उदय भाग २९

उदय भाग २९

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घंटो तक बंधी हुई अवस्थामे पड़े रहने के बाद दो बदसूरत व्यक्ति आये और उसे गुफा में ले गए  । गुफा में अँधेरे और बदबू का साम्राज्य था उदय ने योगाभ्यास से बदबू को रोका । उसे एक अग्निकुंड के सामने ले जाया गया जहा असीमानंद और जरायु खड़े थे । जरायु अलग अलग सामग्री मंत्रोच्चार के साथ उस अग्निकुंड में डाल रहा था । फिर असीमानंद खडग लेकर बलि देने के लिए ले युवती की तरफ गया जो की उदय था । फिर नजदीक पहुंचकर हँसाने लगा और बोला फिर से बचकर आ गए उदय और ये कैसी बालिश हारकर है तुम्हे क्या लगा की मैं तुम्हे नहीं पहचान पाउँगा । तुम्हारे आमद की खबर मुझे पहले ही मिल गई थी इतना कहकर अपना ऊँगली एक दिशा में दिखाई और उदय से कहा उधर देखो । उदय ने सर उठाकर देखा तो वहां सर्वेश्वरनाथ और वो युवती दोनों बंधे हुए थे । असीमानंद ने कुटिल मुस्कान के साथ कहा की अगर मुझसे लड़ना चाहते हो तो थोड़ी देर इंतजार करो मैं तुम्हे फिर से मौका दूंगा । इतना कहकर उस युवती को अग्निकुंड के नजदीक खड़ा कर दिया । उदय रावण के औजार को अग्नि कुंड के ऊपर लटकता हुआ देख सकता था । उदय ने छूटने की काफी कोशिश की लेकिन उसे काफी मजबूती से बांधा हुआ था ।

थोड़ी देर बाद मुख्या आहुति की विधि शुरू हुई अब जरायु काफी जोर जोर से मंत्रोच्चार कर रहा था उसकी आवाज गुफा में भयंकर तरीके से गूंज रही थी । वो युवती को बलिवेदी के नजदीक ले आया और फिर उदय ने आँखे बंद कर दी जब असीमानंद ने खडग से युवती के गले पर प्रहार किया और एक ही वार में उसके सर धड़ से अलग हो गया और धड़ से निकली हुई धारा उस बलिवेदी के पात्र से कुंड में गिरने लगी । फिर अग्निकुंड में एक क्रूर चेहरा दिखा जो जोर जोर से हंस रहा था । उसने उस औजार को असीमानंद की तरफ उछाला और कहा इसको उस रक्त से पवित्र करो । जब असीमानंद ने उस युवती के रक्त में डुबाया तो वो औजार एक भाले के स्वरुप में आ गया । अब उस चेहरे ने कहा की इस औजार से सामनेवाली दिवार पर वार करो पाचवे परिमाण का प्रवेशद्वार तुम लोगो के लिए खुल जायेगा । असीमानंद ने उस भाले से उस दिवार पर वार किया तो वहां एक प्रवेशद्वार बन गया । लेकिन तब तक उदय बंधनमुक्त हो चूका था उसने अपने कपड़ो में छिपी हुई तलवार निकली और उस औजार पर वॉर किया जिससे उस औजार के दो टुकड़े हो गए । असीमानंद दो पल के लिए सकते में आ गया क्यों की इसी औजार से छठे और सातवे परिमाण में जा सकता था । उदय ने वो तलवार सर्वेश्वरनाथ की तरफ उछली और फिर कमर दे बंधी हुई उरुमी निकाल ली लेकिन तब तक असीमानंद पाचवे परिमाण के दरवाजे को पार कर चूका था । उदय ने उरुमी से जरायु पर वार किया जो उस दरवाजे की पार जाने की कोशिश कर रहा था और फिर वो खुद उस दरवाजे में प्रवेश कर गया । उसने देखा की उसके उस दरवाजे के पार निकलने के एक पल बाद वो दरवाजा बंद हो गया ।

पाचवे परिमाण में जाने के बाद उसने देखा की असीमानंद वहां नहीं था , वो काफी तेजी से वहां से आगे चला गया था । उसने थोड़ी देर रुककर उस जगह का निरिक्षण किया वो रेगिस्तान के बीचो बीच खड़ा था । उसे दो पल के लिए लगा की कच्छ के सफ़ेद रेगिस्तान में खड़ा है । लेकिन उसने देखा की वो रेती कच्छ के सफ़ेद रेगिस्तान की तरह नहीं बल्कि उसमे कुछ लालिमा भी मिली हुई है । उसे समझ नहीं आ रहा था की कहा जाये ।

फिर उसने फैसला लिया की वो सूरज की दिशा में चलेगा उसे पता नहीं था की उसने ऐसा फैसला क्यों लिया लेकिन वो सूरज की दिशा में चलने लगा । चलते चलते वो सोचने लगा की काश कोई साथ में होता क्योकि ये सूरज अगले ४५० दिन तक डूबनेवाला नहीं था क्यों की अब वो पाचवे परिमाण में था जिसका समय चौथे परिमाण से तीस गुना धीमा था । वो अकेलापन महसूस करने लगा था ।

 उतने में उसे एक आवाज सुनाई दी जो की निश्चित रूप से देवांशी की थी ।


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