उदय भाग २७

उदय भाग २७

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उदय अभी तक असमंजस में था की इतनी बड़ी गलती करने के बाद भी उस पर विश्वास क्यों किया जा रहा है। भभूतनाथ जैसे उसके मन की बात समझ गए हो उसकी तरफ देखकर बोले निश्चिन्त रहो वही हूँआ है जो होना चाहिए था, तुम उसका सामना करने के बाद भी बच गए हो वो भी एक सिद्धि ही है। उसके वार से कोई नहीं बचता। तुम एक बात समझ लो की भविष्य हरदम अनिश्चित होता है वो आपके वर्तमान के कर्मो पर आधारित होता है। अगर तुम औजार लाने में सफल हो जाते तो अभी का यहाँ का घटनाक्रम कुछ और होता, ये भी हो सकता की क्रोधवश असीमानंद रोनक और उसके परिवार को मार डालता जिसका बोज तुम्हारे ह्रदय पर होता। इसलिए सोचना छोडो और अब इस परिस्तिथी में क्या किया जा सकता है उसके बारे में सोचो।हमारे पास चार दिन का समय है ये चार दिन चौथे परिमाण के यानि की तीसरे परिमाण के हिसाब से चार महीने का समय है हमारे पास। कुछ और तैयारियां करनी पड़ेगी तुमको कुछ कलाओ को और युद्धविद्या का अभ्यास करना पड़ेगा। रूप बदलने की कला सीखनी पड़ेगी जिसकी तालीम वो गुरु देंगे जिन्होंने इंद्रप्रस्थ के राजकुमार अर्जुन को भी ये कला सिखाई थी ।

उदय ने कहा अर्जुन ने तो ये सब स्वर्ग में सीखा था वो तो इंद्र का पुत्र था। भभूतनाथ होले से मुस्कुराए और कहा की बाकि के परिमानो को गुप्त रखने का इससे अच्छा रास्ता क्या हो सकता है। स्वर्ग और नर्क की कल्पना तीसरे परिमाण में फैला दो। उदय ने कहा की मेरे मन में काफी सारे प्रश्न है आप सातों परिमाणों के बारे में विस्तार से बताए जिससे मेरे सारे प्रश्नो का निराकरण एक साथ हो जाये।

भभूतनाथ ने बताना शुरू किया कहा की ये ब्रह्माण्ड काफी विशाल है जिसमे बहूँत सारी आकाशगंगाए और उसके लाखो तारे और ग्रह है जिसमे से एक हमारी पृथ्वी है। यह पृथ्वी सात परिमाणों की बनी है। पूर्ण ब्रह्माण्ड की रचना किसने की इसका तो मुझे भी अंदाजा नहीं है,मुझे सिर्फ दिव्यशक्ति तक ही मालूम है। पृथ्वी पर एक दिव्यशक्ति है जो की सातवे परिमाण में रहती है जिसने महाशक्तिओ की रचना की जो छठे परिमाण में रहती है। तीसरे, चौथे और पाचवे परिमाण में जो भी रचना है वो महाशक्तिओ ने की है। जब महाशक्तिओ का समय पूरा हो जाता है तो दिव्यशक्ति उसका नाश कर देती है और दूसरी महाशक्तिओ की रचना करती है और जब दिव्यशक्ति का समय पूरा होता है तो उसका रूप बदल जाता है या कोई पराशक्ति है जो उसका नाश करके दूसरी दिव्यशक्ति की रचना करती है।

यानि की सब यहाँ पर नाशवंत है कुछ भी शाश्वत नहीं है। महाशक्ति ने शक्ति संतुलन के लिए दिव्यपुरुषो या दिव्यजीवो की रचना की है। अभी तीसरे परिमाण में मनुष्यो का राज है इसलिए उसने दिव्यपुरुषो का निर्माण किया है करोडो साल पहले जब धरती पर महाकाय प्राणिओ का राज था तब दिव्यप्राणिओ का निर्माण करती थी। दिव्यजीवो या दिव्यपुरुषो का रहने का स्थान पांचवा परिमाण है उनका मुख्य काम जब तीसरे परिमाण में शक्ति संतुलन बिघडे तब वह जाकर ठीक करना। चौथा परिमाण तीसरे और पाचवे परिमाण को पृथक करने के लिए है।

यहाँ पर तीसरे परिमाण में अपने कर्म से उन्नत होनेवाले जीवो का है। कोई मनुष्य या कोई जिव अपने कर्म से उन्नत हो जाता है उसका प्रवेश चौथे परिमाण में होता है और फिर उसे कड़ी तालीम दी जाती है, उनका काम होता है हमें जब जरुरत हो हमारी मदद करना।

इतने बड़े रहस्योद्धाटन से उदय अचंभित था। उसने पूछा फिर तीसरे परिमाण में फिर ये धर्म, भगवान, देश ये सब क्यों है ? और हर धर्म के भगवान् अलग फिर मैं किसे मानु ? भभूतनाथ ने कहा की वो सब माया है जिसकी रचना तीसरे परिमाण में रहनेवाले मनुष्य ने की है। हर चीज की रचना सिर्फ स्वार्थ की लिए की गई है ऐसा भी भी नहीं है। धर्म और भगवान् की रचना मनुष्य सहूलियत की लिए की गई और देशो का निर्माण भी इसी कारण से हूँआ है लेकिन कुछ लोगो ने काली शक्ति के वश इसका दुरूपयोग किया है। धर्म तो जीवन जीने की कला है एक आचारसंहिता है जिसमे कैसे जीना है कैसे कर्म करने चाहिए इसका मार्गदर्शन है लेकिन जैसा की मैंने पहले भी बताया था की महाशक्तिओ में कुछ शक्तिया काली भी जिनका काम तीसरे परिमाण में पाप फैलाना है जो की अनैतिक कार्य करवाती  है, और उसीके संतुलन के लिए हमारा निर्माण हूँआ है।

और कोई प्रश्न है मन में ? भभूतनाथ ने पूछा

उदय ने कहा हां एक छोटा प्रश्न जरूर है हमारे हरेक के नाम में नाथ शब्द आता है वो क्या है ? भभूतनाथ ने कहा की नाथ शब्द सिर्फ हम एक है ये दिखाने लिए है अगर तुम अपने आप को सिर्फ उदय कहलवाना चाहो तो भी कोई बात नहीं है। नाम का भार खुद पर मत रखो।

अभी के लिए तो उदय के सारे प्रश्न के उत्तर मिल गए थे। उदय ने जाते हूँए सोचा की मेरा ज्ञान कितना अधूरा है दुनिया में ऐसी कितनी बातें हैं जो मैं नहीं जानता हूँ। उसकी ज्ञानपिपासा बढ़ गई थी। वो सर्वेश्वरनाथ के पास पंहूँचा जिस पर उदय की तालीम की जिम्मेदारी थी। सर्वेश्वरनाथ ने कहा कुछ देर आराम कर लो फिर तालीम शुरू करते है। पर अब उदय वो उदय नहीं रहा था जिसे आराम की जरुरत हो उसने कहा की अब तो तभी आराम करूँगा जब रावण का औजार नष्ट हो जायेगा।


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