और उदय लड़ने लगे तो थोड़ी दे में असीमानंद को एहसास हो गया की ये वो उदय नहीं है जिसे उसने कई बार हराया है । उसे लगा की अब भागने में ही बेहतरी है लेकिन उदय के प्रहार इतने तेजी से हो रहे थे की वो वह से हट भी नहीं पा रहा था । असीमानंद ने उदय से कहा काफी जल्दी सिख गए बच्चे लेकिन जानते हो मेरे शरीर पर दुनिया के सारे हथियार बेकार है मुझ पर किसी भी हथियार का असर नहीं होता । उदय ने कहा यह हथियार तुम्हारी मृत्यु का है और इसे बनाया है कालीशक्ति ने और मैंने छिना है जरायु को दूसरी बार मारकर । असीमानंद की आँखे फ़ैल गई और उसी वक़्त उदय का वार उसकी छाती पर पड़ा और वो जमीं पर गिर गया । उदय ने असीमानंद से कहा की अगर तुम हमसे हिट भी गए होते तो भी तुम्हारी मृत्यु निश्चित थी क्योकि जरायु इसीसे तुम्हे मारनेवाला था । कमलनाथ दूर से जरायु का शरीर अपने हाथ में लेकर आया और असीमानंद के पास रखा । उदय ने कहा की तुम्हें क्या लगता है कालीशक्ति तुम्हारी मदद कर रही है वो सिर्फ तुम्हारा उपयोग कर रही थी ।

जमीन पर गिरे असीमानंद की आँखों में आंसू आ गए उसने कहा मुझे माफ़ कर दो मैं गलत रास्ते पर चला गया था लेकिन मेरा बदला कालीशक्ति से जरूर लेना । उदय ने कहा असीमानंद तुम अभी भी समझे नहीं तुम्हारा काम था महाशक्ति का आदेश मानना जिससे तुम चूक गए लेकिन कालीशक्ति तो अपना कर्म ही कर रही है इसलिए वो दोषित नहीं है । दोषित तुम थे वो नहीं । असीमानंद ने कहा सही कह रहे हो मैं ही अपने कर्म से परावृत्त हो गया था उसमे कालीशक्ति का क्या दोष , लेकिन मुझे माफ़ कर देना । इतना कहकर असीमानंद ने अपने प्राण त्याग दिए । भभूतनाथ ने उदय के कंधे पर हाथ रखकर कहा अपना काम पूर्ण हुआ , अब अपने निवासस्थान पर चलते है ।

फिर सब लोग उस गुफा के खंड में गए जहा देवांशी उसकी राह देख रही थी । वह जाकर उदय ने देवांशी को अपनी बांहो में भर लिया और कहा चलो अपने घर चलते है । भभूतनाथ ने कहा की तुम्हारा घर तो यही है , उदय ने कहा की यह मेरा नहीं उदयशंकरनाथ का घर है , मैं गांव में जाऊंगा और वही हरिकाका के खेत में रहूँगा । मैं नटु बनकर ही खुश हु । भभूतनाथ ने कहा ठीक है लेकिन महाशक्ति की अनुमति ले लो ।


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